घातक बीमारियों को रोकने के लिए एमआरएनए वैक्सीन तकनीक का उपयोग सुरक्षित- रिपोर्ट

हाल ही में कोविड-19 महामारी के दौरान देखी गई एमआरएनए वैक्सीन तकनीक घातक बीमारियों को रोकने के लिए भी कारगर है। बुधवार को जारी एक रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है।

खास खबर 24 Apr 2024 8:58 pm

Hanuman Jayanti 2024: 23 अप्रैल को मनाया जा रहा हनुमान जन्मोत्सव, जानिए पूजा विधि और महत्व

आज देशभर में धूमधाम से हनुमान जन्मोत्सव का पर्व मनाया जा रहा है। हनुमानजी कलयुग के जाग्रत एवं सर्वाधिक पूजे जाने वाले भगवान हैं। यह भगवान शिव के ग्यारहवें अवतार माने जाते हैं। मान्यता के अनुसार, हनुमान जी की पूजा-आराधना करने से बड़ी से बड़ी समस्याओं का अंत हो जाता है और व्यक्ति को सुख, शांति, आरोग्य और लाभ की प्राप्ति होती है। हनुमान जी के भक्तों को कभी नकारात्मक शक्तियां परेशान नहीं करती हैं। इस साल 23 अप्रैल 2024 को हनुमान जन्मोत्सव मनाया जा रहा है। बताया जाता है कि इस दिन भगवान हनुमान जी का जन्म हुआ था। मां अंजना और केसरी के पुत्र हनुमान को बजरंगबली, वायु देव और वानर देवता भी कहा जाता है। इसके अलावा उनको अंजनेय भी कहा जाता है। इसे भी पढ़ें: Mahavir Jayanti 2024: 21 अप्रैल को मनाई जा रही है महावीर जयंती, जैन समुदाय के लिए बेहद खास है ये दिन शुभ मुहूर्त आज यानी की 23 अप्रैल 2024 को हनुमान जन्मोत्सव की पूर्णिमा तिथि सुबह 03:25 मिनट से शुरू हो चुकी है। वहीं तिथि की समाप्ति अगले दिन 24 अप्रैल की सुबह 05:18 मिनट पर होगी। उदयातिथि के हिसाब से 23 अप्रैल को हनुमान जन्मोत्सव का पर्व मनाया जा रहा है। इस दिन अभिजीत मुहूर्त में पूजा करना सबसे ज्यादा शुभ माना जाता है। सुबह 11:53 मिनट से दोपहर 12:46 मिनट तक अभिजीत मुहूर्त रहेगा। शुभ योग चित्रा नक्षत्र कल रात यानी की 22 अप्रैल को रात 08:00 बजे से चित्रा नक्षत्र शुरू हो चुका है। इस योग का समापन आज यानी की 23 अप्रैल को रात 10:32 मिनट पर होगा। वज्र योग आज 23 अप्रैल को सुबह -4:29 मिनट से वज्र योग का निर्माण हो रहा है, वहीं 24 अप्रैल को सुबह 04:57 मिनट पर समापन होगा। पूजा-विधि इस दिन सुबह स्नान आदि कर शुभ मुहूर्त में हनुमान जी की पूजा करें। घर की उत्तर दिशा में हनुमान जी की मूर्ति या चित्र को लकड़ी की चौकी पर स्थापित करें। फिर उन्हें लाल फूलों की माला चढ़ाएं। हनुमान जी के साथ श्रीराम की मूर्ति जरूर रखें। इसके बाद सिंदूर का चोला चढ़ाएं। फिर घी का दीपक जलाकर विधि-विधान से हनुमान जी पूजा-अर्चना करें। हनुमान चालीसा का पाठ करने के बाद आरती करें। आखिरी में हनुमान जी को भोग लगाएं। हनुमान जन्मोत्सव 2024 भोग इस दिन हनुमान जी को उनका प्रिय भोग लगाना चाहिए। हनुमान जी को बेसन के लड्डू, गुड़-चना, मीठी बूंदी, लाल फल और पान का बीड़ा आदि का भोग लगा सकते हैं। क्योंकि यह सभी चीजें हनुमान जी को अतिप्रिय हैं।

प्रभासाक्षी 23 Apr 2024 9:48 am

वैवाहिक रिश्ते में दरार का कारण बनता है उम्र का फासला, अपनी उम्र के अनुरूप चुनना चाहिए साथी

हमारे समाज में भीपति-पत्नी के बीच बहुतज्यादा अंतर को अभीपूरी तरह स्वीकारा नहींजाता। ऐसे में यदिलड़की उम्र में ज्यादाबड़ी हो तो चुनौतियांऔर ज्यादा बढ़ जाती हैं।समाज इन्हें अपने हिसाब सेजज करता है औरकई बार दोनों कोलेकर व्यंग्य भी किए जातेहैं। अगर दोनों केबीच किसी तरह कीदिक्कत हो जाए तोसमाज उम्र के फासलेकी दुहाई देने से पीछेनहीं हटता।......

खास खबर 21 Apr 2024 12:23 pm

Mahavir Jayanti 2024: 21 अप्रैल को मनाई जा रही है महावीर जयंती, जैन समुदाय के लिए बेहद खास है ये दिन

हिंदू पंचांग के मुताबिक हर साल चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को बड़े धूमधाम से महावीर जयंती मनाई जाती है। भगवान महावीर जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर हैं। इस साल 21 अप्रैल को महावीर जयंती मनाई जा रही है। बता दें कि भगवान महावीर को वीर, वर्धमान, अतिवीर और संमति भी कहा जाता है। भगवान महावीर ने पूरे समाज को सत्य और अहिंसा का मार्ग दिखाया। इस दिन जैन धर्म का समुदाय जैन मंदिरों में पूजा-अर्चना करते हैं। वहीं कई जगहों पर भव्य जुलूस भी निकाला जाता है। भगवान महावीर बता दें कि भगवान महावीर जैनधर्म के 24वें और अंतिम तीर्थकर थे। महावीर का जन्म 599 ईसा पूर्व हुआ था। इनके पिता का नाम राजा सिद्धार्थ और माता का नाम रानी त्रिशला था। वहीं भगवान महावीर का नाम वर्द्धमान था। कौन बनें तीर्थकर जैन धर्म में तीर्थकर का अभिप्राय उन 24 दिव्य महापुरुषों में हैं, जिन्होंने कठोर तपस्या कर आत्मज्ञान प्राप्त किया और जिन्होंने अपनी भावनाओं और इंद्रियों पर पूरी तरह से विजय प्राप्त की। क्यों नहीं धारण करते वस्त्र भगवान महावीर ने अपनी तपस्या के दौरान दिगंबर रहना स्वीकार किया। वहीं दिगंबर मुनि आकाश को अपना वस्त्र मानते हैं, जिस कारण वह लोग वस्त्र धारण करते हैं। जैन मान्यता के अनुसार, वस्त्र विकार को ढकने के लिए होते हैं। जो विकारों से परे हैं, ऐसे मुनि को वस्त्रों को धारण करने की क्या आवश्यकता है। ऐसे मिला ज्ञान भगवान महावीर अपने जीवन के शुरूआती सील सालों तक राजसी वैभव एवं विलास के दलदल में कमल की फूल की तरह रहे। इसके बाद उन्होंने मंगल साधना और आत्म जागृति के लिए 12 साल जंगल में तपस्या की। वह अपनी आराधना में इतना अधिक लीन हो गए कि उनके शरीर से कपड़े अलग होकर गिर गए। 12 साल की मौन तपस्या के बाद उनको 'केवलज्ञान' प्राप्त हुआ। इसके बाद अगले तीस सालों तक वह जनकल्याण हेतु चार तीर्थों साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका की रचना की। महावीर के सिद्धांत भगवान महावीर का आत्म धर्म दुनिया की प्रत्येक आत्मा के लिए एक समान था। वह मानते थे कि हमें दूसरों के प्रति भी ठीक वैसा ही व्यवहार रखना चाहिए। जैसा हमें स्वयं को पसंद हो। वह 'जियो और जीने दो' के सिद्धांत में विश्वास रखते हैं। भगवान महावीर ने इस जगत को मुक्ति का संदेश देते हुए मुक्ति की सरल और सच्ची राह दिखाने का काम किया। उन्होंने आत्मिक और शाश्वत सुख की प्राप्ति हेतु सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह, अचौर्य और ब्रह्मचर्य जैसे पांच मूलभूत सिद्धांतों के बारे में बताया। भगवान महावीर की दृष्टि में हिंसा भगवान महावीर ने अपनी सारी इंद्रियों पर विजय प्राप्त कर जितेंद्र कहलाए। महावीर ने सिर्फ शरीर को कष्ट दिए जाने को हिंसा नहीं माना बल्कि मन, कर्म और वचन से किसी को आहत करना भी वह हिंसा मानते हैं। सबको क्षमा करना भगवान महावीर कहते हैं कि वह सब जीवों से क्षमा चाहते हैं। क्योंकि इस जगत के सभी जीवों के प्रति वह मैत्री भाव रखते हैं। उनका किसी से वैर नहीं है और वह सच्चे हृदय से धर्म में स्थिर हैं। इसलिए वह सब जीवों से अपने सारे अपराधों की क्षमा मांगते हैं। साथ ही सब जीवों ने जो उनके प्रति अपराध किए, उसे भी वह क्षमा करते हैं।

प्रभासाक्षी 21 Apr 2024 9:30 am

Best Gift Ideas: नाराज हो गई है वाइफ, तो बजट के अंदर गिफ्ट देकर खत्म करें दूरियां

अक्सर ऐसा होता है कि रिलेशनशिप में छोटी-मोटी नोकझोंक तो होती रहती है जिसमें हस्बैंड वाइफ का लड़ाई झगड़ा भी शामिल है।

खास खबर 20 Apr 2024 1:58 pm

वर्किंग वुमन अपना काम करें आसान, घर के लिए खरीदे नीचे दिए हुए सामान

आज के समय में ढेर सारी ऐसी महिलाएं हैं जो घर के साथ-साथ ऑफिस का काम भी संभालते हैं लेकिन कई बार घर के काम की वजह से ऑफिस जाने में लेट हो जाता है।

खास खबर 20 Apr 2024 1:57 pm

भारत में हर पांच में से एक व्यक्ति फैटी लिवर से प्रभावित, ये है कारण

डॉक्टरों का कहना है कि सेडेंटरी लाइफस्टाइल और शराब पीने की आदतों के कारण फैटी लीवर के मामले बढ़ रहे हैं। हर पांच में से लगभग एक व्यक्ति फैटी लिवर से प्रभावित है।

खास खबर 19 Apr 2024 5:03 pm

बाल अधिकार आयोग ने एफएसएसएआई से नेस्ले के शिशु आहार उत्पादों में शुगर की मात्रा की समीक्षा करने को कहा

नई दिल्ली, 18 अप्रैल (आईएएनएस)। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने एक रिपोर्ट में स्वास्थ्य दिशा-निर्देशों के उल्लंघन की बात सामने आने के बाद भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं संरक्षा प्राधिकरण (एफएसएसएआई) से नेस्ले के बेबी फूड प्रोडक्ट्स में शुगर की मात्रा की जांच करने के लिए कहा है।

लाइफस्टाइल नामा 18 Apr 2024 9:34 pm

पटना में हवाई जहाज के कारण सड़क पर लगा 'जाम', सैकड़ों गाड़ियां फंसी

पटना, 18 अप्रैल (आईएएनएस)। बिहार की राजधानी पटना में एयर इंडिया का विमान अचानक सड़क पर चलने लगा, जिसे देखने के लिए लोगों की भीड़ लग गई। देखते ही देखते सड़क पर जाम लग गया। हवाई जहाज को सड़क पर चलते देख लोगों ने अपने मोबाइल में इस तस्वीर को कैद कर लिया।

लाइफस्टाइल नामा 18 Apr 2024 8:53 pm

Swaminarayan Jayanti 2024: भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं स्वामीनारायण, जानिए पूजा विधि और महत्व

आज यानी की 17 अप्रैल को स्वामीनारायण जयंती मनाई जा रही है। इस दिन को भगवान स्वामीनारायण के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है। स्वामीनारायण हिंदू धर्म के एक प्रमुख संत और भगवान विष्णु के अवतार माने जाते थे। उनका जन्म 1781 में चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को गुजरात के गांधीनगर में हुआ था। भारत और दुनिया भर के स्वामीनारायण समुदायों द्वारा स्वामीनारायण जयंती को बड़े उत्साह और भक्ति के साथ मनाया जाता है। इस मौके पर मंदिरों व मठों आदि को फूल-मालाओं से सजाया जाता है। बता दें कि इस दिन भक्त प्रभु स्वामीनारायण की पूजा-अर्चना करते हैं। अपनी समृद्ध रीति-रिवाजों और परंपराओं के लिए स्वामीनारायण संप्रदाय जाना जाता है। भगवान स्वामीनारायण के जीवन और शिक्षाओं पर ये रीति-रिवाज और परंपराएं आधारित हैं। इनका मुख्य उद्देश्य भक्तों को आध्यात्मिक जीवन जीने के लिए प्रेरित करने के साथ ही भगवान के करीब जाने में सहायता करता है। इसे भी पढ़ें: Ram Navami: रामनवमी के मौके पर बन रहा अद्भुत संयोग, इस शुभ मुहूर्त में करें श्रीराम की पूजा स्वामी नारायण जयंती डेट हर साल चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को स्वामी नारायण जयंती मनाई जाती है। इस साल 17 अप्रैल को नवमी तिथि पड़ रही है। ऐसे में इस बार 17 अप्रैल 2024 को स्वामी नारायण जयंती मनाई जा रही है। पूजा विधि इस दिन सुबह जल्दी स्नान आदि कर घर की साफ-सफाई करें। फिर भगवान स्वामी नारायण की मूर्ति को पालने में रखकर उसे सजाएं। इसके बाद भगवान स्वामी नारायण को कुमकुम, चावल और अन्य पूजन सामग्री अर्पित करें और फिर फल-फूल आदि चढ़ाएं। भगवान की पूजा के बाद आरती करें और भोग लगाएं। पूजा के अंत में पूजा में हुई भूलचूक के लिए क्षमायाचना करें। स्वामी नारायण जयंती का महत्व बता दें कि स्वामी नारायण के भक्त हर साल इस दिन को बेहद धूमधाम से मनाते हैं। मान्यता के अनुसार, भगवान स्वामीनारायण की मां भक्ति माता उनको घनश्याम कहती थीं। वहीं स्वामी नारायण के पिता उन्हें धर्मदेव कहा करते थे।

प्रभासाक्षी 17 Apr 2024 8:37 am

Ram Navami: रामनवमी के मौके पर बन रहा अद्भुत संयोग, इस शुभ मुहूर्त में करें श्रीराम की पूजा

आज यानी की 17 अप्रैल 2024 को रामनवमी का पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है। हर साल चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को रामनवमी मनाई जाती है। वहीं इस बार अयोध्या में राम मंदिर बनने के बाद रामनवमी अधिक खास होगी। लोगों के मन में रामनवमी को लेकर उत्सुकता अधिक बढ़ गई है। वहीं इस साल रामनवमी के अवसर पर अयोध्‍या के राम मंदिर में भगवान रामलला का सूर्य तिलक होगा। बता दें कि त्रेतायुग में चैत्र शुक्ल नवमी तिथि को प्रभु श्रीराम का जन्म हुआ था। जिसके बाद से हर बार इसे रामनवमी के तौर पर मनाया जाता है। आज इस आर्टिकल के जरिए हम आपको रामनवमी के महत्व, इतिहास, शुभ योग और महात्म्य के बारे में बताने जा रहे हैं। इसे भी पढ़ें: Ram Navami 2024: रवि योग और सर्वार्थ सिद्धि योग में 17 अप्रैल को मनाई जाएगी रामनवमी रामनवमी का पर्व हिंदू पंचांग के मुताबिक इस बार 16 अप्रैल 2024 को दोपहर 01:23 मिनट पर रामनवमी तिथि शुरू हो जाएगी। वहीं 17 अप्रैल 2024 यानी की आज दोपहर 03:14 मिनट पर इस तिथि की समाप्ति होगी। उदयातिथि के हिसाब से 17 अप्रैल को रामनवमी का पर्व मनाया जा रहा है। वहीं इसी दिन चैत्र नवरात्रि की समाप्ति होगी। बता दें कि जो भी लोग 9 दिन का व्रत करते हैं, वह रामनवमी के दिन व्रत का पारण कर व्रत पूरा करेंगे। शुभ योग इस मौके पर पूरे दिन रवि योग बन रहा है। वहीं इस दिन भगवान राम का जन्‍मोत्‍सव धूमधाम से मनाया जाएगा। रामनवमी की पूर्ण रात्रि तक अश्लेषा नक्षत्र बन रहा है। पूजा का शुभ मुहूर्त रामनवमी की पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 11:50 मिनट से 12:21 मिनट तक है। इसके बाद शुभ चौघड़िया भी रहेगा। हांलाकि 11:50 मिनट से 01:38 मिनट तक का समय पूजन के लिए उपयुक्त है। राम नवमी का महत्‍व और महात्‍म्‍य पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक चैत्र शुक्‍ल नवमी तिथि पर अयोध्‍या के राजा दशरथ के घर मां कौशल्या ने भगवान विष्णु के अवतार श्रीराम का जन्म हुआ था। तब से इस दिन को रामनवमी के तौर पर मनाया जाता है। रामनवमी के मौके पर मंदिरों व मठों में हवन, यज्ञ और भंडारे आदि किए जाते हैं। वहीं इस दिन घर में हवन-पूजन किया जाता है। रामनवमी के मौके पर प्रभु राम के साथ मां सीता की पूजा करने से मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है।

प्रभासाक्षी 17 Apr 2024 8:27 am

Ram Navami 2024: रवि योग और सर्वार्थ सिद्धि योग में 17 अप्रैल को मनाई जाएगी रामनवमी

