कोबाल्ट लैब्स की भारतीय मूल की को-फाउंडर कल्याणी रामादुर्गम और आशी अग्रवाल ने फाइनेंस कैटेगरी में 2026 के लिए फोर्ब्स 30-अंडर-30 यूनाइटेड स्टेट्स लिस्ट में जगह बनाई है.
विरोध से कैसे आतंकवाद का नारा बना 'ग्लोबलाइज द इंतिफादा'... सिडनी से पहले कश्मीर भी बना था निशाना
Intifida Chant Relation In Bondi Attack: आस्ट्रेलिया के बॉन्डी बीच में 14 दिसंबर 2025 को यहूदियों पर हुए हमले को 'ग्लोबलाइज द इंतिफादा' नारे का नतीजा माना जा रहा है.
इस्लामिक आतंकवाद के खिलाफ इजरायल-ग्रीस-साइप्रस ने मिलाया हाथ, अब 'खलीफा' का पूरा होगा हिसाब
Coalition against Islamic terrorism formed: इस्लामिक आतंकवाद से अब पूरी दुनिया परेशान हो चुकी है. इसके खिलाफ अब इजरायल, ग्रीस और साइप्रस ने गठबंधन बनाकर जंग छेड़ने का ऐलान कर दिया है.
राजस्थान हाईकोर्ट की जयपुर बेंच ने 1993 के सिलसिलेवार ट्रेन बम ब्लास्ट के चार दोषियों की समय से पहले रिहाई की अपील को खारिज कर दिया है। चारों को आतंकवादी और विघटनकारी गतिविधियां (रोकथाम) एक्ट (TADA) के तहत दोषी ठहराए जाने के बाद उम्रकैद की सजा हुई थी। चारों दोषी 20 साल से जेल काट रहे हैं। इन्होंने समय से पहले रिहा करने की याचिका दायर की थी। हाईकोर्ट जस्टिस सुदेश बंसल और जस्टिस भुवन गोयल की खंडपीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा - आतंकवाद जैसे गंभीर अपराधों में दोषी व्यक्तियों को रिहा करना समाज और देश दोनों की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा पैदा कर सकता है। इस तरह की रिहाई से समाज में गलत संदेश जाएगा । इससे राष्ट्रीय सुरक्षा और सार्वजनिक शांति पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है। बढ़ती उम्र का हवाला देकर रिहाई की मांग की थीहाईकोर्ट ने दौसा निवासी असफाक खान, मुंबई के फजलुर रहमान सुफी, उत्तर प्रदेश के कबीनगर निवासी अबरे रहमत अंसारी और गुलबर्ग के मोहम्मद अजाज अकबर की याचिकाएं खारिज की है। ये सभी पिछले 20 साल से ज्यादा समय से जेल में बंद हैं। दोषियों ने बढ़ती उम्र और स्वास्थ्य कारणों के आधार पर समय से पहले रिहाई की मांग करते हुए याचिका दायर की थी। टाडा में दोषी याचिकाकर्ताओं की तरफ से दलील दी गई कि गृह मंत्रालय के दिशा-निर्देशों के अनुसार 20 साल की सजा पूरी होने के बाद रिहाई पर विचार किया जा सकता है। उनके मामलों पर उस नीति के तहत विचार होना चाहिए, जो उनके सजा सुनाए जाने के समय लागू थी। महाधिवक्ता की दलील- टाडा के दोषियों की समय से पहले रिहाई पर प्रतिबंध केंद्र सरकार और राज्य सरकार की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल भरत व्यास और महाधिवक्ता राजेन्द्र प्रसाद ने याचिकाओं का विरोध किया। सरकार ने कहा- राजस्थान कैदी (सजा में कमी) नियम, 2006 और पूर्ववर्ती नियम, 1958, दोनों में ही टाडा के तहत दोषियों की समय से पहले रिहाई पर साफ तौर पर प्रतिबंध है। नियम 9(5) के अनुसार, ऐसे मामलों पर सलाहकार बोर्ड विचार नहीं कर सकता। 1993 में 6 ट्रेनों में हुए थे सीरियल बम ब्लास्टयह मामला साल 1993 के सीरियल ट्रेन बम ब्लास्ट से जुड़ा हुआ है। 5 दिसंबर 1993 की आधी रात को मुंबई, सूरत, लखनऊ, कानपुर और हैदराबाद में लंबी दूरी की 6 ट्रेनों में सिलसिलेवार बम धमाके हुए थे। इन धमाकों में दो लोगों की मौत हुई थी, जबकि 22 घायल हुए थे। इसके बाद पूरे मामले की जांच सीबीआई ने की। 28 फरवरी 2004 को ट्रायल पूरा होने के बाद कोर्ट ने आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। इसके बाद से दोषी जेल में हैं। ये खबर भी पढ़िए- 80 साल के 'डॉक्टर बम' से कैसे हारी सीबीआई:कारपेंटर से बना खूंखार आतंकवादी; दाऊद सहित दुनिया के बड़े आतंकी समूहों से संबंध 5-6 दिसंबर 1993 को देश के पांच शहरों लखनऊ, कानपुर, हैदराबाद, सूरत और मुंबई (तब बॉम्बे) की ट्रेनों में एक के बाद एक सिलसिलेवार बम ब्लास्ट हुए। (पढ़िए पूरी खबर)