चैत्र नवरात्र के अंतिम दिन 17 अप्रैल को रामनवमी मनाई जाएगी। भगवान श्रीराम का जन्म कर्क लग्न और अभिजीत मुहूर्त में मध्यान्ह 12 बजे हुआ था। अयोध्या में इस मौके पर दोपहर 12 बजे रामलला का सूर्य तिलक होगा। इस दौरान अभिजीत मुहूर्त रहेगा। वाल्मीकि रामायण के मुताबिक त्रेतायुग में इसी समय श्रीराम का जन्म हुआ था। श्रीराम जन्म पर पूजा और व्रत करने की परंपरा है। पाल बालाजी ज्योतिष संस्थान जयपुर जोधपुर के निदेशक ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि राम नवमी इस साल 17 अप्रैल 2024 को मनाई जाएगी। नवमी तिथि की शुरुआत 16 अप्रैल 2024 को दोपहर 01.23 मिनट पर शुरू होगी और अगले दिन 17 अप्रैल 2024 को दोपहर 03.14 मिनट पर समाप्त होगी। हिंदू कैलेंडर के मुताबिक चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की नवमीं तिथि 17 अप्रैल को रामनवमी मनाई जाएगी। इस दिन पूरे देश में धूमधाम से राम जन्मोत्सव मनाया जाएगा। धार्मिक मान्यता के अनुसार इस दिन ही मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम का जन्म राजा दशरथ के घर पर हुआ था। इस दिन प्रभु श्रीराम की विधि-विधान के साथ पूजा-अर्चना की जाती है। ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भगवान राम का जन्म मध्यान्ह में अभिजीत मुहूर्त में हुआ था। उस समय सूर्य, बुध, गुरु, शुक्र और शनि ग्रह का विशेष योग बना था। जबकि सूर्य, मंगल, गुरु, शुक्र और शनि अपनी-अपनी उच्च राशि में मौजूद थे। हिन्दू पंचांग के अनुसार इस दिन रामनवमी के दिन 17 अप्रेल को शुभ योग बन रहा है जो इसे बहुत खास बना रहा है। इस वर्ष रामनवमी पर बहुत ही शुभ योग बन रहा है। इस बार राम नवमी के दिन आश्लेषा नक्षत्र, रवि योग और सर्वार्थ सिद्धि योग बन रहा है। राम नवमी पर सर्वार्थ सिद्धि योग सुबह 05:16 मिनट से लेकर 06:08 मिनट तक रहेगा। वहीं पूरे दिन रवि योग का संयोग बनेगा। 17 अप्रेल को रवि योग लग रहा है जो पूरे दिन रहने वाला है। ज्योतिष शास्त्र में रवि योग को बहुत शुभ माना गया है। इस योग में सूर्य का प्रभाव होने से भक्तों को सभी तरह के कष्टों से मुक्ति मिल जाती है। इस योग में धार्मिक कार्य ओर हवन पूजन करने से जीवन में सफलता और मान-सम्मान की प्राप्ति होती है। इसे भी पढ़ें: Chaitra Navratri 2024: नवरात्रि की अष्टमी-नवमी तिथि पर करें कन्या पूजन, मिलेगी परेशानियों से मुक्ति सूर्य तिलक के समय बनेंगे 9 शुभ योग, तीन ग्रहों की स्थिति त्रेतायुग जैसी ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि दोपहर 12 बजे जब रामलला का सूर्य तिलक होगा, उस समय केदार, गजकेसरी, पारिजात, अमला, शुभ, वाशि, सरल, काहल और रवियोग बनेंगे। इन 9 शुभ योग में रामलला का सूर्य तिलक होगा। वाल्मीकि रामायण में लिखा है कि राम जन्म के समय सूर्य और शुक्र अपनी उच्च राशि में थे। चंद्रमा खुद की राशि में मौजूद थे। इस दिन गुरु व सूर्य के एक साथ मेष राशि में रहने पर गुरु आदित्य योग का शुभ संयोग बन रहा है। ऐसा योग 12 साल बाद बन रहा है। शास्त्रों के अनुसार सूर्य मेष राशि में उच्च का होता है और गुरु समकारक मित्र है। इस साल भी ऐसा ही हो रहा है। सितारों का ये संयोग देश के लिए शुभ संकेत है। रवि योग भविष्यवक्ता डॉ अनीष व्यास ने बताया कि नवरात्र पर्व के दौरान रवि योग बन रहा है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार रवि योग में सभी प्रकार के दोषों से मुक्ति मिलती है। रवि योग को शुभ योग माना जाता है, जिसमें सूर्य का प्रभाव होता है। इस दौरान की गई पूजा-पाठ मान-सम्मान और करियर में सफलता प्रदान करते हैं। कर्क लग्न इस बार राम नवमी पर चंद्रमा कर्क राशि में मौजूद रहेगा। आपको बता दें कि भगवान विष्णु के सातवें अवतार प्रभु राम का जन्म कर्क लग्न में ही हुआ था। राम नवमी मुहूर्त भविष्यवक्ता एवं कुंडली विश्लेषक डॉ अनीष व्यास ने बताया कि इस साल राम नवमी 17 अप्रैल 2024 को है। पंचांग के अनुसार चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि 16 अप्रैल 2024 को दोपहर 01.23 मिनट पर शुरू होगी और अगले दिन 17 अप्रैल 2024 को दोपहर 03.14 मिनट पर समाप्त होगी। क्या है सूर्य अभिषेक भविष्यवक्ता एवं कुंडली विश्लेषक डॉ अनीष व्यास ने बताया कि सूर्य की पहली किरण से मंदिर का अभिषेक होना बहुत शुभ माना जाता है । सनातन धर्म में सूर्य को ऊर्जा का स्रोत और ग्रहों का राजा माना जाता है । ऐसे में जब देवता अपनी पहली किरण से भगवान का अभिषेक करते हैं । तो उसे आराधना में और देवत्व का भाव जाग जाता है । इस परिकल्पना को सूर्य किरण अभिषेक कहा जाता है। सूर्य अभिषेक का महत्व भविष्यवक्ता एवं कुंडली विश्लेषक डॉ अनीष व्यास ने बताया कि श्री राम जन्म से सूर्यवंशी थे और उनके कुल देवता सूर्यदेव हैं। मान्यता है चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को दोपहर 12:00 बजे श्रीराम का जन्म हुआ था। उस समय सूर्य अपने पूर्ण प्रभाव में थे। सनातन धर्म के अनुसार उगते हुए सूर्यदेव को अर्घ्य देने, दर्शन व पूजा करने से बल, तेज व आरोग्य की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही कुंडली में सूर्य की स्थिति भी मजबूत होती है। विशेष दिनों में सूर्यदेव की पूजा दोपहर के समय में ही होती है क्योंकि तब सूर्यदेव अपने पूर्ण प्रभाव में होते हैं। - डा. अनीष व्यास भविष्यवक्ता एवं कुंडली विश्लेषक

प्रभासाक्षी 16 Apr 2024 4:06 pm

Durga Ashtami: चैत्र नवरात्रि की महाअष्टमी पर बन रहे कई शुभ योग, जानिए कन्या पूजन का मुहूर्त

आज चैत्र नवरात्रि का आठवां दिन है। इस दिन मां दुर्गा के आठवें स्वरूप महागौरी की पूजा की जाती है। इस दिन को दुर्गा अष्टमी भी कहा जाता है। बताया जाता है कि जो भी भक्त इस दिन दुर्गा अष्टमी पर उपवास कर मां गौरी की विधि-विधान से पूजा-अर्चना करता है, उनके जीवन में सभी तरह के कष्टों का नाश होता है। आज के दिन कई शुभ योगों का निर्माण हो रहा है। दुर्गा अष्टमी के मौके पर सर्वार्थ सिद्धि योग और पुष्य नक्षत्र में किए गए सभी कार्य सिद्ध होते हैं। आइए जानते हैं दुर्गा अष्टमी पर पूजन विधि और शुभ मुहूर्त इसे भी पढ़ें: Chaitra Navratri 2024: नवरात्रि की अष्टमी-नवमी तिथि पर करें कन्या पूजन, मिलेगी परेशानियों से मुक्ति दुर्गा अष्टमी पर शुभ मुहूर्त इस बार अष्टमी तिथि की शुरूआत 15 अप्रैल को दोपहर 12:11 मिनट से हुई। वहीं आज यानी की 16 अप्रैल को दोपहर 01:23 मिनट पर इस तिथि की समाप्ति होगी। नवरात्रि की अष्टमी तिथि को कन्या पूजन करना बेहद अहम माना जाता है। कन्या पूजन का शुभ मुहूर्त महाअष्टमी पर कन्या पूजन का मुहूर्त सुबह 07:51 मिनट से लेकर सुबह 10:41 मिनट तक रहेगा। वहीं अभिजीत मुहूर्त में भी कन्या पूजन किया जा सकता है। बता दें कि 16 अप्रैल को सुबह 11:55 मिनट से लेकर दोपहर 12:47 तक अभिजीत मुहूर्त रहेगा। शुभ योग दुर्गा अष्टमी के मौके पर सर्वार्थ सिद्धि योग और रवि योग का निर्माण हो रहा है। सुबह 05:16 मिनट से लेकर 17 अप्रैल को सुबह 05:53 मिनट तक सर्वार्थ सिद्धि और रवि योग रहेगा। कन्या पूजन विधि महाअष्टमी के मौके पर कन्या पूजन के लिए कन्याओं को एक दिन पहले आमंत्रित किया जाता है। इस दिन कन्याओं के आने पर पुष्प वर्षा की जाती है और मां दुर्गा के नामों का स्मरण किया जाता है। फिर इन कन्याओं को आसन पर बिठाकर सभी के पैरों को अपने हाथों से धोना चाहिए। इसके बाद पैर छूकर आशीर्वाद लेना चाहिए। कन्याओं के माथे पर कुमकुम, अक्षत और पुष्प लगाएं। मां दुर्गा का स्मरण करते हुए देवी रूपी कन्याओं को इच्छानुसार भोजन कराना चाहिए। फिर सामर्थ्य के अनुसार, कन्याओं को उपहार दें और पैर छूकर उनको आशीर्वाद दें। आप चाहें तो 9 कन्याओं के बीच एक बालक को कालभैरव के रूप में भी बिठा सकते हैं।

प्रभासाक्षी 16 Apr 2024 9:48 am

क्या हार्ट वाल्व की सिकुड़न को आयुर्वेदिक इलाज से ठीक किया जा सकता है ?, यहां पढ़ें

हृदय के वाल्व की सिकुड़न, जिसे हृदय वाल्व रोग या हृदय वाल्व की खराबी के रूप में जाना जाता है

खास खबर 15 Apr 2024 6:40 pm

बच्चों में चिड़चिड़ापन, पैदा कर सकती है मुश्किल, इन आसान तरीकों से उसे करें दूर

आजकल कीबदलती लाइफस्टाइल में देखने कोमिल रहा है किज्यादातर बच्चों के स्वभाव मेंचिड़चिड़ापन और गुस्सा आनेलगा है। यह आदतउनके व्यक्तित्व का हिस्सा भीबन सकती है। बच्चोंका यह व्यवहार अनदेखाकरना उनके ही भविष्यके लिए घातक साबितहो सकता है। बच्चोंका चिड़चिड़ापन आप घर पर ही दूर कर सकते हैं। इसके लिए आप कुछ ऐसा करें जो उसे अच्छालगता हो।....

खास खबर 15 Apr 2024 10:46 am

Yamuna Chhath 2024: कब है यमुना छठ और क्यों मनाई जाती है? जानें इसका महत्व

चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि के दिन यमुना छठ मनाया जाता है, यह त्योहार मथुरा और वृंदावन और गुजरात में बहुत ही भव्य तरीके से मनाया जाता है। शास्त्रो के मुताबिक इस धरती पर देवी यमुना अवतरित हुईं थी। इसलिए इसे यमुना जयंती के नाम से भी जाना जाता है। भारत में कई सारी नदिया हैं इन में से एक है यमुना नदी जो काफी पवित्र है। यमुना छठ के दिन यमुना नदी में स्नान करना विशेष महत्व है, कहा जाता है कि इससे यम के यातनाएं नहीं झेलनी पड़ती जानें यमुना छठ 2024 की डेट कब है और इसका शुभ मुहूर्त और महत्व। यमुना छठ 2024 डेट हिंदू कैलेंडर के अनुसार यमुना छठ 14 अप्रैल 2024 को मनाई जाएगी। इसे चैती छठ के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक कथाओं में देवी यमुना को भगवान श्री कृष्ण की पत्नी माना जाता है। इसी वजह से यमुना मुख्य रुप से ब्रजवासियों में ज्यादा पूजनीय हैं। यमुना छठ 2024 मुहूर्त ज्योतिष के अनुसार, चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि 13 अप्रैल 2024 को दोपहर 12 बजकर 04 मिनट पर शुरु होगी। इसकी समाप्ति 14 अप्रैल 2024 को सुबह 11 बजकर 43 पर होगी। इस दिन सूर्योदय से पूर्व यमुना नदी में स्नान कर पूजा, पाठ करें। - स्नान- दान समय- सुबह 04.47- सुबह 5.12 - रवि योग- सुबह 05.56- प्रातः 1.35, 15 अप्रैल - त्रिपुष्कर योग- प्रातः 01.35 - सुबह 05.55, 15 अप्रैल यमुना छठ का महत्व सनातन धर्म में गंगा को ज्ञान की देवी और यमुना को भक्ति का सागर माना गया है। ऐसा माना जाता है कि यमराज ने यमुना को ये वरदान दिया था कि जो भी व्यक्ति यमुना नदी में स्नान करेगा।, उसे यमलोक नहीं जाना पड़ेगा। इसी वजह से यमुना जंयती के दिन ब्रज यमुना में आस्था की डूबकी लगाई जाती है। यमुना में स्नान करने से व्यक्ति के सारे पाप धुल जाते हैं। शनि की शुभता भी प्राप्त होती क्योंकि देवी यमुना सूर्य और छाया की पुत्री हैऔर मुत्य के देवता यमराज और शनि देव की बहन मानी जाती है।

प्रभासाक्षी 13 Apr 2024 1:08 pm

Vinayak Chaturthi 2024: चैत्र विनायक चतुर्थी व्रत से सभी संकट होते हैं दूर

आज चैत्र विनायक चतुर्थी है, यह साल की पहली विनायक चतुर्थी है। गणेश जी की पूजा करने से सभी संकट दूर होते हैं और मनोकामनाएं पूर्ण होती है, तो आइए हम आपको चैत्र विनायक चतुर्थी की व्रत-विधि तथा महत्व के बारे में बताते हैं। जानें चैत्र विनायक चतुर्थी के बारे में चैत्र विनायक चतुर्थी व्रत की विशेषता यह है कि यह व्रत हर महीने में दो बार आता है। महीने में दो चतुर्थी आती हैं ऐसे में दोनों तिथियां ही विघ्नहर्ता भगवान गणेश को समर्पित मानी जाती हैं। गणेश जी सभी देवताओं में प्रथम पूज्य हैं। उन्हें शुभता का प्रतीक माना जाता है। भगवान गणेश भक्तों के विघ्नहर्ता माने जाते हैं। पंडितों का मानना है कि विनायक चतुर्थी के दिन गणपति बप्पा की पूजा करने से ज्ञान और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। हर माह में दो चतुर्थी तिथि पड़ती है। पहली कृष्ण पक्ष की चतुर्थी जिसे संकष्टी चतुर्थी कहते हैं, दूसरी शुक्ल पक्ष की चतुर्थी, जिसे विनायक चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। यह दोनों ही चतुर्थी तिथि भगवान गणेश को समर्पित है। इसे भी पढ़ें: Special on Navratri Festival: नौ शक्तियों का मिलन पर्व है नवरात्रि प्रत्येक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को चैत्र विनायक चतुर्थी व्रत रखा जाता है। इस माह विनायक चतुर्थी 12 अप्रैल 2024 शुक्रवार के दिन है। हिंदू धर्म में भगवान गणेश को शुभकर्ता माना जाता है। ऐसे में इस दिन गणपति जी की पूजा करने वालों को भगवान की विशेष कृपा मिलती है। इस दौरान लोगों द्वारा व्रत किया जाता है। चैत्र विनायक चतुर्थी के खास दिन पर श्री गणेश की पूजा करने से भक्तों के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। इस दौरान पूजा विधि का खास ध्यान रखा जाता है। चैत्र विनायक चतुर्थी का महत्व पंडितों के अनुसार चैत्र विनायक चतुर्थी का विशेष महत्व होता है। इस दिन भगवान गणेश की पूजा करने से सभी समस्याएं दूर हो जाती हैं। भगवान गणेश की पूजा करने से कार्यों में किसी भी तरह की कोई रुकावट नहीं आती है। इसलिए गणपति महाराज को विघ्नहर्ता के नाम से भी जाना जाता है। चैत्र विनायक चतुर्थी पर करें ये उपाय चैत्र विनायक चतुर्थी का दिन बहुत खास होता है। शास्त्रों के अनुसार अगर आप इस दिन गणेश जी को शतावरी चढ़ाते हैं तो इससे व्यक्ति की मानसिक शांति बनी रहती है। गेंदे के फूल की माला को घर के मुख्य द्वार पर बांधने से घर की शांति वापस आती है। साथ ही गणेश जी को अगर चौकोर चांदी का टुकड़ा चढ़ाया जाए तो घर में चल रहा संपत्ति को लेकर विवाह खत्म हो जाता है। किसी भी पढ़ाई में परेशानी हो तो आपको विनायक चतुर्थी पर ऊं गं गणपतये नम: मंत्र का जाप 108 बार करना चाहिए। विनायक चतुर्थी के दिन गणेश जी को 5 इलायची और 5 लौंग चढ़ाए जाने से जीवन में प्रेम बना रहता है। वैवाहिक जीवन में किसी भी तरह की परेशानी आ रही हो तो विनायक चतुर्थी के दिन गणेश जी के किसी मंदिर में जाकर हरे रंग के वस्त्र चढ़ाएं। साथ ही चैत्र विनायक चतुर्थी के दिन मूषक पर सवार गणेश जी की मूर्ति या तस्वीर की पूजा करें। भगवान गणेश को मोदक बेहद प्रिय है इस दौरान मोदक का भोग लगाएं। इससे आपकी मनोकामना जरूर पूरी होगी। विनायक चतुर्थी को पूजा के समय गणेश जी को दूर्वा की 5 या 21 गांठ ''इदं दुर्वादलं ऊं गं गणपतये नमः'' मंत्र के साथ अर्पित करें। इस दिन गणेश जी को लाल सिंदूर का तिलक लगाएं । इस दिन पूजा के समय गणेश जी को शमी के पत्ते अर्पित करें। इससे आपकी हर मनोकामनाएं पूरी करेंगे। जानें चैत्र विनायक चतुर्थी का शुभ मुहूर्त विनायक चतुर्थी के दिन गणेश पूजा का शुभ मुहूर्त 11 बजकर 05 मिनट से दोपहर 01 बजकर 11 मिनट तक रहेगा। इस दौरान आपको पूजा के लिए 2 घंटे से अधिक का समय प्राप्त होगा। चैत्र विनायक व्रत की पौराणिक कथा भी है रोचक शास्त्रों में विनायक व्रत से जुड़ी एक पौराणिक कथा प्रचलित है। इस कथा के अनुसार माता पार्वती के मन में एक बार विचार आया कि उनका कोई पुत्र नहीं है। इस तरह एक दिन स्नान के समय अपने उबटन से उन्होंने एक बालक की मूर्ति बनाकर उसमें जीव भर दिया। उसके बाद वह एक कुंड में स्नान करने के लिए चली गयीं। उन्होंने जाने से पहले अपने पुत्र को आदेश दे दिया कि किसी भी परिस्थिति में किसी भी व्यक्ति को अंदर प्रवेश नहीं करने देना। बालक अपनी माता के आदेश का पालन करने के लिए कंदरा के द्वार पर पहरा देने लगता है। थोड़ी देर बाद जब भगवान शिव वहां पहुंचे तो बालक ने उन्हें रोक दिया। भगवान शिव बालक को समझाने का प्रयास करने लगे लेकिन वह नहीं माना। क्रोधित होकर भगवान शिव त्रिशूल से बालक का शीश धड़ से अलग कर दिया। उसके बाद माता पार्वती के कहने पर उन्होंने उस बालक को पुनः जीवित किया। चैत्र विनायक चतुर्थी के दिन ऐसे करें पूजा चैत्र विनायक चतुर्थी का दिन बहुत खास होता है। इसलिए इस दिन सुबह उठ कर स्नान करें। स्नान करने के बाद घर के मंदिर में दीप जलाएं और भगवान गणेश को स्नान कराएं। इसके बाद भगवान गणेश को साफ वस्त्र पहनाएं। भगवान गणेश को सिंदूर का तिलक भी लगाएं। गणेश भगवान को दुर्वा प्रिय होती है इसलिए दुर्वा अर्पित करनी चाहिए। गणेश जी को लड्डू, मोदक का भोग भी लगाएं इसके बाद गणेश जी की आरती करें। विनायक चतुर्थी पर स्वर्ग की भद्रा चैत्र की विनायक चतुर्थी के दिन भद्रा लग रही है। भद्रा सुबह 05 बजकर 59 मिनट से लग जाएगी और उसका समापन दोपहर में 01 बजकर 11 मिनट पर होगा। इस भद्रा का वास स्वर्ग में है, इसलिए इसका दुष्प्रभाव पृथ्वी पर नहीं होगा। - प्रज्ञा पाण्डेय

प्रभासाक्षी 12 Apr 2024 12:20 pm

इन उपायों से बचाया जा सकता है त्वचा पर प्रदूषण से होने वाले प्रभावों को

वायु प्रदूषण में कुछ ऐसे पॉल्यूटेंटभी मौजूद हो सकते हैं,जिन्हें सादा आंखों सेदेखना मुश्किल होता है। हीटिंग,इंडस्ट्री और गाड़ियों सेनिकलने वाला धुंआ भीवायु प्रदूषण में शामिल है।ये सारे तत्व मिलकरआपकी त्वचा को नुकसान पहुंचातेहैं।.....

खास खबर 12 Apr 2024 11:04 am

Matsya Jayanti 2024 । शुभ है इस साल की मत्स्य जयंती, जानें भगवान विष्णु ने क्यों लिया था ये अवतार, कैसे रोका था दुनिया का विनाश

आज देशभर में मत्स्य जयंती मनाई जा रही है। बता दें चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को ये जयंती मनाई जाती है। यह त्यौहार भगवान विष्णु के पहले अवतार भगवान मत्स्य की जयंती को चिंहित करता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान मत्स्य के रूप में भगवान विष्णु ने अपना सबसे पहला अवतार लिया था। उन्होंने मछली का रूप धारण किया था और दुनिया को विनाश से बचाया था। मत्स्य जयंती पर भगवान विष्णु के लिए विस्तृत पूजा का आयोजन किया जाता है। इसी के साथ लोग जरूरतमंदों को कपड़े और अन्य चीजें दान करते हैं। कब है मत्स्य जयंती 2024? हिंदू कैलेंडर के अनुसार, इस वर्ष चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि बुधवार 10 अप्रैल को शाम 05 बजकर 32 मिनट पर प्रारंभ होगी। गुरुवार 11 अप्रैल को दोपहर 03 बजकर 03 मिनट पर इसका समापन हो जाएगा। उदयातिथि तिथि के आधार पर मत्स्य जयंती 11 अप्रैल गुरुवार को मनाई जाएगी। मत्स्य जयंती पर बन रहे 3 शुभ योग इस साल की मत्स्य जयंती शुभ है क्योंकि इसपर 3 शुभ योग का निर्माण हो रहा है। मत्स्य जयंती के दिन रवि योग, प्रीति योग और आयुष्मान योग बनेंगे। रवि योग प्रात: काल 6 बजे से प्रारंभ होगा और देर रात 01 बजकर 38 मिनट तक रहेगा। प्रीति योग भी प्रात: काल से शुरू होगा और सुबह 07 बजकर 19 मिनट तक रहेगा। प्रीति योग के बाद आयुष्मान योग प्रारंभ होगा, जो 12 अप्रैल शुक्रवार को प्रात: 04 बजकर 30 मिनट तक रहेगा। बता दें, मत्स्य जयंती वाले दिन कृत्तिका नक्षत्र सुबह से लेकर देर रात 01 बजकर 38 मिनट है, उसके बाद रोहिणी नक्षत्र लग जायेगा। भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार लेने की कहानी पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान विष्णु ने अपना पहला अवतार मछली के रूप में लिया था। उन्होंने अपना मत्स्य अवतार पुष्पभद्रा नदी के किनारे लिया था। मत्स्य जयंती पर भगवान विष्णु प्रकट हुए और उन्होंने भयानक जल प्रलय से दुनिया की रक्षा की थी। भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार ने अधर्म का नाश करके, धर्म की स्थापना की थी। बता दें, विष्णु जी का मत्स्य अवतार ज्ञान और शिक्षा का भी प्रतीक माना जाता है। मान्यताओ के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु के इस अवतार की पूजा करने से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है। साथ ही मन से मांगी गयी सभी मनोकामनाएं भी पूरी होती हैं। विष्णु जी के मत्स्य अवतार के इन मंत्रों का करें जाप 'ॐ मत्स्याय नमः' 'ॐ महाशयाय नमः' 'ॐ महातेजसे नमः' 'ॐ मुखमहानभसे नमः' 'ॐ महाभूतपालकाय नमः' 'ॐ मरुत्पतये नमः' 'ॐ मनोमयाय नमः' 'ॐ मानवर्धनाय नमः' 'ॐ महोदराय नमः' 'ॐ मध्यरहिताय नमः' 'ॐ मोहकाय नमः' 'ॐ महोदयाय नमः'

प्रभासाक्षी 11 Apr 2024 12:48 pm

Gangaur 2024: राजस्थान का प्रमुख लोक पर्व है गणगौर

राजस्थान का नाम सुनते ही मन ख़ुशी से झूम उठता है। राजस्थान के पर्व त्योहार अपने आप में अलग ही महत्व रखतें हैं। राजस्थानी परम्परा के लोकोत्सव अपने में एक विरासत को संजोए हुए हैं। राजस्थान को देव भूमि कहा जाय तो गलत नहीं होगा। यहां सभी सम्प्रदाय फले फूले हैं। यहाँ के शासकों ने विश्व कल्याण की भवना से अभिभूत होकर लोक मान्यताओं का सम्मान किया है। इसी कारण यहां सभी देवी देवताओं के उत्सव बड़ी धूमधाम से मनाये जाते हैं। गणगौर का उत्सव भी ऐसा ही लोकोत्सव है। जिसकी पृष्ठ भूमि पौराणिक है। समय के प्रभाव से उनमें शास्त्राचार के स्थान पर लोकाचार हावी हो गया है। परन्तु भाव भंगिमा में कोई कमी नहीं आई है। गणगौर भी राजस्थान का ऐसा ही एक प्रमुख लोक पर्व है। लगातार 17 दिनों तक चलने वाला गणगौर का पर्व मूलतः कुंवारी लड़कियों व महिलाओं का त्यौंहार है। राजस्थान की महिलाएं चाहे दुनिया के किसी भी कोने में हो गणगौर के पर्व को पूरी उत्साह के साथ मनाती है। विवाहिता एंव कुवारी सभी आयु वर्ग की महिलायें गणगौर की पूजा करती है। गणगौर शब्द भगवान शिव और पार्वती के नाम से बना है। गण यानि भगवान शिव और गौर यानि पार्वती। इसलिए शिव-पार्वती की पूजा के रूप में इस त्यौहार को मनाया जाता है। इसे भी पढ़ें: Gangaur 2024: अखण्ड सौभाग्य के लिए सुहागिन महिलाएं 11 अप्रैल को रखेंगी गणगौर का व्रत होली के दूसरे दिन से सोलह दिनों तक लड़कियां प्रतिदिन प्रातः काल ईसर-गणगौर को पूजती हैं। जिस लड़की की शादी हो जाती है वो शादी के प्रथम वर्ष अपने पीहर जाकर गणगौर की पूजा करती है। इसी कारण इसे सुहागपर्व भी कहा जाता है। कहा जाता है कि चैत्र शुक्ला तृतीया को राजा हिमाचल की पुत्री गौरी का विवाह शंकर भगवान के साथ हुआ था। उसी की याद में यह त्यौहार मनाया जाता है। गणगौर व्रत गौरी तृतीया चैत्र शुक्ल तृतीया तिथि को किया जाता है। इस व्रत का राजस्थान में बड़ा महत्व है। कहते हैं इसी व्रत के दिन देवी पार्वती ने अपनी उंगली से रक्त निकालकर महिलाओं को सुहाग बांटा था। इसलिए महिलाएं इस दिन गणगौर की पूजा करती हैं। राजस्थान की राजधानी जयपुर में गणगौर उत्सव दो दिन तक धूमधाम से मनाया जाता है। सरकारी कार्यालयों में आधे दिन का अवकाश रहता है। ईसर और गणगौर की प्रतिमाओं की शोभायात्रा राजमहल से निकलती है। इनको देखने बड़ी संख्या में देशी-विदेशी सैनानी उमड़ते हैं। सभी उत्साह से भाग लेते हैं। इस उत्सव पर एकत्रित भीड़ जिस श्रद्धा एवं भक्ति के साथ धार्मिक अनुशासन में बंधी गणगौर की जय-जयकार करती हुई भारत की सांस्कृतिक परम्परा का निर्वाह करती है उसे देख कर अन्य धर्मावलम्बी भी इस संस्कृति के प्रति श्रद्धा भाव से ओतप्रोत हो जाते हैं। ढूंढाड़ की भांति ही मेवाड़, हाड़ौती, शेखावाटी सहित इस मरुधर प्रदेश के विशाल नगरों में ही नहीं बल्कि गांव-गांव में गणगौर पर्व मनाया जाता है एवं ईसर-गणगौर के गीतों से हर घर गुंजायमान रहता है। कामदेव मदन की पत्नी रति ने भगवान शंकर की तपस्या कर उन्हें प्रसन्न कर लिया तथा उन्हीं के तीसरे नेत्र से भष्म हुए अपने पति को पुनः जीवन देने की प्रार्थना की। रति की प्रार्थना से प्रसन्न हो भगवान शिव ने कामदेव को पुनः जीवित कर दिया तथा विष्णुलोक जाने का वरदान दिया। उसी की स्मृति में प्रतिवर्ष गणगौर का उत्सव मनाया जाता है। गणगौर पर्व पर विवाह के समस्त नेगचार व रस्में की जाती है। होलिका दहन के दूसरे दिन गणगौर पूजने वाली लड़कियां होली दहन की राख लाकर उसके आठ पिण्ड बनाती हैं एवं आठ पिण्ड गोबर के बनाती हैं। उन्हें दूब पर रखकर प्रतिदिन पूजा करती हुई दीवार पर एक काजल व एक रोली की टिकी लगाती हैं। शीतलाष्टमी तक इन पिण्डों को पूजा जाता है। फिर मिट्टी से ईसर गणगौर की मूर्तियां बनाकर उन्हें पूजती हैं। लड़कियां प्रातः ब्रह्ममुहुर्त में गणगौर पूजते हुये गीत गाती हैं:- गौर ये गणगोर माता खोल किवाड़ी, छोरी खड़ी है तन पूजण वाली। गीत गाने के बाद लड़कियां गणगौर की कहानी सुनती है। दोपहर को गणगौर के भोग लगाया जाता है तथा कुए से लाकर पानी पिलाया जाता है। लड़कियां कुए से ताजा पानी लेकर गीत गाती हुई आती हैं:- म्हारी गौर तिसाई ओ राज घाट्यारी मुकुट करो, बीरमदासजी रो ईसर ओराज, घाटी री मुकुट करो, म्हारी गौरल न थोड़ो पानी पावो जी राज घाटीरी मुकुट करो। लड़कियां गीतों में गणगौर के प्यासी होने पर काफी चिन्तित लगती है एवं गणगौर को जल्दी से पानी पिलाना चाहती है। पानी पिलाने के बाद गणगौर को गेहूं चने से बनी घूघरी का प्रसाद लगाकर सबको बांटा जाता है और लड़कियां गीत गाती हैं:- म्हारा बाबाजी के माण्डी गणगौर, दादसरा जी के माण्ड्यो रंगरो झूमकड़ो, ल्यायोजी - ल्यायो ननद बाई का बीर, ल्यायो हजारी ढोला झुमकड़ो। रात को गणगौर की आरती की जाती है तथा लड़कियां नाचती हुई गाती हैं। गणगौर पूजन के मध्य आने वाले एक रविवार को लड़कियां उपवास करती हैं। प्रतिदिन शाम को क्रमवार हर लडकी के घर गणगौर ले जायी जाती है। जहां गणगौर का ’’बिन्दौरा’’ निकाला जाता है तथा घर के पुरुष लड़कियों को भेंट देते हैं। लड़कियां खुशी से झूमती हुई गाती हैं:- ईसरजी तो पेंचो बांध गोराबाई पेच संवार ओ राज म्हे ईसर थारी सालीछां। गणगौर विसर्जन के पहले दिन गणगौर का सिंजारा किया जाता है। लड़कियां मेहन्दी रचाती हैं। नये कपड़े पहनती हैं, घर में पकवान बनाये जाते हैं। सत्रहवें दिन लड़कियां नदी, तालाब, कुए, बावड़ी में ईसर गणगौर को विसर्जित कर विदाई देती हुई दुःखी हो गाती हैं:- गोरल ये तू आवड़ देख बावड़ देख तन बाई रोवा याद कर। गणगौर की विदाई का बाद कई महिनो तक त्यौहार नहीं आते इसलिए कहा गया है-’’तीज त्यौहारा बावड़ी ले डूबी गणगौर’’। अर्थात् जो त्यौहार तीज (श्रावणमास) से प्रारम्भ होते हैं उन्हें गणगौर ले जाती है। ईसर-गणगौर को शिव पार्वती का रूप मानकर ही बालाऐं उनका पूजन करती हैं। गणगौर के बाद बसन्त ऋतु की विदाई व ग्रीष्म ऋृतु की शुरुआत होती है। दूर प्रान्तों में रहने वाले युवक गणगौर के पर्व पर अपनी नव विवाहित प्रियतमा से मिलने अवश्य आते हैं। जिस गोरी का साजन इस त्यौहार पर भी घर नहीं आता वो सजनी नाराजगी से अपनी सास को उलाहना देती है। ’’सासू भलरक जायो ये निकल गई गणगौर, मोल्यो मोड़ों आयो रे’’। हमें आज आवश्यकता है इस लोकोत्सव को अच्छे वातावरण में मनाये। हमारी प्राचीन परम्परा को अक्षुण बनाये रखे। इसका दायित्व है उन सभी सांस्कृतिक परम्परा के प्रेमियों पर है जिनका इससे लगाव है। जो ऐसे पर्वो को सिर्फ पर्यटक व्यवसाय की दृष्टि से न देखकर भारत के सांस्कृतिक विकास की दृष्टि से देखने के हिमायती हैं। अब राजस्थान पर्यटन विभाग की वजह से हर साल मनाए जाने वाले इस गणगौर उत्सव में शामिल होने कई देशी-विदेशी पर्यटक भी पहुँचने लगे हैं। - रमेश सर्राफ धमोरा (लेखक राजस्थान सरकार से मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

प्रभासाक्षी 11 Apr 2024 12:40 pm

Special on Navratri Festival: नौ शक्तियों का मिलन पर्व है नवरात्रि

भारतीय समाज में नवरात्रि पर्व का विशेष महत्व है, जो आदि शक्ति दुर्गा की पूजा का पावन पर्व है। नवरात्रि के नौ दिन देवी दुर्गा के विभिन्न नौ स्वरूपों की उपासना के लिए निर्धारित हैं और इसीलिए नवरात्रि को नौ शक्तियों के मिलन का पर्व भी कहा जाता है। चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से नवरात्रि की शुरुआत होती है और इस बार नवरात्रि पर्व की शुरूआत 9 अप्रैल से हो चुकी है, जिसका समापन रामनवमी के दिन 17 अप्रैल को होगा। प्रतिपदा से शुरू होकर नवमी तक चलने वाले नवरात्र नवशक्तियों से युक्त हैं और हर शक्ति का अपना-अपना अलग महत्व है। नवरात्र के पहले स्वरूप में मां दुर्गा पर्वतराज हिमालय की पुत्री पार्वती के रूप में विराजमान हैं। नंदी नामक वृषभ पर सवार शैलपुत्री के दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का पुष्प है। शैलराज हिमालय की कन्या होने के कारण इन्हें शैलपुत्री कहा गया। इन्हें समस्त वन्य जीव-जंतुओं की रक्षक माना जाता है। दुर्गम स्थलों पर स्थित बस्तियों में सबसे पहले शैलपुत्री के मंदिर की स्थापना इसीलिए की जाती है कि वह स्थान सुरक्षित रह सके। मां दुर्गा के दूसरे स्वरूप ‘ब्रह्मचारिणी’ को समस्त विद्याओं की ज्ञाता माना गया है। माना जाता है कि इनकी आराधना से अनंत फल की प्राप्ति और तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम जैसे गुणों की वृद्धि होती है। ‘ब्रह्मचारिणी’ अर्थात् तप की चारिणी यानी तप का आचरण करने वाली। ब्रह्मचारिणी श्वेत वस्त्र पहने दाएं हाथ में अष्टदल की माला और बाएं हाथ में कमंडल लिए सुशोभित है। कहा जाता है कि देवी ब्रह्मचारिणी अपने पूर्व जन्म में पार्वती स्वरूप में थीं। वह भगवान शिव को पाने के लिए 1000 साल तक सिर्फ फल खाकर रहीं और 3000 साल तक शिव की तपस्या सिर्फ पेड़ों से गिरी पत्तियां खाकर की। इसी कड़ी तपस्या के कारण उन्हें ब्रह्मचारिणी कहा गया। इसे भी पढ़ें: Gangaur 2024: अखण्ड सौभाग्य के लिए सुहागिन महिलाएं 11 अप्रैल को रखेंगी गणगौर का व्रत मां दुर्गा का तीसरा स्वरूप है चंद्रघंटा। शक्ति के रूप में विराजमान मां चंद्रघंटा मस्तक पर घंटे के आकार का आधा चंद्रमा है। देवी का यह तीसरा स्वरूप भक्तों का कल्याण करता है। इन्हें ज्ञान की देवी भी माना गया है। बाघ पर सवार मां चंद्रघंटा के चारों तरफ अद्भुत तेज है। इनके शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला है। यह तीन नेत्रों और दस हाथों वाली हैं। इनके दस हाथों में कमल, धनुष-बाण, कमंडल, तलवार, त्रिशूल और गदा जैसे अस्त्र-शस्त्र हैं। कंठ में सफेद पुष्पों की माला और शीष पर रत्नजडि़त मुकुट विराजमान हैं। यह साधकों को चिरायु, आरोग्य, सुखी और सम्पन्न होने का वरदान देती हैं। कहा जाता है कि यह हर समय दुष्टों का संहार करने के लिए तत्पर रहती हैं और युद्ध से पहले उनके घंटे की आवाज ही राक्षसों को भयभीत करने के लिए काफी होती है। चतुर्थ स्वरूप है कुष्मांडा। देवी कुष्मांडा भक्तों को रोग, शोक और विनाश से मुक्त करके आयु, यश, बल और बुद्धि प्रदान करती हैं। यह बाघ की सवारी करती हुईं अष्टभुजाधारी, मस्तक पर रत्नजडि़त स्वर्ण मुकुट पहने उज्जवल स्वरूप वाली दुर्गा हैं। इन्होंने अपने हाथों में कमंडल, कलश, कमल, सुदर्शन चक्र, गदा, धनुष, बाण और अक्षमाला धारण की हैं। अपनी मंद मुस्कान से ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इनका नाम कुष्मांडा पड़ा। कहा जाता है कि जब दुनिया नहीं थी तो चारों तरफ सिर्फ अंधकार था। ऐसे में देवी ने अपनी हल्की-सी हंसी से ब्रह्मांड की उत्पत्ति की। वह सूरज के घेरे में रहती हैं। सिर्फ उन्हीं के अंदर इतनी शक्ति है, जो सूरज की तपिश को सहन कर सकें। मान्यता है कि वही जीवन की शक्ति प्रदान करती हैं। दुर्गा का पांचवां स्वरूप है स्कन्दमाता। भगवान स्कन्द (कार्तिकेय) की माता होने के कारण देवी के इस स्वरूप को स्कन्दमाता के नाम से जाना जाता है। यह कमल के आसन पर विराजमान हैं, इसलिए इन्हें पद्मासन देवी भी कहा जाता है। इनका वाहन भी सिंह है। इन्हें कल्याणकारी शक्ति की अधिष्ठात्री कहा जाता है। यह दोनों हाथों में कमलदल लिए हुए और एक हाथ से अपनी गोद में ब्रह्मस्वरूप सनतकुमार को थामे हुए हैं। स्कन्द माता की गोद में उन्हीं का सूक्ष्म रूप छह सिर वाली देवी का है। दुर्गा मां का छठा स्वरूप है कात्यायनी। यह दुर्गा देवताओं और ऋषियों के कार्यों को सिद्ध करने लिए महर्षि कात्यायन के आश्रम में प्रकट हुईं। उनकी पुत्री होने के कारण ही इनका नाम कात्यायनी पड़ा। देवी कात्यायनी दानवों व पापियों का नाश करने वाली हैं। वैदिक युग में ये ऋषि-मुनियों को कष्ट देने वाले दानवों को अपने तेज से ही नष्ट कर देती थीं। यह सिंह पर सवार, चार भुजाओं वाली और सुसज्जित आभा मंडल वाली देवी हैं। इनके बाएं हाथ में कमल और तलवार व दाएं हाथ में स्वस्तिक और आशीर्वाद की मुद्रा है। दुर्गा का सातवां स्वरूप कालरात्रि है, जो देखने में भयानक है लेकिन सदैव शुभ फल देने वाला होता है। इन्हें ‘शुभंकारी’ भी कहा जाता है। ‘कालरात्रि’ केवल शत्रु एवं दुष्टों का संहार करती हैं। यह काले रंग-रूप वाली, केशों को फैलाकर रखने वाली और चार भुजाओं वाली दुर्गा हैं। यह वर्ण और वेश में अर्द्धनारीश्वर शिव की तांडव मुद्रा में नजर आती हैं। इनकी आंखों से अग्नि की वर्षा होती है। एक हाथ से शत्रुओं की गर्दन पकड़कर दूसरे हाथ में खड़ग-तलवार से उनका नाश करने वाली कालरात्रि विकट रूप में विराजमान हैं। इनकी सवारी गधा है, जो समस्त जीव-जंतुओं में सबसे अधिक परिश्रमी माना गया है। नवरात्र के आठवें दिन दुर्गा के आठवें रूप महागौरी की उपासना की जाती है। देवी ने कठिन तपस्या करके गौर वर्ण प्राप्त किया था। कहा जाता है कि उत्पत्ति के समय 8 वर्ष की आयु की होने के कारण नवरात्र के आठवें दिन इनकी पूजा की जाती है। भक्तों के लिए यह अन्नपूर्णा स्वरूप हैं, इसलिए अष्टमी के दिन कन्याओं के पूजन का विधान है। यह धन, वैभव और सुख-शांति की अधिष्ठात्री देवी हैं। इनका स्वरूप उज्जवल, कोमल, श्वेतवर्णा तथा श्वेत वस्त्रधारी है। यह एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे में डमरू लिए हुए हैं। गायन और संगीत से प्रसन्न होने वाली ‘महागौरी’ सफेद वृषभ यानी बैल पर सवार हैं। नवीं शक्ति ‘सिद्धिदात्री’ सभी सिद्धियां प्रदान करने वाली हैं, जिनकी उपासना से भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। कमल के आसन पर विराजमान देवी हाथों में कमल, शंख, गदा, सुदर्शन चक्र धारण किए हैं। सिद्धिदात्री देवी सरस्वती का भी स्वरूप हैं, जो श्वेत वस्त्रालंकार से युक्त महाज्ञान और मधुर स्वर से भक्तों को सम्मोहित करती हैं। - योगेश कुमार गोयल (लेखक 34 वर्षों से पत्रकारिता में निरंतर सक्रिय वरिष्ठ पत्रकार हैं)

प्रभासाक्षी 10 Apr 2024 5:01 pm

क्या शुगर के मरीज रोजाना मुनक्का का सेवन कर सकते हैं ?, यहां पढ़ें

मुनक्का का उपयोग आमतौर हमारे घरों में कई तरह की डिश और भिगोकर खाने के लिए किया

खास खबर 9 Apr 2024 12:03 pm

Gudi Padwa 2024: 09 अप्रैल को मनाया जा रहा है गुड़ी पड़वा का पर्व, जानिए मुहूर्त और महत्व

हिंदू पंचांग के मुताबिक हर साल चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से हिंदू नववर्ष शुरू होता है। मुख्य रूप से हिंदू नववर्ष जिसे नव-सवंत्सर भी कहा जाता है, उसे महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा के रूप में मनाया जाता है। वहीं भारत के दक्षिण राज्यों में इसको उगादी नाम से जाना जाता है। गुड़ी पड़वा दो शब्दों से मिलकर बना है, गुड़ी का अर्थ विजय पताका और पड़वा का अर्थ प्रतिपदा तिथि से होता है। इसलिए चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि पर लोग अपने घरों में विजय पताका के रूप में गुड़ी सजाते हैं। साथ ही उत्साह के साथ इस पर्व को मनाया जाता है। धार्मिक मान्यता के मुताबिक इस पर्व को मनाने से घर में सुख-समृद्धि आती है। वहीं घर की नकारात्मक ऊर्जा भी खत्म होती है। तो आज इस आर्टिकल में हम आपको बताने जा रहे हैं कि गुड़ी पड़वा का पर्व क्यों और कैसे मनाया जाता है। इसे भी पढ़ें: Chaitra Navratri 2024: नवरात्रि में अलग-अलग प्रसाद से माता होगी प्रसन्न गुड़ी पड़वा तिथि 2024 प्रतिपदा तिथि का आरंभ- 08 अप्रैल 2024 को रात 11:50 मिनट पर। प्रतिपदा तिथि की समाप्त- 09 अप्रैल 2024 को रात 08:30 मिनट पर। गुड़ी पड़वा पूजा विधि अंग्रेजी कैलेंडर के मुताबिक इस बार 09 अप्रैल 2024 को गुड़ी पड़वा का पर्व मनाया जा रहा है। इस दिन सुबह जल्दी स्नान आदि कर विजय के प्रतीक के तौर पर घर में बेहद सुंदर-सुंदर गुड़ी लगाकर उसकी पूजा की जाती है। धार्मिक मान्यता के मुताबिक ऐसा करने से घर की नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है। साथ ही घर में सुख-समृद्धि का आगमन होता है। मुख्य रूप से यह पर्व गोवा, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र में मनाया जाता है। इस दिन घर में खास तरह के पकवान पूरनपोली, खीर और श्रीखंड आदि बनाया जाता है। इसके अलावा गुड़ी पड़वा पर अपने घरों की सफाई कर मुख्य रंगोली बनाई जाती है। साथ ही आम या अशोक के पत्तों का अपने घर में तोरण बांधते हैं। वहीं घर के आगे झंडा लगाया जाता है और बर्तन पर स्वास्तिक बनाकर उस पर रेशम का कपड़ा लपेटकर रखा जाता है। गुड़ी पड़वा के मौके पर सूर्यदेव की आराधना के अलावा राम रक्षास्त्रोत, सुंदरकांड और देवी भगवती की पूजा और मंत्रों का जाप किया जाता है। गुड़ी पड़वा से जुड़ी दिलचस्प बातें नव संवत्सर के राजा बता दें कि 09 अप्रैल 2024 से हिंदू नववर्ष विक्रम संवत 2081 की शुरूआत हो रही है। नए वर्ष के प्रथम दिन के स्वामी को पूरे साल का स्वामी माना जाता है। मंगलवार से हिंदू नववर्ष की शुरूआत हो रही है। इसलिए नए विक्रत संवत के स्वामी मंगलदेव होंगे। सृष्टि के निर्माण मान्यता के अनुसार, गुड़ी पड़वा के दिन ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना शुरू की थी और इसी दिन से सतयुग की शुरूआत हुई थी। इसलिए इसे सृष्टि का प्रथम दिन भी कहा जाता है। इस दिन नवरात्रि की घटस्थापना, ध्वजारोहण और संवत्सर की पूजा आदि की जाती है। फसल की पूजा करने की परंपरा गुड़ी पड़वा के मौके पर मराठियों के लिए नया हिंदू नववर्ष शुरू होता है। ऐसे में इस दिन लोग फसल की पूजा करते हैं। नीम के पत्ते खाने की परंपरा धार्मिक परंपरा के मुताबिक इस दिन नीम के पत्ते खाए जाते हैं। गुड़ी पड़वा के मौके पर नीम की पत्तियां खाने से खून साफ होने के साथ रोगों से मुक्ति मिलती है।

प्रभासाक्षी 9 Apr 2024 9:37 am

Summer Skin Care: गर्मियों के मौसम में इस तरह रखें स्किन का ख्याल, चेहरे को भी मिलेगी ठंडक

गर्मियों के मौसम में त्वचा का ध्यान रखना बेहद जरूरी होता है क्योंकि इस मौसम में तेज धूप के कारण चेहरा लाल होने लग जाता है।

खास खबर 8 Apr 2024 6:23 pm

ईशा अंबानी ने स्तन कैंसर पर पुस्तक का विमोचन किया

ईशा अंबानी पीरामल ने स्तन स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता बढ़ाने वाली एक अनूठी पुस्तक बीइंग ब्रेस्ट-अवेयर: व्हाट एवरी वुमन मस्ट नो का विमोचन किया। इस पुस्तक को सर एचएन रिलायंस फाउंडेशन अस्पताल के डॉ. विजय हरिभक्ति लेकर आए हैं।

खास खबर 8 Apr 2024 6:04 pm

Chaitra Navratri 2024: नवरात्रि में अलग-अलग प्रसाद से माता होगी प्रसन्न

नवरात्रि का पर्व देवी शक्ति मां दुर्गा की उपासना का उत्सव है। नवरात्रि के नौ दिनों में देवी शक्ति के नौ अलग-अलग रूप की पूजा-आराधना की जाती है। एक वर्ष में चार बार नवरात्र आते हैं चैत्र, आषाढ़, माघ और शारदीय नवरात्र। इनमें चैत्र और अश्विन यानि शारदीय नवरात्रि को ही मुख्य माना गया है। इसके अलावा आषाढ़ और माघ गुप्त नवरात्रि होती है। पाल बालाजी ज्योतिष संस्थान जयपुर जोधपुर के निदेशक ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि इस साल इस बार चैत्र नवरात्रि 9 अप्रैल 2024 से प्रारंभ हो रहे हैं, जिसका समापन 17 अप्रैल होगा। शक्ति स्वरूपा मां दुर्गा की आराधना के लिए नवरात्रा सर्वोत्तम समय माना जाता है। भगवान राम ने नवरात्र में मां भगवती की आराधना से देवी को प्रसन्न कर विजयादशमी के दिन रावण का संहार किया था। ऐसे में माता के भक्त पूरे 9 दिनों तक माता की पूजा-अर्चना करके मां को प्रसन्न करना चाहते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं इन नौ दिनों में हर दिन माता को अलग-अलग चीजों का भोग लगाने का विधान बताया गया है। नवरात्र की 9 देवियां अलग-अलग 9 शक्तियों का प्रतीक मानी जाती हैं। अगर आप भी इन नौ दिनों में माता को प्रसन्न करके अपनी हर मुराद झट से पूरी कर लेना चाहते हैं तो नवरात्रि में हर दिन के हिसाब से माता को लगाएं उनकी पसंद का भोग। आइए भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास से जानते हैं किस दिन किस माता को लगाया जाता है किस चीज का भोग। पहला दिन- मां शैलपुत्री नवरात्र के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा होती है। मां शैलपुत्री को आरोग्य की देवी माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यदि कोई व्यक्ति नवरात्रि के पहले दिन गाय के शुद्ध देसी घी का भोग माता को लगाता है तो मां शैलपुत्री की कृपा से व्यक्ति को निरोग और खुश रहने का वरदान मिलता है। दूसरा दिन- मां ब्रह्मचारिणी जो लोग मां ब्रह्मचारिणी से अपने लिए दीर्घायु का वरदान चाहते हैं उन्हें नवरात्र के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी को शक्कर का भोग लगाना चाहिए। मां ब्रह्मचारिणी को शक्कर का भोग लगाने से माना जाता है कि व्यक्ति को अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता। इसे भी पढ़ें: Chaitra Navratri: महाशक्ति की आराधना का पर्व है नवरात्रि तीसरा दिन- मां चंद्रघंटा नवरात्र के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा को दूध और दूध से बनी चीज़ों का भोग लगाया जाता है। ऐसा करने से व्यक्ति के जीवन के हर दुख समाप्त जाते हैं। चौथा दिन- मां कूष्मांडा नवरात्रि के चौथे दिन मां कूष्मांडा की पूजा की जाती है। मां कूष्मांडा को मालपुए का भोग लगाने की परंपरा है। ऐसा भी कहा जाता है कि इस दिन ब्राह्मणों को मालपुए खिलाने चाहिए। ऐसा करने से बुद्धि का विकास होता है और निर्णय लेने की क्षमता बढ़ती है। पांचवां दिन- मां स्कंदमाता नवरात्र के पांचवे दिन स्कंदमाता की पूजा होती है। नवरात्र के पांचवें दिन मां स्कंदमाता को केले का भोग लगाया जाता है। स्कंदमाता की पूजा करने से आजीवन आरोग्य रहने का वरदान मिलता है। छठां दिन- मां कात्यायनी नवरात्र के छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा होती है। मां कात्यायनी को शहद का भोग लगाने से आकर्षण का आशीर्वाद मिलता है। सातवां दिन- मां कालरात्रि नवरात्रि के सातवें दिन मां कालरात्रि की पूजी की जाती है। इस दिन माता को गुड़ का भोग लगाया जाता है। माना जाता है कि गुड़ का भोग लगाने से आकस्मिक संकट से रक्षा होती है। आठवां दिन- मां महागौरी नवरात्रि के आठवें दिन महागौरी की पूजा की जाती है। इस दिन लोग कन्या पूजन भी करते हैं। इस दिन महागौरी की पूजा करते समय माता को नारियल का भोग लगाया जाता है। माना जाता है कि ऐसा करने से संतान से जुड़ी समस्याएं दूर होती हैं। नौवां दिन- मां सिद्धिदात्री नवरात्र के नौवें दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा होती है। इस दिन माता को तिल का भोग लगाते हैं। जिन लोगों को आकस्मिक मृत्यु का भय होता है वो मां सिद्धिदात्री की पूजा करते हैं। - डा. अनीष व्यास भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक

प्रभासाक्षी 8 Apr 2024 4:52 pm

Chaitra Navratri: महाशक्ति की आराधना का पर्व है नवरात्रि

महाशक्ति की आराधना का पर्व है नवरात्रि। तीन हिंदू देवियों- पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती के नौ विभिन्न स्वरूपों की उपासना के लिए निर्धारित है, जिन्हें नवदुर्गा के नाम से जाना जाता है। पहले तीन दिन पार्वती के तीन स्वरूपों की अगले तीन दिन लक्ष्मी माता के स्वरूपों और आखिरी के तीन दिन सरस्वती माता के स्वरूपों की पूजा करते हैं। दुर्गा सप्तशती के अन्तर्गत देव दानव युद्ध का विस्तृत वर्णन है। इसमें देवी भगवती और मां पार्वती ने किस प्रकार से देवताओं के साम्राज्य को स्थापित करने के लिए तीनों लोकों में उत्पात मचाने वाले महादानवों से लोहा लिया इसका वर्णन आता है। यही कारण है कि आज सारे भारत में हर जगह दुर्गा यानि नवदुर्गाओं के मन्दिर स्थपित हैं। पाल बालाजी ज्योतिष संस्थान जयपुर जोधपुर के निदेशक ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि इस साल इस बार चैत्र नवरात्रि 9 अप्रैल 2024 से प्रारंभ हो रहे हैं, जिसका समापन 17 अप्रैल होगा। चैत्र नवरात्रि में अबकी बार पूरे नौ दिनों की नवरात्रि होगी। खास बात ये है कि चैत्र नवरात्र के पहले दिन सर्वार्थ सिद्धि योग और अमृत सिद्धि योग बन रहे हैं। इस समय में घटस्थापना आपके लिए बहुत ही लाभदायक और उन्नतिकारक सिद्ध हो सकता है। हिंदू धर्म में नवरात्रि का विशेष महत्व होता है। वर्ष में दो बार चैत्र नवरात्रि और शारदीय नवरात्रि में मां दुर्गा की विधि विधान से पूजा की जाती है। हालांकि कि गुप्त नवरात्रि भी आती है, लेकिन चैत्र नवरात्रि और शारदीय नवरात्रि की लोक मान्यता ज्यादा है। साल में दो बार आश्विन और चैत्र मास में नौ दिन के लिए उत्तर से दक्षिण भारत में नवरात्र उत्सव का माहौल होता है। सम्पूर्ण दुर्गासप्तशती का अगर पाठ न भी कर सकें तो निम्नलिखित श्लोक का पाठ को पढ़ने से सम्पूर्ण दुर्गासप्तशती और नवदुर्गाओं के पूजन का फल प्राप्त हो जाता है। सर्वमंगलमंगलये शिवे सर्वार्थसाधिके। शरण्ये त्रयम्बके गौरि नारायणि नमोऽतु ते।। शरणांगतदीन आर्त परित्राण परायणे सर्वस्यार्तिहरे देवी नारायणि नमोऽस्तु ते।। सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते। भयेभ्यारत्नाहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तु ते ।। वैसे तो दुर्गा के 108 नाम गिनाये जाते हैं लेकिन नवरात्रों में उनके स्थूल रूप को ध्यान में रखते हुए नौ दुर्गाओं की स्तुति और पूजा पाठ करने का गुप्त मंत्र ब्रहमा जी ने अपने पौत्र मार्कण्डेय ऋषि को दिया था। इसको देवीकवच भी कहते हैं। देवीकवच का पूरा पाठ दुर्गा सप्तशती के 56 श्लोकों के अन्दर मिलता है। नौ दुर्गाओं के स्वरूप का वर्णन संक्षेप में ब्रहमा जी ने इस प्रकार से किया है। प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रहमचारिणी।तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्।।पंचमं स्क्न्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्।नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः।। ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि उपरोक्त नौ दुर्गाओं ने देव दानव युद्ध में विशेष भूमिका निभाई है इनकी सम्पूर्ण कथा देवी भागवत पुराण और मार्कण्डेय पुराण में लिखित है। शिव पुराण में भी इन दुर्गाओं के उत्पन्न होने की कथा का वर्णन आता है कि कैसे हिमालय राज की पुत्री पार्वती ने अपने भक्तों को सुरक्षित रखने के लिए तथा धरती आकाश पाताल में सुख शान्ति स्थापित करने के लिए दानवों राक्षसों और आतंक फैलाने वाले तत्वों को नष्ट करने की प्रतीज्ञा की ओर समस्त नवदुर्गाओं को विस्तारित करके उनके 108 रूप धारण करने से तीनों लोकों में दानव और राक्षस साम्राज्य का अन्त किया। इन नौदुर्गाओं में सबसे प्रथम देवी का नाम है शैल पुत्री जिसकी पूजा नवरात्र के पहले दिन होती है। दूसरी देवी का नाम है ब्रहमचारिणी जिसकी पूजा नवरात्र के दूसरे दिन होती है। तीसरी देवी का नाम है चन्द्रघण्टा जिसकी पूजा नवरात्र के तीसरे दिन होती है। चौथी देवी का नाम है कूष्माण्डा जिसकी पूजा नवरात्र के चौथे दिन होती है। पांचवी दुर्गा का नाम है स्कन्दमाता जिसकी पूजा नवरात्र के पांचवें दिन होती है। छठी दुर्गा का नाम है कात्यायनी जिसकी पूजा नवरात्र के छठे दिन होती है । सातवी दुर्गा का नाम है कालरात्रि जिसकी पूजा नवरात्र के सातवें दिन होती है। आठवीं देवी का नाम है महागौरी जिसकी पूजा नवरात्र के आठवें दिन होती है। नवीं दुर्गा का नाम है सिद्धिदात्री जिसकी पूजा नवरात्र के अन्तिम दिन होती है। इन सभी दुर्गाओं के प्रकट होने और इनके कार्यक्षेत्र की बहुत लम्बी चौड़ी कथा और फेहरिस्त है। लेकिन यहां हम संक्षेप में ही उनकी पूजा अर्चना का वर्णन कर सकेंगे। इसे भी पढ़ें: Chaitra Navratri 2024: नवरात्रि में अलग-अलग प्रसाद से माता होगी प्रसन्न हर समस्या का समाधान हैं ये श्लोक ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि नवरात्र में शक्ति साधना व कृपा प्राप्ति का का सरल उपाय दुर्गा सप्तशती का पाठ है। नवरात्र के दिवस काल में सविधि मां के कलश स्थापना के साथ शतचंडी, नवचंडी, दुर्गा सप्तशती और देवी अथर्वशीर्ष का पाठ किया जाता है। दुर्गा सप्तशती के पाठ के कई विधि विधान है। दुर्गा सप्तशती महर्षि वेदव्यास रचित मार्कण्डेय पुराण के सावर्णि मन्वतर के देवी महात्म्य के 700 श्लोक का एक भाग है। दुर्गा सप्तशती में अध्याय एक से तेरह तक तीन चरित्र विभाग हैं। इसमें 700 श्लोक हैं। दुर्गा सप्तशती के छह अंग तेरह अध्याय को छोड़कर हैं। कवच, कीलक, अर्गला दुर्गा सप्तशती के प्रथम तीन अंग और प्रधानिक आदि तीन रहस्य हैं। इसके अलावा और कई मंत्र भाग है जिसे पूरा करने से दुर्गा सप्तशती पाठ की पूर्णता होती है। इस संदर्भ में विद्वानों में मतांतर है। दुर्गा-सप्तशती को दुर्गा-पाठ, चंडी-पाठ से भी संबोधित करते हैं। चंडी पाठ में छह संवाद है। भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि महर्षि मेधा ने सर्वप्रथम राजा सुरथ और समाधि वैश्य को दुर्गा का चरित्र सुनाया। तदनंतर यही कथा महर्षि मृकण्डु के पुत्र चिरंजीवी मार्कण्डेय ने मुनिवर भागुरि को सुनाई। यही कथा द्रोण पुत्र पक्षिगण ने महर्षि जैमिनी से कही। जैमिनी महर्षि वेदव्यास जी के शिष्य थे। यही कथा संवाद महर्षि वेदव्यास ने मार्कण्डेय पुराण में यथावत् क्रम वर्णन कर लोकोपकार के लिए संसार में प्रचारित की। इस प्रकार दुर्गा सप्तशती में दुर्गा के चरित्रों का वर्णन है। मार्कण्डेय पुराण में ब्रह्माजी ने मनुष्यों के रक्षार्थ परम गोपनीय साधन, कल्याणकारी देवी कवच एवं परम पवित्र उपाय संपूर्ण प्राणियों को बताया, जो देवी के नौ मूर्ति-स्वरूप हैं, जिन्हें 'नव दुर्गा' कहा जाता है। उनकी आराधना आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से महानवमी तक की जाती है। श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ मनोरथ सिद्धि के लिए किया जाता है; क्योंकि श्री दुर्गा सप्तशती दैत्यों के संहार की शौर्य गाथा से अधिक कर्म, भक्ति एवं ज्ञान की त्रिवेणी हैं। यह श्री मार्कण्डेय पुराण का अंश है। यह देवी महात्म्य धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष चारों पुरुषार्थों को प्रदान करने में सक्षम है। सप्तशती में कुछ ऐसे भी स्तोत्र एवं मंत्र हैं, जिनके विधिवत पारायण से इच्छित मनोकामना की पूर्ति होती है। देवी का ध्यान मंत्रः देवी प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद प्रसीद मातर्जगतोsखिलस्य। प्रसीद विश्वेतरि पाहि विश्वं त्वमीश्चरी देवी चराचरस्य। भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि इस प्रकार भगवती से प्रार्थना कर भगवती के शरणागत हो जाएं। देवी कई जन्मों के पापों का संहार कर भक्त को तार देती है। वही जननी सृष्टि की आदि, अंत और मध्य है। देवी से प्रार्थना करें: शरणागत-दीनार्त-परित्राण-परायणे! सर्वस्यार्तिंहरे देवि! नारायणि! नमोऽस्तुते॥ सर्वकल्याण एवं शुभार्थ प्रभावशाली माना गया हैः सर्व मंगलं मांगल्ये शिवे सर्वाथ साधिके। शरण्येत्र्यंबके गौरी नारायणि नमोस्तुऽते॥ बाधा मुक्ति एवं धन-पुत्रादि प्राप्ति के लिएः सर्वाबाधा विनिर्मुक्तो धन-धान्य सुतान्वितः। मनुष्यों मत्प्रसादेन भवष्यति न संशय॥ सर्वबाधा शांति के लिएः सर्वाबाधा प्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि। एवमेव त्वया कार्यमस्मद्दैरिविनाशनम्।। आरोग्य एवं सौभाग्य प्राप्ति के लिए इस चमत्कारिक फल देने वाले मंत्र को स्वयं देवी दुर्गा ने देवताओं को दिया हैःदेहि सौभाग्यं आरोग्यं देहि में परमं सुखम्। रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषोजहि॥ भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि अर्थातः शरण में आए हुए दीनों एवं पीडि़तों की रक्षा में संलग्न रहने वाली तथा सब की पीड़ा दूर करने वाली नारायणी देवी! तुम्हें नमस्कार है। देवी से प्रार्थना कर अपने रोग, अंदरूनी बीमारी को ठीक करने की प्रार्थना भी करें। ये भगवती आपके रोग को हरकर आपको स्वस्थ कर देंगी। विपत्ति नाश के लिएः शरणागतर्दनार्त परित्राण पारायणे। सर्व स्यार्ति हरे देवि नारायणि नमोऽतुते॥ मोक्ष प्राप्ति के लिएः त्वं वैष्णवी शक्तिरनन्तवीर्या। विश्वस्य बीजं परमासि माया।। सम्मोहितं देवि समस्तमेतत्। त्वं वैप्रसन्ना भुवि मुक्त हेतु:।। शक्ति प्राप्ति के लिएः सृष्टिस्थितिविनाशानां शक्तिभूते सनातनि। गुणाश्रये गुणमये नारायणि नमोह्यस्तु ते।। अर्थातः तुम सृष्टि, पालन और संहार की शक्ति भूता, सनातनी देवी, गुणों का आधार तथा सर्वगुणमयी हो। नारायणि! तुम्हें नमस्कार है। रक्षा का मंत्रः शूलेन पाहि नो देवि पाहि खड्गेन चाम्बिके। घण्टास्वनेन न: पाहि चापज्यानि: स्वनेन च।। अर्थातः देवी! आप शूल से हमारी रक्षा करें। अम्बिके! आप खड्ग से भी हमारी रक्षा करें तथा घण्टा की ध्वनि और धनुष की टंकार से भी हमलोगों की रक्षा करें। रोग नाश का मंत्रः रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान सकलानभीष्टान्। त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता हाश्रयतां प्रयान्ति। अर्थातः देवी! तुम प्रसन्न होने पर सब रोगों को नष्ट कर देती हो और कुपित होने पर मनोवांछित सभी कामनाओं का नाश कर देती हो। जो लोग तुम्हारी शरण में जा चुके है। उनको विपत्ति तो आती ही नहीं। तुम्हारी शरण में गए हुए मनुष्य दूसरों को शरण देने वाले हो जाते हैं। दु:ख-दारिद्र नाश के लिएः दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो:। स्वस्थै स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।। द्रारिद्र दु:ख भयहारिणि का त्वदन्या। सर्वोपकारकारणाय सदाह्यद्र्रचिता।। ऐश्वर्य, सौभाग्य, आरोग्य, संपदा प्राप्ति एवं शत्रु भय मुक्ति-मोक्ष के लिएः ऐश्वर्य यत्प्रसादेन सौभाग्य-आरोग्य सम्पदः। शत्रु हानि परो मोक्षः स्तुयते सान किं जनै॥ भय नाशक दुर्गा मंत्रः सर्व स्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्ति समन्विते, भयेभ्यास्त्रहिनो देवी दुर्गे देवी नमोस्तुते। स्वप्न में कार्य सिद्घि-असिद्घि जानने के लिएः दुर्गे देवि नमस्तुभ्यं सर्वकामार्थ साधिके। मम सिद्घिमसिद्घिं वा स्वप्ने सर्व प्रदर्शय।। भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि अर्थातः शरणागत की पीड़ा दूर करने वाली देवी हम पर प्रसन्न होओ। संपूर्ण जगत माता प्रसन्न होओ। विश्वेश्वरी! विश्व की रक्षा करो। देवी! तुम्ही चराचर जगत की अधिश्वरी हो। मां के कल्याणकारी स्वरूप का वर्णनः सृष्टिस्थिति विनाशानां शक्तिभूते सनातनि। गुणाश्रये गुणमये नारायणि! नमोऽस्तुते॥ अर्थातः हे देवी नारायणी! तुम सब प्रकार का मंगल प्रदान करने वाली मंगलमयी हो। कल्याणदायिनी शिवा हो। सब पुरुषार्थों को सिद्ध करने वाली शरणागतवत्सला, तीन नेत्रों वाली एवं गौरी हो, तुम्हें नमस्कार है। तुम सृष्टि पालन और संहार की शक्तिभूता सनातनी देवी, गुणों का आधार तथा सर्वगुणमयी हो। नारायणी! तुम्हें नमस्कार है। इस प्रकार देवी उनकी शरण में जाने वालों को इतनी शक्ति प्रदान कर देती है कि उस मनुष्य की शरण में दूसरे लोग आने लग जाते हैं। देवी धर्म के विरोधी दैत्यों का नाश करने वाली है। देवताओं की रक्षा के लिए देवी ने दैत्यों का वध किया। वह आपके आतंरिक एवं बाह्य शत्रुओं का नाश करके आपकी रक्षा करेगी। आप बारंबार उसकी शरणागत हो एवं स्वरमय प्रार्थना करें। भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि हे सर्वेश्वरी! तुम तीनों लोकों की समस्त बाधाओं को शांत करो और हमारे शत्रुओं का नाश करती रहो। पुन: भगवती के शरणागत जाकर भगवती चरित्र को पढ़ने, उनका गुणगान करने मात्र से सर्वबाधाओं से मुक्त होकर धन, धान्य एवं पुत्र से संपन्न होंगे। इसमें तनिक भी संदेह नहीं। भगवती के प्रादुर्भाव की सुंदर गाथाएं सुनकर मनुष्य निर्भय हो जाता है। मुझे अनुभव है कि भगवती के माहात्म्य को सुनने वाले पुरुष के सभी शत्रु नष्ट हो जाते हैं। उन्हें कल्याण की प्राप्ति होती है तथा उनका कुल आनंदित रहता है। स्वयं भगवती का वचन है कि मेरी शरण में आया हर व्यक्ति दु:ख से परे हो जाता है। यदि आप संगणित है तथा और आपके बीच दूरियां हो गई हैं तो आप पुन: संगठित हो जाएंगे। बालक अशांत है तो शांतिमय जीवन हो जाएगा। श्लोकः शांतिकर्मणि सर्वत्र तथा दु:स्वप्रदर्शने। ग्रहपीड़ासु चोग्रासु महात्मयं शणुयात्मम। अर्थातः सर्वत्र शांति कर्म में, बुरे स्वप्न दिखाई देने पर तथा ग्रहजनित भयंकर पीड़ा उपस्थित होने पर माहात्म्य श्रवण करना चाहिए। इससे सब पीड़ाएं शांत और दूर हो जाती है। मनुष्यों के दु:स्वप्न भी शुभ स्वप्न में परिवर्तित हो जाते है। ग्रहों से अक्रांत हुए बालकों के लिए देवी का माहात्म्य शांतिकारक है। देवी प्रसन्न होकर धार्मिक बुद्धि, धन सभी प्रदान करती है। स्तुता सम्पूजिता पुष्पैर्धूपगंधादिभिस्तथा ददाति वित्तं पुत्रांश्च मति धर्मे गति शुभाम्। जाप विधिः नवरात्रि के प्रतिपदा के दिन घटस्थापना के बाद संकल्प लेकर प्रातः स्नान करके दुर्गा की मूर्ति या चित्र की पंचोपचार या दक्षोपचार या षोड्षोपचार से गंध, पुष्प, धूप, दीपक नैवेद्य निवेदित कर पूजा करें। मुख पूर्व या उत्तर दिशा की ओर रखें। शुद्ध-पवित्र आसन ग्रहण कर रुद्राक्ष या तुलसी या चंदन की माला से मंत्र का जाप एक माला से पांच माला तक पूर्ण कर अपना मनोरथ कहें। पूरे नवरात्र जाप करने से वांछित मनोकामना अवश्य पूरी होती है। समयाभाव में केवल 10 बार मंत्र का जाप निरंतर प्रतिदिन करने पर भी माँ दुर्गा प्रसन्न हो जाती हैं। दुर्गेदुर्गति नाशिनी जय जय॥ श्लोकः नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततंनम:। नम: प्रकृत्यै भद्राये नियता: प्रणता: स्मताम्। अर्थातः देवी को नमस्कार है, महादेवी शिवा को सर्वदा नमस्कार है। प्रकृति एवं भद्रा को प्रणाम है। हम लोग नियमपूर्वक जगदंबा को नमस्कार करते हैं। शैद्रा को नमस्कार है। नित्या गौरी एवं धात्री को बारंबार नमस्कार है। ज्योत्सनामयी चंद्ररूपिणी एवं सुखस्वरूपा देवी को सतत प्रणाम है। इस प्रकार देवी दुर्गा का स्मरण कर प्रार्थना करने मात्र से देवी प्रसन्न होकर अपने भक्तों की इच्छा पूर्ण करती है। देवी मां दुर्गा अपनी शरण में आए हर शरणार्थी की रक्षा कर उसका उत्थान करती है। देवी की शरण में जाकर देवी से प्रार्थना करें, जिस देवी की स्वयं देवता प्रार्थना करते हैं। वह भगवती शरणागत को आशीर्वाद प्रदान करती है। - डा. अनीष व्यास भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक

प्रभासाक्षी 8 Apr 2024 4:49 pm

Somvati Amavasya 2024: सोमवती अमावस्या पर स्नान-दान का है विशेष महत्व, जानिए मुहूर्त और पूजन विधि

हिंदू धर्म में अमावस्या तिथि का विशेष महत्व होता है। वहीं अगर यह तिथि सोमवार को पड़ती है, तो इसको सोमवती अमावस्या के नाम से जाना जाता है। इस बार 08 अप्रैल 2024 को सोमवती अमावस्या है। इस साल अमावस्या तिथि पर सूर्य ग्रहण होगा। हांलाकि यह सूर्य ग्रहण भारत में नहीं दिखाई देगा। वैदिक पंचांग के मुताबिक 08 अप्रैल को 08:21 मिनट से अमावस्या तिथि की शुरूआत होगी। वहीं रात 11:50 मिनट तक यह तिथि मान्य होगी। पवित्र नदी में करना चाहिए स्नान धार्मिक शास्त्रों के अनुसार, इस दिन स्नान करने के दौरान गंगा, यमुना, नर्मदा, गोदावरी, सिंधु, कृष्णा और कावेरी आदि पवित्र नदियों को याद करने का विधान हैं। वहीं इन पवित्र नदियों में स्नान करने से व्यक्ति को पुण्यफल की प्राप्ति के साथ ही आरोग्य और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। सूर्योदय से पहले स्नान करना उत्तम माना जाता है। मान्यता के मुताबिक, सोमवती अमावस्या के दिन विधिवत तरीके से स्नान आदि करने से जातक को श्रीहरि विष्णु की कृपा प्राप्त होती है। वहीं अगर आप किसी पवित्र नदी में स्नान के लिए नहीं जा सकते हैं, तो नहाने के पानी में थोड़ा सा गंगाजल मिलाकर स्नान करना चाहिए। इसे भी पढ़ें: Surya Grahan 2024: आज लगेगा साल का पहला और सबसे लंबा सूर्य ग्रहण, पृथ्वी पर छा जाएगा अंधेरा सोमवती अमावस्या तिथि का महत्व चैत्र मास की अमावस्या के दिन पवित्र नदियों में स्नान, दान-पुण्य, पितरों के निमित्त तर्पण और दीपदान का विशेष महत्व होता है। इस दिन महिलाएं पीपल के वृक्ष की दूध, जल, पुष्प, अक्षत और चंदन आदि से पूजा कर वृक्ष की परिक्रमा करती हैं। इस दिन कुछ धार्मिक उपाय करने से व्यक्ति के जीवन में सुख-शांति और समृद्धि का आगमन होता है। सूर्य को अर्घ्य दें शास्त्रों में सूर्यदेव की पूजा को व्यक्ति के लिए कल्याणकारी माना जाता है। सूर्य देव की पूजा करने से शरीर और मन की नकारात्मक भावना का अंत होता है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। वहीं सोमवती अमावस्या के दिन सूर्य देव को अर्घ्य देना चाहिए। इससे व्यक्ति के जीवन में धन-वैभव और यश सदैव बना रहता है। मान्यता के मुताबिक इस दिन सूर्य देव को अर्घ्य देने से व्यक्ति को पूर्व जन्म और इस जन्म के सभी पापों से मुक्ति मिलती हैं। पीपल की पूजा वहीं हिंदू धर्म के मुताबिक पीपल के पेड़ में सभी देवताओं का वास माना जाता है। जो भी व्यक्ति सोमवती अमावस्या के दिन पीपल के पेड़ की पूजा कर उसकी परिक्रमा करता है। उसके सुख-सौभाग्य में वृद्धि होती है।

प्रभासाक्षी 8 Apr 2024 9:00 am

Surya Grahan 2024: आज लगेगा साल का पहला और सबसे लंबा सूर्य ग्रहण, पृथ्वी पर छा जाएगा अंधेरा

चैत्र अमावस्या के दिन यानी की 08 अप्रैल 2024 को साल का पहला सूर्य ग्रहण लगने जा रहा है। यह सूर्य ग्रहण करीब 05 घंटे 25 मिनट का होगा। वहीं इस मौके पर कई तरह के दुर्लभ योग भी बन रहे हैं। साल का पहला सूर्य ग्रहण चैत्र माह का अमावस्या तिथि को मीन राशि और रेवती नक्षत्र में घटित होगा। ऐसे में इस आर्टिकल के जरिए हम आपको सूर्य ग्रहण के बारे में सारी जानकारी देने जा रहे हैं। सूर्य ग्रहण पर दुर्लभ संयोग बता दें कि 08 अप्रैल को 54 साल बाद यह सूर्य ग्रहण कई दुर्लभ संयोग लेकर आया है। आज लगने वाला सूर्य ग्रहण 50 सालों बाद सबसे लंबा सूर्य ग्रहण होने वाला है। सूर्य ग्रहण की अवधि 05 घंटे 25 मिनट होगी। यह पूर्ण सूर्य ग्रहण होगा और इससे पहले ऐसे दुर्लभ संयोग 1970 में बना था। सूर्य ग्रहण के दौरान पृथ्वी पर कुछ समय के लिए अंधेरा छा जाएगा। सूर्य ग्रहण के दौरान सूर्य के गायब होने पर धूमकेतू तारा साफ नजर आएगा। जिन-जिन हिस्सों में यह ग्रहण देखा जा सकेगा, वहां पर सौर मंडल में मौजूद गुरु और शुक्र ग्रह भी देखे जा सकेंगे। कब शुरू होगा सूर्य ग्रहण बता दें कि आज यानी की 08 अप्रैल को साल 2024 का पहला सूर्य ग्रहण में लगने जा रहा है। भारतीय समय के मुताबिक यह सूर्य ग्रहण रात के 09:12 मिनट से शुरू होगा और रात 02:22 मिनट पर खत्म होगा। कहां दिखेगा सूर्य ग्रहण इस सूर्य ग्रहण के प्रभाव को भारत में नहीं देखा जा सकेगा। इस ग्रहण को अटलांटिक, आर्कटिक मेक्सिको, उत्तरी अमेरिका, पश्चिमी यूरोप, कनाडा, मध्य अमेरिका, दक्षिण अमेरिका, इंग्लैंड के उत्तर पश्चिम क्षेत्र के अलावा आयरलैंड में देखा जा सकता है। सूतक काल इस सूर्य ग्रहण को भारत में नहीं देखा जा सकेगा, इसलिए सूतक काल मान्य नहीं होगा। धार्मिक नजरिए से सूतक काल को शुभ नहीं माना जाता है। सूर्य ग्रहण शुरू शुरू होने के 12 घंटे पहले सूतक काल लग जाता है। इस दौरान सूर्य और राहु दोनों रेवती नक्षत्र में होंगे। सूर्य ग्रहण का राशियों पर प्रभाव बता दें कि 08 अप्रैल 2024 को पड़ने वाले सूर्य ग्रहण का प्रभाव सभी 12 राशियों पर देखने को मिलेगा। ज्योतिष गणना के अनुसार, यह सूर्य ग्रहण मेष, वृश्चिक, कन्या, कुंभ और धनु राशि के लोगों के लिए अच्छा नहीं माना जा रहा है। इन राशि के लोगों को व्यापार, नौकरी और कार्यक्षेत्र आदि में परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। तो वहीं वृषभ, मिथुन, कर्क और सिंह राशि के जातकों के लिए यह ग्रहण शुभ होने वाला है।

प्रभासाक्षी 8 Apr 2024 8:51 am

Papmochani Ekadashi 2024: पापमोचनी एकादशी का व्रत करने से सभी पापों का होता है नाश, जानिए पूजा विधि और मुहूर्त

आज यानी की 05 अप्रैल 2024 को पापमोचनी एकादशी का व्रत किया जा रहा है। चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि को पापमोचनी एकादाशी पड़ती है। एकादशी का यह व्रत भगवान श्रीहरि विष्णु को समर्पित होता है। इसलिए इस दिन श्रीहरि विष्णु की विधि-विधान से पूजा-अर्चना कर व्रत रखा जाता है। बता दें कि होलिका दहन और चैत्र नवरात्रि के मध्य आने वाली एकादशी को पापमोचिनी एकादशी कहा जाता है। पापमोचनी एकादशी का व्रत कर जातक अपने पापों के लिए क्षमा प्रार्थना करते हैं। वहीं शुक्रवार के दिन पापमोचनी एकादशी पड़ने से इसका महत्व और अधिक बढ़ गया है। इस दिन भगवान विष्णु के साथ मां लक्ष्मी की पूजा-आराधना कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करें। आइए जानते हैं पापमोचनी एकादशी का शुभ मुहूर्त, पूजा-विधि और पारण के बारे में। इसे भी पढ़ें: Somvati Amavasya 2024: सोमवती अमावस्या पर दान पुण्य करने से मिलता है अक्षय पुण्य एकादशी तिथि पापमोचनी एकादशी तिथि की शुरूआत- 4 अप्रैल शाम 4:14 मिनट पापमोचनी एकादशी तिथि समाप्ति- 5 अप्रैल दोपहर- 1.28 मिनट उदया तिथि होने की वजह से पापमोचनी एकादशी का व्रत 05 अप्रैल 2024 के दिन रखा जा रहा है। एकादशी व्रत पारण पापमोचनी एकादशी तिथि व्रत पारण का समय 06 अप्रैल 2024 को सुबह 06.05 से 08.37 मिनट तक रहेगा। सूर्योदय के बाद पारण किया जाता है। बता दें कि एकादशी तिथि के समाप्त होने से पहले व्रत का पारण करना जरूरी होता है। पापमोचनी एकादशी के दिन द्वादशी तिथि लगने का समय 06 अप्रैल को सुबह 10:19 मिनट पर है। पापमोचनी एकादशी के दिन व्रत कर आप भगवान श्रीहरि विष्णु और मां लक्ष्मी से अपने पापों के लिए क्षमा मांग सकते हैं। इस दिन भगवान विष्णु के साथ मां लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए। एकादशी मंत्र ॐ नमो भगवते वासुदेवाय एकादशी पूजा विधि पापमोचनी एकादशी के दिन भगवान श्रीहरि विष्णु और मां लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करें। भगवान विष्णु औऱ मां लक्ष्मी के सामने देसी घी का दीपक जलाएं औऱ व्रत का संकल्प लें। इसके बाद श्रीहरि को स्नान आदि करवाकर उन्हें चंदन का तिलक और पीले फूल अर्पित करें। फिर आरती करें और अंत में पूजा में हुई भूलचूक के लिए क्षमा मांगे।

प्रभासाक्षी 5 Apr 2024 8:49 am

Sheetala Ashtami 2023: स्वच्छता का संदेश देती शीतला माता

हमारे देश में विविध पर्व-त्योहारों को मनाने के पीछे वैज्ञानिक सोच व तत्व-दर्शन निहित है। होली के एक सप्ताह बाद मनाये जाने वाले शीतलाष्टमी त्योहार पर शीतला माता का पूजन कर व्रत रखा जाता है। मान्यता है कि माता के पूजन से चेचक, खसरा जैसे संक्रामक रोगों का मुक्ति मिलती है। चूंकि ऋतु-परिवर्तन के दौरान इस समय संक्रामक रोगों के प्रकोप की काफी आशंका रहती है। इसलिए इन रोगों से बचाव के लिए श्रद्धालु शीतलाष्टमी के दिन माता का विधिपूर्वक पूजन करते हैं जिससे शरीर स्वस्थ बना रहे। शीतला माता स्वच्छता की अधिष्ठात्री देवी हैं और इसी संदर्भ में शीतला माता की पूजा से हमें स्वच्छता की प्रेरणा मिलती है। इनका सैदव से ही बहुत अधिक माहात्म्य रहा है। शीतला-मंदिरों में प्रायः माता शीतला को गर्दभ पर ही आसीन दिखाया गया है। शीतला माता के संग ज्वरासुर- ज्वर का दैत्य, ओलै चंडी बीबी - हैजे की देवी, चौंसठ रोग, घेंटुकर्ण- त्वचा-रोग के देवता एवं रक्तवती - रक्त संक्रमण की देवी होते हैं। इनके कलश में दाल के दानों के रूप में विषाणु या शीतल स्वास्थ्यवर्धक एवं रोगाणु नाशक जल होता है। इसे भी पढ़ें: Sheetala Ashtami 2024: रोगों से मुक्ति और सुख-समृद्धि के लिए ऐसे करें मां शीतला की पूजा, जानिए शुभ मुहूर्त शीतला माता देवी है जो गधे पर सवार होती है और नीम के पत्‍तों की माला का श्रृंगार करती हैं। इस दिन घर में बासी पुआ, पूड़ी, दाल भात और मिठाई का भोग लगाया जाता हैं। शीतला माता को भोग लगाने के बाद घर के सदस्य खुद इसका सेवन करते हैं। सामान्य तौर पर शीतला माता का पूजन चैत्र कृष्ण पक्ष की अष्टमी को किया जाता है। भगवती शीतला की पूजा का विधान भी विशिष्ट है। शीतलाष्टमी के एक दिन पूर्व उन्हें भोग लगाने के लिए बासी खाना यानी बसौड़ा तैयार किया जाता है। अष्टमी के दिन बासी पदार्थ ही देवी को नैवेद्य के रूप में अर्पित करते हैं और भक्तों के बीच प्रसाद के रूप में इसे वितरित करते हैं। उत्तर भारत में शीतलाष्टमी का त्योहार बसौड़ा नाम से भी प्रचलित है। मान्यता है कि इस दिन के बाद से बासी खाना नहीं खाना चाहिए। यह ऋतु का अंतिम दिन होता है जब बासी खाना खा सकते हैं। इस व्रत में रसोई की दीवार पर हाथ की पांच अंगुली घी से लगाई जाती है। इस पर रोली और चावल लगाकर देवी माता के गीत गाये जाते हैं। इसके साथ, शीतला स्तोत्र तथा कहानी सुनी जाती है। रात में जोत जलाई जाती है। एक थाली में बासी भोजन रखकर परिवार के सारे सदस्यों का हाथ लगवाकर शीतला माता के मंदिर में चढ़ाते हैं। इनकी उपासना से स्वच्छता और पर्यावरण को सुरक्षित रखने की प्रेरणा मिलती है। शीतला माता की महत्ता के विषय में स्कंद पुराण में विस्तृत वर्णन मिलता है। इसमें उल्लेख है कि शीतला देवी का वाहन गर्दभ है। ये हाथों में कलश, सूप, मार्जन (झाड़ू) और नीम के पत्ते धारण किये हैं। इनका प्रतीकात्मक महत्व है। आशय यह है कि चेचक का रोगी व्यग्रता में वस्त्र उतार देता है। सूप से रोगी को हवा की जाती है। झाड़ू से चेचक के फोड़े फट जाते हैं। नीम की पत्तियां फोड़ों को सड़ने नहीं देतीं। रोगी को ठंडा जल अच्छा लगता है, अतः कलश का महत्व है। गर्दभ की लीद के लेपन से चेचक के दाग मिट जाते हैं। स्कंद पुराण में शीतला माता की अर्चना का स्तोत्र है शीतलाष्टक। माना जाता है कि इस स्तोत्र की रचना भगवान शंकर ने की थी। यह स्तोत्र शीतला देवी की महिमा का गान कर उनकी उपासना के लिए भक्तों को प्रेरित करता है। वन्देऽहं शीतलां देवीं रासभस्थां दिगम्बरराम्, मार्जनीकलशोपेतां शूर्पालंकृतमस्तकाम्। अर्थात गर्दभ पर विराजमान दिगम्बरा, हाथ में झाड़ू तथा कलश धारण करने वाली, सूप से अलंकृत मस्तकवाली भगवती शीतला की मैं वंदना करता हूं। शीतला माता के इस वंदना मंत्र से स्पष्ट है कि ये स्वच्छता की अधिष्ठात्री देवी हैं। हाथ में मार्जनी (झाड़ू) होने का अर्थ है कि हम लोगों को भी सफाई के प्रति जागरूक होना चाहिए। कलश से तात्पर्य है कि स्वच्छता रहने पर ही स्वास्थ्य रूपी समृद्धि आती है। मान्यता के अनुसार, इस व्रत को रखने से शीतला देवी प्रसन्न होती हैं और व्रती के कुल में चेचक, खसरा, दाह, ज्वर, पीतज्वर, दुर्गधयुक्त फोड़े और नेत्रों के रोग आदि दूर हो जाते हैं। माता के रोगी के लिए यह व्रत बहुत मददगार है। आमतौर पर, शीतला रोग के आक्रमण के समय रोगी दाह (जलन) से निरंतर पीड़ित रहता है। उसे शीतलता की बहुत जरूरत होती है। गर्दभ पिंडी (गधे की लीद) की गंध से फोड़ों का दर्द कम हो जाता है। नीम के पत्तों से फोड़े सड़ते नहीं है और जलघट भी उसके पास रखना अनिवार्य है। इससे शीतलता मिलती है। लोक किंवदंतियों के अनुसार बसौड़ा की पूजा माता शीतला को प्रसन्न करने के लिए की जाती है। कहते हैं कि एक बार किसी गांव में गांववासी शीतला माता की पूजा-अर्चना कर रहे थे तो मां को गांववासियों ने गरिष्ठ भोजन प्रसादस्वरूप चढ़ा दिया। शीतलता की प्रतिमूर्ति मां भवानी का गर्म भोजन से मुंह जल गया तो वे नाराज हो गईं और उन्होंने कोपदृष्टि से संपूर्ण गांव में आग लगा दी। बस केवल एक बुढिया का घर सुरक्षित बचा हुआ था। गांव वालों ने जाकर उस बुढिया से घर न जलने के बारे में पूछा तो बुढिया ने मां शीतला को गरिष्ठ भोजन खिलाने वाली बात कही और कहा कि उन्होंने रात को ही भोजन बनाकर मां को भोग में ठंडा-बासी भोजन खिलाया। जिससे मां ने प्रसन्न होकर बुढिया का घर जलने से बचा लिया। बुढिया की बात सुनकर गांव वालों ने शीतलामाता से क्षमा मांगी और रंगपंचमी के बाद आने वाली सप्तमी के दिन उन्हें बासी भोजन खिलाकर मां का बसौड़ा पूजन किया। संसार में दो प्रकार के प्राणी होते है। पहला सौर शक्ति प्रधान और दूसरा चान्द्र शक्ति प्रधान। सौर शक्ति के बारे में कहा जाता है कि सौर शक्ति जीव बहुत चंचल, चुलबुले, तत्काल बिगड़ उठने वाले और असहनशील होते हैं जबकि चान्द्र शक्ति प्रधान व्यक्ति इसके विपरीत होते है। चान्द्र शक्ति प्रधान जीवों में प्रमुख गधा ही माता शीतला का वाहन हो सकता है। यहां गधा संकेत देता है कि चामुण्डा के आक्रमण के समय रोग का अधिक प्रहार सहन करते हुए रोगी को कभी अधीर नहीं होना चाहिए। इसके अतिरिक्त शीतला रोग में गर्दभी का दूध, गधा लोटने के स्थान की मिट्टी और गधों के संपर्क का वातावरण उपयुक्त समझा जाता है। कहते हैं कि कुम्हार को चामुण्डा का भय नहीं होता है। वहीं ऊंट वाले को कभी पेट का रोग नहीं होता। चामुण्डा शववाहना के अनुसार चामुण्डा का वाहन शव होता है। इसका तात्पर्य यह है कि चामुण्डा से आक्रान्त रोगी को शव की भांति निश्चेष्ट होकर उचित समय की प्रतीक्षा करनी चाहिए। - रमेश सर्राफ धमोरा (लेखक राजस्थान सरकार से मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

प्रभासाक्षी 2 Apr 2024 12:14 pm

Sheetala Saptami 2024: आज किया जा रहा शीतला सप्तमी का व्रत, जानिए शुभ मुहूर्त और पूजन विधि

होली के बाद सातवें दिन यानी की चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी को शीतला सप्तमी का व्रत किया जाता है। स्कंद पुराण में शीलता सप्तमी का उल्लेख मिलता है। मान्यता के मुताबिक मां शीतला की पूजा और व्रत करने से चेचक और अन्य बीमारियां और संक्रमण नहीं होता है। पति और संतान की सलामती और निरोगी काया के लिए महिलाएं यह व्रत करती हैं। यह एक ऐसा व्रत है, जिसमें मां को बासी भोजन का भोग लगाया जाता है। तो आइए जानते हैं शीतला सप्तमी की पूजा विधि और मुहूर्त के बारे में। माता पति और संतान की सलामती और निरोगी काया के लिए ये व्रत रखती हैं. ये एकमात्र ऐसा व्रत है जिसमें पूजा के दौरान माता को बासी भोजन का भोग लगता है, जानें शीतला सप्तमी 2024 की डेट, पूजा मुहूर्त और महत्व शीतला सप्तमी मुहूर्त इस साल आज यानी की 1 अप्रैल 2024 को शीलता सप्तमी का व्रत किया जा रहा है। व्रत करने वालों के घर इस दिन चूल्हा नहीं जलता है। बल्कि शीतला सप्तमी के एक दिन पहले तमाम तरह के पकवान जैसे- रबड़ी, दही, हलवा-पूरी और चावल आदि बनाकर मां को भोग लगाया जाता है। पंचांग के मुताबिक 31 मार्च 2024 को रात 09.30 मिनट पर चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि शुरू होगी। वहीं अगले दिन 01 अप्रैल 2024 को रात 09:09 मिनट पर इस तिथि की समाप्ति होगी। शीतला पूजा- सुबह 06.11 - शाम 06.39 मिनट (1 अप्रैल 2024) शीतला सप्तमी महत्व चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि पर मां दुर्गा के शीतला स्वरूप की पूजा की जाती है। जो भी जातक इस व्रत को करता है, उसे आरोग्यता का वरदान प्राप्त होता है। स्कंदपुराण के अनुसार, शीतलाष्टक स्त्रोत की रचना स्वयं महादेव ने की थी। मां शीतला बच्चों की गंभीर बीमारियों से रक्षा कर उन्हें शीतलता प्रदान करती हैं। इस दिन पूजा में गुलगुले अर्पित किए जाते हैं। फिर अगले दिन यानी की अष्टमी तिथि को बच्चों के ऊपर से वही गुलगुले वार कर कुत्तों को खिलाया जाता है। ऐसा करने से बच्चों के ऊपर आए सारे संकट दूर होते हैं। मां शीतला का स्वरूप स्कंद पुराण के मुताबिक मां शीतला का स्वरूप अनूठा है। मां का वाहन गधा है और वह अपने हाथ के कलश में शीतल पेय, रोगानुनाशक जल और दाल के दाने रखती हैं। वहीं मां शीतला के दूसरे हाथ में झाड़ू और नीम के पत्ते रहते हैं।

प्रभासाक्षी 1 Apr 2024 9:09 am

उत्तरप्रदेश के किसान की किस्मत को लगे चार चाँद, टमाटर की खेती ने किया मालामाल, इस तरीके से की खेती, जानें

उत्तर प्रदेश में कई किसानों के लिए टमाटर की खेती एक आकर्षक उद्यम के रूप में उभरी है, जिसमें काफी मुनाफा हो रहा है। ऐसा ही एक उदाहरण हैं, रायबरेली के शिवगढ़ थाना क्षेत्र के चितवनिया गांव के प्रगतिशील किसान बब्लू कुमार, जो कई वर्षों से टमाटर की खेती से अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं।

हरयाणा क्रांति 30 Mar 2024 4:45 pm

अरबी की खेती देगी न्यूनतम पानी की आवश्यकता के साथ तगड़ा रिटर्न, यहाँ देखिए अरबी की खेती का तरीका

अरबी, जिसे तारो या कोलोकैसिया के नाम से भी जाना जाता है, मानसून और ख़रीफ़ सीज़न के दौरान भारत के विभिन्न क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर खेती की जाने वाली एक प्रमुख फसल है। दो प्राथमिक किस्मों, एडिन और डेसिन के साथ, प्रत्येक अद्वितीय लाभ प्रदान करती है, अरबी की खेती न्यूनतम पानी की आवश्यकता के साथ उच्च रिटर्न चाहने वाले किसानों के लिए एक आकर्षक अवसर प्रस्तुत करती है।

हरयाणा क्रांति 30 Mar 2024 4:18 pm

Rang Panchami 2024: राधा-कृष्ण को समर्पित है रंग पंचमी का पावन पर्व, जानिए शुभ मुहू्र्त और महत्व

हर साल होली के पांचवे दिन यानी की चैत्र महीने के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि को रंग पंचमी का पर्व मनाया जाता है। यह पावन दिन देवी-देवताओं को समर्पित होता है। इस दिन हवा में गुलाल उड़ाया जाता है। मान्यता के अनुसार, रंग पंचमी के मौके पर सभी देवी-देवता पृथ्वी पर आकर रंग और अबीर से होली खेलते हैं। बता दें कि मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और राजस्थान में खासतौर पर इस पर्व को बेहद धूमधाम से मनाया जाता है। बता दें कि चैत्र माह में कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि पर इस पर्व को मनाए जाने की वजह से इसको कृष्ण पंचमी के नाम से भी जाना जाता है। वहीं अन्य कई जगहों पर इसको देव पंचमी और श्री पंचमी के नाम से भी जाना जाता है। ऐसे में आज इस आर्टिकल के जरिए हम आपको बताने जा रहे हैं कि इस साल रंग पंचमी का पर्व कब और किस तरह मनाया जाता है। इसे भी पढ़ें: Gyan Ganga: अगस्त्य मुनि के आश्रम में रामकथा श्रवण करने पधारे भगवान शंकर और माँ पार्वती जी रंग पंचमी 2024 तिथि हिंदू पंचांग के मुताबिक 29 अप्रैल 2024 को रात 08:20 मिनट पर चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि की शुरूआत हुई। वहीं अगले दिन यानी की 30 मार्च 2024 को रात 09:13 मिनट पर इस तिथि का समापन होगा। उदयातिथि के अनुसार 30 मार्च 2024 को रंग पंचमी का पर्व मनाया जा रहा है। आपको बता दें कि इस दिन देवताओं तक होली खेलने का समय सुबह 07.46 से सुबह 09.19 मिनट तक है। रंग पंचमी की मान्यता धार्मिक मान्यता है कि इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी प्रेयसी राधा रानी के साथ होली खेली थी। इस दिन देवी-देवता भी आसमान से फूलों की वर्षा करते हैं। इसलिए रंग पंचमी के मौके पर हवा में अबीर और गुलाल उड़ाया जाता है। साथ ही इस दिन विधि-विधान से भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी की पूजा-अर्चना की जाती है। बताया जाता है कि इस दिन भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी को गुलाल अर्पित करने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। रंग पंचमी के मौके पर कई जगहों पर जुलूस निकाला जाता है और हवा में अबीर-गुलाल उड़ाया जाता है। रंग पंचमी का महत्व रंग पंचमी के दिन हवा में अबीर और गुलाल उड़ाया जाता है। इस दिन हवा में उड़ते हुए गुलाल से जातक के अंदर सात्विक गुणों में अभिवृद्धि होती है। साथ ही व्यक्ति के तामसिक और राजसिक गुणों का नाश होता है। इसलिए इस दिन शरीर पर नहीं बल्कि वातावरण में अबीर-गुलाल बिखेरा जाता है।

प्रभासाक्षी 30 Mar 2024 9:11 am

पसीने की गाढ़ी कमाई से खरीदी जाती है ज्वैलरी, इन उपायों से रखें सुरक्षित

सोने के गहनों की ज्यादा सार संभालनहीं करनी पड़ती है लेकिन चाँदी के गहनों की सार सम्भाल करना जरूरी होता है, क्योंकिचांदी पर कालापन आ जाता है। फिर चाहे आपने गहने पहन रखें या उन्हें हिफाजत के साथसम्भाल कर रखा है। बारिश के मौसम में चांदी के गहनों की विशेष देखभाल की आवश्यकताहोती है।......

खास खबर 28 Mar 2024 5:31 pm

80% सटीकता के साथ घातक हृदय रोग का पता लगा सकता है आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस टूल

ब्रिटिश शोधकर्ताओं ने एक नया आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस टूल विकसित किया है जो 80 प्रतिशत सटीकता के साथ किसी व्यक्ति की घातक हृदय समस्‍या का पता लगा सकता है।

खास खबर 28 Mar 2024 3:36 pm

Holi Bhai Dooj 2024: 27 मार्च को मनाया जा रहा है होली भाई दूज का पर्व, शुभ मुहूर्त में करें भाई के माथे पर तिलक

रंगों के पर्व होली के बाद भाई दूज का का पर्व मनाया जाता है। बता दें कि हर साल चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि को होली भाई दूज का पर्व मनाते हैं। यह पर्व होली के दूसरे दिन मनाया जाता है। इस दिन बहनें अपने भाइयों को तिलक कर उन्हें भोजन कराती हैं। वहीं भाई अपनी बहन को कोई उपहार देते हैं। यह पर्व भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक है। भाई दूज के पर्व को भातृ द्वितीया भी कहते हैं। आइए जानते हैं भाई दूज के शुभ मुहूर्त और महत्व के बारे में... होली भाई दूज 2024 हिंदू कैलेंडर के मुताबिक चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि 26 मार्च को दोपहर 02:55 मिनट से शुरू हो रही है। वहीं अगले दिन 27 मार्च को शाम 05:06 मिनट तक मान्य होगी। उदयातिथि के मुताबिक 27 मार्च को होली भाई दूज का पर्व मनाया जा रहा है। इसे भी पढ़ें: Chaitra Month 2024: 26 मार्च से 23 अप्रैल तक रहेगा चैत्र मास, जानें इस महीने में क्या करें और क्या नहीं करें शुभ मुहूर्त आज यानी की 27 मार्च को होली भाई दूज का शुभ मुहूर्त सुबह 06:17 से सुबह 09:22 के बीच और सुबह 10:54 बजे से 12:27 बजे तक है। इस शुभ मुहूर्त में बहनें अपने भाईयों को तिलक कर सकती हैं। वहीं इसी दिन राहुकाल दोपहर 12:27 मिनट से दोपहर 01:59 मिनट तक है। बता दें कि राहुकाल के दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं करना चाहिए। भातृ द्वितीया का महत्व पौराणिक कथा के मुताबिक एक बार यमुना ने अपने भाई यमराज से शिकायत की थी कि वह कभी अपनी बहन के घर नहीं आते हैं। तब यमराज भैयादूज के दिन अपनी बहन के घर पहुंचे। जिस पर बहन यमुना ने भाई यमराज का आदर-सत्कार कर उन्हें टीका किया और स्वादिष्ट भोजन कराया। बहन यमुना से प्रसन्न होकर यमराज ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि भाई दूज के दिन जो भाई अपनी बहन के घर जाकर टीका करवाएगा और भोजन करेगा। उसको कभी अकाल मृत्यु का भय नहीं होगा। बताया जाता है कि इसी दिन से भाई दूज मनाए जाने की परंपरा शुरू हुई।

प्रभासाक्षी 27 Mar 2024 9:52 am

जानवरों में अधिक वायरस फैलाते हैं इंसान - अध्ययन

एक अध्ययन में पाया गया है कि इंसान अक्सर जंगली और घरेलू जानवरों में वायरस

खास खबर 26 Mar 2024 8:59 am

Folk Song Fag: होली पर गाए जाने वाले फेमस फाग और गीत, आइये जानते हैं इनकी परंपरा

क्या है फाग (Famous Folk Song Fag) फाग एक लोक गीत है। परंपरा के अनुसार यह हिंदी कैलेंडर के फाल्गुन महीने में गाया जाता है। यह मूल रूप से उत्तर प्रदेश का लोक गीत है। इसके साथ ही उत्तर प्रदेश से सटे इलाकों में भी यह गाया जाता है। यह अवधी, ब्रज, बुंदेलखंडी और भोजपुरी बोलियों में गाए जाते मिलते हैं। इसका विषय प्रायः होली, प्रकृति की सुंदरता, सीताराम और राधाकृष्ण का प्रेम होता है। इसे स्त्री और पुरुष दोनों गाते हैं। इसे शास्त्रीय और उपशास्त्रीय संगीत के रूप में भी गाया जाता है। फाग की परंपरा (fag ki parampara) यूपी के गांव देहातों में फाल्गुन महीने (जिस महीने में होली पड़ती है) में फाग गाए जाने की परंपरा है। इसमें एक मंडली शाम को खेती किसानी के काम से निपटकर एक जगह जुटती है और बारी-बारी से सभी के घर जाकर फाग के गीत गाती है और नाचती-गाती है। इस समय ढोलक, मंजीरा बजाकर त्यौहार का आनंद लिया जाता है। यह क्रम फाल्गुन पूर्णिमा यानी होली तक चलता रहता है। इस दिन फगुआरों की टोली लोगों संग अबीर-गुलाल खेलकर उत्सव भी मनाती है फाग के भी कई प्रकार हैं इनमें से देवताओं को प्रशन्न करने के लिए धमार फाग गाया जाता है। इसके बाद चैत्र का महीना शुरु होने पर चैता गाया जाता है। यहां पढ़ते हैं कुछ फाग और होली गीत फाग गीत 1 ( गौरी संग लिए शिवशंकर खेलें फाग) गौरी संग लिए शिवशंकर खेलें फाग केकर भीगे हो लाली चुनरिया? केकर भीगे हो लाली चुनरिया? केकरा भीगे ल सिर पाग? केकरा भीगे ल सिर पाग? गौरी संग लिए शिवशंकर खेलें फाग गौरी संग लिए शिवशंकर खेलें फाग सिया जी के भीगे हो लाली चुनरिया सिया जी के भीगे हो लाली चुनरिया राम जी के भीगे सिर पाग (पगड़ी) राम जी के भीगे सिर पाग गौरी संग लिए शिवशंकर खेलें फाग गौरी संग लिए शिवशंकर खेलें फाग अरे गौरा जी के भीगे हो लाली चुनरिया अरे गौरा जी के भीगे हो लाली चुनरिया भोले जी के भीगे सिर पाग भोले जी के भीगे ल सिर पाग गौरी संग लिए शिवशंकर खेलें फाग गौरी संग लिए शिवशंकर खेलें फाग अरे, होली खेलै रघुबीरा अवध में होली खेलै रघुबीरा अरे, होली खेलै रघुबीरा अरे, होली खेलै रघुबीरा अवध में होली खेलै रघुबीरा होली खेलै रघुबीरा अ वध में होली खेलै रघुबीरा केकरे हाथे कनक पिचकारी? केकरे हाथे कनक पिचकारी? कनक पिचकारी कनक पिचकारी? केकरे हाथे अबीरा? अरे, केकरे हाथे अबीरा? अवध में होली खेलै रघुबीरा अरे, होली खेलै रघुबीरा अवध में होली खेलै रघुबीरा राम के हाथे कनक पिचकारी सीता के हाथे कनक पिचकारी कनक पिचकारी कनक पिचकारी कनक पिचकारी कनक पिचकारी राम के हाथे अबीरा अरे, राम के हाथे अबीरा अवध में होली खेलै रघुबीरा अरे, होली खेलै रघुबीरा अवध में होली खेलै रघुबीरा (सीता जी के अयोध्या आने पर गाया जाने वाला फाग) अरे, गोरिया करी के सिंगार अंगना में पीसे लीं हरदिया होए, गोरिया करी के सिंगार अंगना में पीसे लीं हरदिया ओ अंगना में पीसे लीं हरदिया ओ अंगना में पीसे लीं हरदिया गोरिया करी के सिंगार अंगना में पीसे लीं हरदिया अरे, जनकपुर के हवे सिल सिलबटिया जनकपुर के हवे सिल सिलबटिया अरे, अवध के हरदी पुरान अवध के हरदी पुरान गौरी संग लिए शिवशंकर खेलें फाग गौरी संग लिए शिवशंकर खेलें फाग ये भी पढ़ेंः Holashtak 2024: ये लोग करते हैं होलाष्टक का इंतजार, जानें क्यों फाग गीत 2 (नर्मदा रंग से भरी होली खेलेंगे श्री भगवान) कै मन प्यारे ने रंग बनायो सो के मन के सर धोली नर्मदा रंग से भरी होली खेलेंगे श्री भगवान. नौ रंग प्यारे ने रंग बनायो सो दस मन के सर धोली नर्मदा रंग से भरी होली खेलेंगे श्री भगवान. भर पिचकारी चंदा सूरज पे डारी सो रंग गए नौ लख तारे नर्मदा रंग से भरी होली खेलेंगे श्री भगवान. भर पिचकारी महल पे डारी सो रंग गए महल अटारी नर्मदा रंग से भरी होली खेलेंगे श्री भगवान. उड़त गुलाल लाल भये बादल भर पिचकारी मेरो सन्मुख डारी सो रंग गई रेशम साड़ी नर्मदा रंग से भरी होली खेलेंगे श्री भगवान. ईसुरी के फाग (गीत 3, राधा लाड़ करें गिरधर पै!) राधा लाड़ करें गिरधर पै! रुपें न अपने घर पै! उरझे में सुरझें ना नैना, पी के पीताम्बर पै॥ कोए बात मौं फार सामने, कै नई सकत जबर पै॥ ‘ईसुर’ जात मोह के बस में, सत्ती चड़ सरवर पै॥ अर्थः राधा जी गिरधर कृष्ण से बहुत प्रेम करती हैं। वे अपने घर में नहीं टिकतीं। उनके नेत्र प्रियतम कृष्ण के पीतांबर से ऐसे उलझे हैं कि सुलझाए नहीं सुलझते। बड़े लोगों की बात मुँह खोल कर सबके सामने कोई नहीं कह सकता। अरे ईसुरी! मोह के फंदे में फंसी नारी प्रियतम पर सती हो जाती है। ईसुरी के फाग (गीत 4, डारी रूप नयन गर फांसी!) डारी रूप नयन गर फांसी! दै काजर विस्वासी! कोरन कोर डोर काजर की मन मोहन के आँसी॥ मनमथ कौ अनुहार त्याग कें, भूल गई हरि हाँसी॥ बैठे जाय ख़ास महलन में, ऊँची लेत उसासी॥ ‘ईसुर’ श्री बृखभान लाड़ली, बैठी बनी रमा सी॥ अर्थः आंखों में कटीला काजल लगाकर सौन्दर्य ने आंखों को गले की फांसी बना रखा है। मनमोहन कृष्ण को आंखों की कोरों में लगी यह काजल की धार बेहाल किए देती है। कामदेव की अनुहार वाले कृष्ण हंसना−बोलना भूल बैठे हैं। वे निज मंदिर में बैठे उसांसें ले रहे हैं। अरे ईसुरी! वृषभानु-नंदिनी लक्ष्मी-सी अनिंद्य सुंदरी बनी बैठी हैं। सनातन यादव का होली गीत (होली रंग बरसाना) मीरा के मनभावन माधव, रूक्मा राज किए संग कान्हा, होली रंग रंगा बरसाना, पग-पग राधा पग-पग कान्हा। नीला,पीला, हरा, गुलाबी, सतरंगी अंबर होली का, आओ मिलकर खुशियां बांटें, कष्टों की जल जाए होलिका। जिनकी सजनी छूट गई है, हर होली उनकी बदरंगी, जिनकी सजनी रूठ गई है, होली उन बिछुड़ों की संगी। पग-पग नफरत, पग-पग विषधर, आस्तीन नहीं है जिनकी, उनको भी डस लेते विषधर, आओ मिलकर प्रेमरंग से, सबके मन का जहर बुझाए अमृत भर दें नख से शिख तक, हर चेहरे पर रंगत लाएं, कष्ट मिटाएं मानवता का, आओ गीत फाग के गाएं मिलजुल कर हर चौराहे, रंगों का यह पर्व मनाएं॥ कहीं पे राधा,कहीं पे मीरा, कहीं पे रूक्मा मिलती है, होली की है छटा निराली, हमको हर घर मिले हैं कान्हा, मीरा के मनभावन माधव, रूक्मा राज किए संग कान्हा, होली रंग रंगा बरसाना, पग-पग राधा पग-पग कान्हा। दुकालू यादव होली गीत ( कब होही मिलन मोर राधा के संग) कब होही मिलन मोर राधा के संग अरे भर के रखे हौ पिचकारी मा रंग कब होही मिलन मोर राधा के संग अरे अपन अपन गोपी संग होरी खेले ग्वाला तोला तोर बुलावत हे ये मुरली वाला ये मुरली वाला हो ये मुरली वाला तोला तोर बुलावत हे ये मुरली वाला आना झन कर ना तंग आना झन कर ना तंग आना झन कर ना तंग आना झन कर ना तंग अरे भर के रखे हौ पिचकारी मा रंग कब होही मिलन मोर राधा के संग अरे ललिता बिसाखा संग अइस जब राधा पुछेव ओला कहसे ओ दिखत हावौ सादा दिखत हावौ सादा ओ दिखत हावौ सादा पुछेव ओला कइसे ओ दिखत हावौ सादा करहु तोर संग उतलन करहु तोर संग उतलन करहु तोर संग उतलन करहु तोर संग उतलन अरे भर के रखे हौ पिचकारी मा रंग कब होही मिलन मोर राधा के संग अरे दुनो झन खेलबो ओ होरी आज जम के तोर मोर जोड़ी हे जनम जनम के जनम जनम के वो जनम जनम के तोर मोर जोड़ी हे जनम जनम के रंग डारेव अंग अंग रंग डारेव अंग अंग रंग डारेव अंग अंग रंग डारेव अंग अंग येदे भर के मारेव मै पिचकारी के रंग येदे होगे मिलन मोर राधा के संग अब होगे मिलन मोर राधा के संग अरे भर के मारेव मै पिचकारी के रंग येदे होगे मिलन मोर राधा के संग अन्य लोक गीत मां खेलैं मसाने में होरी, दिगंबर खेलैं मसाने में होरी, भूत पिशाच बटोरी, दिगंबर खेलैं लखि सुन्दर फागुनी छटा की, मन से रंग गुलाल हटा के ये, चिता भस्म भरि झोरी, दिगंबर खेलैं, नाचत गावत डमरू धारी, छोड़ें सर्प गरल पिचकारी, पीटैं प्रेत थपोरी, दिगंबर खेलैं मसाने में होरी.. एक अन्य गीत भूतनाथ की मंगल होरी, देखि सिहायें बिरज की छोरीय, धन-धन नाथ अघोरी, दिगंबर खेलैं मसाने में होरी.. चिता की भस्म से खेली जाती है होली

पत्रिका 25 Mar 2024 5:22 pm

Holi 2024: होली की अनोखी परंपराएं कर देंगी हैरान, कहीं पत्थरबाजी तो कहीं अंगारों से गुजर जाते हैं लोग

यहां दामाद को घुमाते हैं गधे पर महाराष्ट्र के बीड जिले के विडा येवता गांव में 86 साल पहले शुरू हुई गधे पर दामाद को घुमाने की प्रथा आज भी जारी है। यहां होली के दिन नए दामाद को बुलाते हैं और उसके साथ होली खेलकर गधे पर बैठाकर गांव का चक्कर लगाते हैं। फिर उपहार देकर ससम्मान विदा करते हैं। इस परंपरा की शुरुआत तब हुई जब गांव के देशमुख परिवार के दामाद ने होली के दिन रंग लगवाने से मना कर दिया। इसके बाद उसके ससुर ने उसे रंग लगाने के लिए खूब मनाया, फिर भी नहीं माना तो उसने फूलों से गधे को सजवाया और दामाद को बुलाकर उसे गधे पर बैठाकर पूरे गांव में घुमाया। इस दौरान ससुराल वालों के साथ ही पूरे गांव वालों ने दामाद के साथ जमकर होली खेली, उन्हें जमकर रंग भी लगाया था। तभी से यह परंपरा शुरू हो गई। बरसाने की लट्ठमार होली 2024 ( lathmar holi barsana 2024 ) देश दुनिया में ब्रज की होली विशेष प्रसिद्ध है। पूरे ब्रज मंडल में होली उत्साह से मनाया जाता है। इसमें बरसाना की लट्ठमार होली में शामिल होने के लिए देश दुनिया से भक्त आते हैं। किंवदंती है कि एक बार भगवान श्री कृष्ण राधाजी मिलने के लिए बरसाना गांव गए थे, वो यहां राधा जी और उनकी सखियों को चिढ़ाने लगे। ऐसे में राधाजी और सखियों ने कृष्ण और ग्वालों को सबक सिखाने के लिए लाठी से पीटने की कोशिश की। तभी से बरसाना और नंदगांव में लट्ठमार होली खेलने की शुरुआत हुई। इस वर्ष 18 मार्च को बरसाना और 19 मार्च को नंदगांव में लट्ठमार होली का उत्सव मनाया जाएगा। इस पर्व में महिलाएं लट्ठ से हुरियारों (पुरुषों) को बेहद मजाकिया अंदाज में पीटती हैं। यह लट्ठमार होली बरसाना और नंदगांव के लोगों के बीच खेली जाती है और लट्ठमार होली के लिए फाग निमंत्रण दिया जाता है। ये भी पढ़ेंः Aaj Ka Rashifal 25 March: सोमवार को वृषभ कर्क समेत पांच राशियों को सफलता धन लाभ, आज का राशिफल में जानें किसके सपने पर ग्रहण राजस्थान के डूंगरपुर में खेली जाती है खून की होली (khoon ki holi) डूंगरपुर जिले के भीलूड़ा गांव के रघुनाथजी मंदिर के पास हर साल धूमधाम से 'पत्थरों की राड़' की होली खेली जाती है। इस होली में युवा एक-दूसरे पर पत्थर फेंकते हैं, इसमें कई लोग घायल भी होते हैं। लेकिन उनके शरीर से खून बहना शुभ माना जाता है। यहां 200 साल से यह परंपरा चल रही है। इससे पहले लोग परंपरागत कपड़े पहनते हैं और फिर फेमस डांस गैर खेली करते हुए होली के दर्शन करते हैं, फिर राड़ खेलने और रघुनाथजी मंदिर में धौक खाने जाते हैं। यहां अलग-अलग दल पैरों में घुंघरू, हाथों में ढाल और साफा पहनकर एक दूसरे को उकसाते हैं, फिर पत्थरों की बौछार करते हैं। इलाज के लिए डॉक्टर की टीम मौजूद रहती है। राजस्थान में खैरवाड़ा की खतरनाक परंपरा राजस्थान के मेवाड़-वागड़ क्षेत्र में होली पर कई अनोखी परम्पराएं निभाई जाती हैं, जो खतरनाक भी हैं। झीलों की नगरी उदयपुर के खैरवाड़ा में आदिवासी इसी तरह होलिका दहन के दिन खतरनाक खेल खेलते हैं। खैरवाड़ा में होली का दिन शौर्य प्रदर्शन का दिन होता है। यहां तलवार और बंदूकें लिए आदिवासी युवाओं की टोली फाल्गुन के गीत गाते हुए देवी स्थानक पर पहुंचता है, फिर हथियार लहराते हुए परंपरागत गैर नृत्य करते हैं। इसके बाद होलिका जलाई जाती है। इस दहकती होलिका के बीच डांडे को तलवार से काटने की अनोखी रस्म होती है। इसके लिए युवाओं में होड़ रहती है। जो इस डांडे को काट देता है उसकी वीरता का सम्मान होता है, लेकिन जो इसमें जो असफल रहते हैं उन्हें समाज के मुखिया की ओर से तय सजा-जुर्माना भुगतना होता है। सजा के तौर पर उन्हें मंदिर में ही सलाखों के पीछे बंद कर दिया जाता है। बाद में समाज द्वारा तय जुर्माना देने पर छोड़ा जाता है। हालांकि अब ये सब कुछ अब रस्म अदायगी के तौर होती है। ये भी पढ़ेंः Monthly Horoscope पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें एमपी में गोंड आदिवासियों की परंपरा मध्य प्रदेश के खंडवा, बुरहानपुर, बेतूल, झाबुआ, अलीराजपुर और डिंडोरी इलाके के गोंड आदिवासी होली और रंगपंचमी के बाद मेघनाद को अपना इष्ट देव मानकर मेघनाद पर्व मनाते हैं और उनकी पूजा कर बकरे की बलि देते हैं। इस दौरान झंडा दौड़ प्रतियोगिता, बैलगाड़ी दौड़ और अन्य प्रतियोगिता होती है। इसके लिए एक खंभे को तेल और साबुन लगाकर चिकना किया जाता है और इसमें लाल कपड़े में नारियल ,बतासे एवं नगद राशि को बंधा जाता है। उसके बाद प्रतियोगिता में भाग लेने वाले युवा इस खंबे पर चढ़ते हैं और ऊपर बंधा झंडा तोड़ने का प्रयास करते हैं। इस दौरान युवतियां हरे बांस की लकड़ी लेकर युवाओं को ऊपर चढ़ने से रोकती है और उन्हें मारती हैं। वहीं ढोल बजाकर ग्रामीण युवाओं का उत्साह बढ़ाते हैं। रायसेन में अंगारे पर चलते हैं लोग रायसेन के दो गांवों चंदपुरा और ग्राम महगवा में ग्रामीण होलिका दहन के बाद अंगारों पर चलते हैं। बुजुर्गों का कहना है कि परंपरा निभाने से गांव में प्राकृतिक आपदा नहीं आती है। सुख शांति समृद्धि के लिए वर्षों पुरानी प्रथा निभाई जाती है। ग्रामीणों का कहना है कि अंगारों पर चलने के बाद एक दूसरे को रंग गुलाल लगाया जाता है।

पत्रिका 25 Mar 2024 12:45 pm

Chandra Grahan 2024: 25 मार्च को लग रहा साल का पहला चंद्रग्रहण, अशुभ प्रभावों से बचने के लिए करें ये आसान उपाय

इस बार 25 मार्च 2024 को साल का पहला चंद्रग्रहण लगने जा रहा है। इसी दिन होली का पर्व मनाया जा रहा है। हांलाकि यह ग्रहण भारत में नहीं दिखाई देगा। इस कारण होली के पर्व पर कोई बुरा प्रभाव नहीं होगा। फिर भी इस चंद्रग्रहण के नकारात्मक प्रभाव से बचने के लिए कुछ उपाय अवश्य करने चाहिए। क्योंकि ज्योतिष शास्त्र में चंद्रग्रहण को अशुभ माना जाता है। बताया जाता है कि ग्रहण के दौरान विभिन्न तरह की नकारात्मक शक्तियां निकलती हैं। जो सभी लोगों को प्रभावित करती हैं। ऐसे में चंद्र ग्रहण के अशुभ प्रभाव से बचने के लिए कुछ चीजों के दान का विशेष महत्व होता है। चंद्रग्रहण 2024 ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, आज यानी की 24 मार्च 2024 को 10:30 मिनट से चंद्र ग्रहण शुरू होगा। वहीं दोपहर 03:02 मिनट पर इसका समापन होगा। चंद्रग्रहण की अवधि करीब 4:36 मिनट रहेगी। साल 2024 का पहला चंद्रग्रहण कन्या राशि में लग रहा है। हांलाकि यह ग्रहण भारत में दृश्यमान नहीं होगा। लेकिन फिर भी सभी पर इसका प्रभाव देखने को मिलेगा। किन राशियों के लिए शुभ है चंद्रग्रहण साल के पहले चंद्रग्रहण का सभी राशियों पर प्रभाव देखने को मिलेगा। मकर, मिथुन, सिंह और धनु राशि वालों के लिए साल का पहला चंद्रग्रहण बेहद शुभ माना जा रहा है। वहीं मेष, कर्क, कन्या और कुंभ राशि के जातकों के लिए यह चंद्रग्रहण अशुभ माना जा रहा है। ग्रहण में क्या न करें ग्रहण के दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं करना चाहिए। इस दौरान किसी भी मांगलिक कार्य का संकल्प नहीं लेना चाहिए। साथ ही ग्रहण के दौरान कोई भी धार्मिक अनुष्ठान नहीं करना चाहिए। ग्रहण के दौरान क्या करना चाहिए इस दौरान भगवान का स्मरण करना चाहिए। खाने-पीने के सामन में तुलसी दल अवश्य रखना चाहिए। ग्रहण के दिन शुद्ध जल से स्नान आदि कर गरीबों को यथाशक्ति दान करना चाहिए।

प्रभासाक्षी 25 Mar 2024 9:18 am

Holi 2024: हर साल फाल्गुन पूर्णिमा पर मनाया जाता है होली का पर्व, बुराई पर अच्छाई का है प्रतीक

हिंदू धर्म में होली के पर्व का विशेष महत्व होता है। वैदिक पंचांग के अनुसार, हर साल फाल्गुन माह की पूर्णिमा तिथि को होली का त्योहार मनाया जाता है और चैत्र कृष्ण प्रतिपदा तिथि को रंगोत्सव मनाया जाता है। इस दिन लोग आपसी मतभेद भुलाकर एक दूसरे को रंग और गुलाल लगाकर प्रेम और सद्भाव से रहने का संदेश देते हैं। बता दें कि 24 मार्च को होलिका दहन और 25 मार्च को रंग की होली खेली जा रही है। आज यानी की होली के पर्व पर 4 शुभ योग का निर्माण हो रहा है। हांलाकि इस बार होली के पर्व को लेकर लोगों के बीच कंफ्यूजन है। तो आइए जानते हैं कि होली की सही तारीख और शुभ मुहूर्त क्या है... इसे भी पढ़ें: Basant Purnima 2024: बसंत पूर्णिमा को माना जाता है साल का सबसे भाग्यशाली दिन, जानिए किस विधि से करें पूजा होलिका दहन 2024 बता दें कि इस साल 24 मार्च 2024 को होलिका दहन किया जाएगा। होलिका दहन फाल्गुन पूर्णिमा तिथि में प्रदोष काल के समय होगा। ऐसे में इस साल 25 मार्च 2024 को रंग वाली होली मनाई जाएगी। पौराणिक कथा होली के पर्व को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। लेकिन सबसे अधिक प्रचलित कथा भगवान विष्णु और भक्त प्रहलाद की है। पौराणिक कथा के मुताबिक राक्षस हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रहलाद भगवान श्रीहरि विष्णु का परम भक्त था। लेकिन हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु को अपना परम शत्रु मानता था और अपने पुत्र प्रहलाद से उनकी पूजा नहीं करने के लिए कहता था। लेकिन प्रहलाद हर समय भगवान की भक्ति में लीन रहते थे। जिस पर हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र को कई बार मारने का प्रयास किया। लेकिन भगवान श्रीहरि विष्णु की कृपा से प्रहलाद को कुछ भी नहीं होता है। वहीं हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को आग से न जलने का वरदान प्राप्त था। हिरण्यकश्यप ने होलिका से प्रहलाद को मारने के लिए कहा। तब होलिका प्रहलाद को गोद में बैठाकर चिता पर बैठ गई। लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रहलाद सुरक्षित बच गए और होलिका जलकर भस्म हो गईं। तभी से होली का पर्व मनाया जाने लगा।

प्रभासाक्षी 25 Mar 2024 9:05 am

Basant Purnima 2024: बसंत पूर्णिमा को माना जाता है साल का सबसे भाग्यशाली दिन, जानिए किस विधि से करें पूजा

हिंदू पंचांग के मुताबिक साल का आखिरी महीना फाल्गुन माह होता है। इसलिए फाल्गुन पूर्णिमा को साल का आखिरी दिन मानते हैं और हिंदू धर्म में इस दिन का विशेष महत्व माना जाता है। बता दें कि सबसे बड़े अनुष्ठानों में से एक होलिका दहन भी इसी दिन किया जाता है। साथ ही यह बसंत ऋतु के आगमन का भी प्रतीक माना जाता है। इस दिन चंद्रमा की ऊर्जा से पृथ्वी सबसे ज्यादा प्रभावित होती है। फाल्गुन पूर्णिमा को बसंत पूर्णिमा भी कहा जाता है। फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष के आखिरी में फाल्गुन पूर्णिमा आती है, जो कि साल का आखिरी महीना भी है। इस माह के बाद चैत्र माह लग जाता है। हिंदू कैलेंडर के मुताबिक इस दिन से नए साल की शुरूआत होती है। ऐसे में आज इस आर्टिकल के जरिए हम आपको बताने जा रहे हैं कि फाल्गुन पूर्णिमा हिंदू धर्म में इतनी महत्वपूर्ण क्यों है और इसका क्या महत्व है। इसे भी पढ़ें: Holika Dahan 2024: देश भर में धूमधाम से मनाया जाता है होलिका दहन फाल्गुन पूर्णिमा साल का सबसे भाग्यशाली दिन आपको बता दें कि फाल्गुन पूर्णिमा को साल का सबसे अहम और भाग्यशाली दिन माना जाता है। इसको पूर्णिमा, पूनम और पूर्णमासी आदि के नाम से भी जाना जाता है। इस पवित्र दिन पर लोग व्रत-उपवास करते हैं औऱ श्रीहरि विष्णु की पूजा-अर्चना करते हैं। धार्मिक मान्यता के मुताबिक जो भी जातक इस दिन व्रत रखकर चंद्रमा और श्रीहरि विष्णु की पूरे श्रद्धाभाव से पूजा-अर्चना करता है, उसे सभी तरह के पापों से छुटकारा मिल जाता है। फाल्गुन पूर्णिमा के दिन भगवान श्री हरि विष्णु की पूजा करने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन को लक्ष्मी जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। हिंदू धर्म में मां लक्ष्मी को धन और भाग्य की देवी माना जाता है। इसलिए इस दिन को सबसे ज्यादा भाग्यशाली माना जाता है। फाल्गुन पूर्णिमा 2024 डेट और मुहूर्त फाल्गुन पूर्णिमा 24 मार्च 2024 को सुबह 09:54 मिनट से शुरू होगी। वहीं अगले दिन यानी की 25 मार्च 2024 को दोपहर 12:29 मिनट पर इस तिथि की समाप्ति होगी। उदयातिथि के मुताबिक 25 मार्च 2024 को फाल्गुन पूर्णिमा का व्रत रखा जाएगा। पूजा एवं व्रत विधि इस दिन भगवान विष्णु के चौथे अवतार नरसिंह की पूजा-अर्चना करने का विधान है। मान्यता के अनुसार, इस दिन भगवान श्रीहरि विष्णु, मां लक्ष्मी और भगवान नरसिंह की पूजा करने से व्यक्ति के घर में सुख-समृद्धि, अच्छा स्वास्थ्य और धन आता है। इसलिए विष्णु और मां लक्ष्मी का आशीर्वाद करने के लिए बसंत पूर्णिमा पर उनकी पूजा जरूर करनी चाहिए। सबसे पहले इस दिन सुबह जल्दी स्नान आदि कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। फिर भगवान श्रीहरि विष्णु और मां लक्ष्मी की विधि-विधान से पूजा-अर्चना करें। सूर्योदय से चंद्रोदय तक व्रत का संकल्प लें। फिर शाम चंद्र देव के निकलने के बाद उनकी पूजा करें और व्रत खोलें।

प्रभासाक्षी 25 Mar 2024 8:46 am

Holi 2024: होली के दिन लग रहा चंद्र ग्रहण, जानिए सूतक काल लगेगा या नहीं

Holi 2024 होली का पर्व बेहद खास है यह छोटी होली से शुरू होकर बुढ़वा मंगल और रंग पंचमी तक मनाया जाता है। इस साल छोटी होली यानी फाल्गुन पूर्णिमा और होलाष्टक का आखिरी दिन 24 मार्च 2024 को है और अगले दिन चैत्र कृष्ण प्रतिपदा यानी 25 मार्च को होली का त्योहार मनाया जाएगा। लेकिन इस बार होली के दिन ही चंद्र ग्रहण लग रहा है तो आइये वाराणसी के पुजारी पं शिवम तिवारी से जानते हैं कब लगेगा चंद्र ग्रहण और क्या होली पर सूतक काल भी लगेगा.. होली पर चंद्र ग्रहण (Chandra Grahan 2024) साल 2024 में होली का त्योहार थोड़ा बेरंग रहेगा, क्योंकि 25 मार्च सोमवार को होली के दिन ही साल का पहला चंद्र ग्रहण कन्या राशि में लगेगा। चंद्र ग्रहण सुबह 10.24 बजे से दोपहर 03.01 बजे तक यानी कुल 4 घंटे 36 मिनट तक रहेगा। हालांकि चंद्र ग्रहण भारत में दिखाई नहीं देगा। इसलिए सूतक काल मान्य नहीं होगा। इसमें पूजा-पाठ, शुभ और मांगलिक कार्य भी भी बंद नहीं होंगे। साल का पहला चंद्र ग्रहण उत्तर-पूर्व एशिया, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, जापान, रूस, आयरलैंड, इंग्लैंड, स्पेन, पुर्तगाल, इटली, प्रशांत, अटलांटिक और आर्कटिक महासागर आदि स्थानों पर दिखाई देगा। ये भी पढ़ेंः Holi 2024: छोटी होली के दिन लग रही भद्रा, जानिए होलिका दहन का मुहूर्त और कब खेला जाएगा रंग होली पर जमता है फाग का रंग परंपरा के अनुसार होली के दिन लोग एक दूसरे को रंग, गुलाल, अबीर लगाते हैं और गले मिलते हैं। इसी के साथ गांवों में लोग ढोल, मजीरा की थाप पर मिलजुलकर लोकगीत फाग गाते हैं। कई जगह स्थानीय कलाकार कई तरह के नाटक भी पेश करते हैं। फगुहारों को मिठाई, गुझिया, ठंडाई वगैरह खिलाया जाता है।

पत्रिका 24 Mar 2024 8:05 pm

Holika Dahan 2024: आज होलिका दहन की पूजा के लिए मिलेगा सिर्फ इतना समय, जानिए शुभ मुहूर्त

होली हिंदुओं का मुख्य त्योहार है। बसंत का महीना लगने के बाद से ही होली के पर्व का इंतजार शुरू हो जाता है। वहीं फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा की रात को होलिका दहन किया जाता है। फिर इसके अगले दिन होली का पर्व मनाया जाता है। होली का पर्व बुराइयों पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। होली एक धार्मिक, सांस्कृतिक और पारंपरिक पर्व है। इस पर्व का पूरे भारत में अलग ही उत्साह और जश्न देखने को मिलता है। बता दें कि होली आपसी भाईचारे, आपसी प्रेम और सद्भावना का प्रतीक है। इस दिन लोग एक दूसरे को रंग और गुलाल लगाते हैं। तो वहीं घरों में गुझिया और तमाम तरह के पकवान बनाए जाते हैं। वहीं एक-दूसरे के घर जाकर होली की शुभकामनाएं देते हैं। इसे भी पढ़ें: Holi Celebration 2024: दिलों से जुड़ी प्रेरक भावनाओं का पर्व है होली पूर्णिमा तिथि फाल्गुन माह की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को होलिका दहन किया जाता है। इस साल फाल्गुन पूर्णिमा तिथि आज यानी की 24 मार्च 2024 को सुबह 09:54 मिनट से शुरू होगी। वहीं अगले दिन यानी की 25 मार्च 2024 को इस तिथि दोपहर 12:29 मिनट पर समाप्ति होगी। होलिका दहन 2024 बता दें कि आज यानी की 24 मार्च 2024 को होलिका दहन का शुभ मुहूर्त देर रात 11:13 मिनट से 12:27 मिनट तक हैं। ऐसे में होलिका दहन के लिए सिर्फ 1 घंटे 14 मिनट का समय मिलेगा। होलिका दहन की पूजा विधि होलिका दहन की पूजा के लिए सबसे पहले स्नान आदि कर लें। फिर उत्तर या पूरब दिशा की तरफ मुंह करके बैठ जाएं। पूजा करने के लिए गाय के गोबर से होलिका और प्रह्वाद की प्रतिमा बनाएं। इसके बाद पूजा की सामग्री के लिए फूल, रोली, फूलों की माला, गुड़, सूत, मूंग, साबुत हल्दी, बताशे, गुलाल नारियल, 5-7 तरह के अनाज और एक लोटे में पानी रख लें। इन सभी पूजन सामग्री के साथ पूरे विधि-विधान से पूजा-अर्चना करें और मिठाइयां और फल अर्पित करें। होलिका की पूजन के दौरान भगवान नरसिंह की विधि-विधान से पूजा-अर्चना करें। इसके बाद होलिका के चारों पर सात पर परिक्रमा लगाएं।

प्रभासाक्षी 24 Mar 2024 9:45 am

Holi Celebration 2024: दिलों से जुड़ी प्रेरक भावनाओं का पर्व है होली

होली एक ऐसा त्योहार है, जिसका धार्मिक ही नहीं बल्कि सांस्कृतिक-आध्यात्मिक दृष्टि से विशेष महत्व है। बदलती युग-सोच एवं जीवनशैली से होली त्यौहार के रंग भले ही फीके पड़े हैं या मेरे-तेरे की भावना, भागदौड़, स्वार्थ एवं संकीर्णता से होली की परम्परा में धुंधलका आया है। परिस्थितियों के थपेड़ों ने होली की खुशी को प्रभावित भी किया है, फिर भी जिन्दगी जब मस्ती एवं खुशी को स्वयं में समेटकर प्रस्तुति का बहाना मांगती है तब प्रकृति एवं परम्परा हमें होली जैसा रंगारंग त्योहार देती है। इस त्योहार की गौरवमय परम्परा को अक्षुण्ण रखते हुए हम एक उन्नत आत्मउन्नयन एवं सौहार्द का माहौल बनाएं, जहां हमारी संस्कृति एवं जीवन के रंग खिलखिलाते हुए देश ही नहीं दुनिया में अहिंसा, प्रेम, भाई-चारे, साम्प्रदायिक सौहार्द के रंग बिखेरे। पर्यावरण के प्रति उपेक्षा एवं प्रदूषित माहौल के बावजूद जीवन के सारे रंग फीके न पड़ पाए। हिंदू कैलेंडर के अनुसार, होली फाल्गुन महीने की पूर्णिमा को मनाई जाती है। यह वसंत ऋतु के आगमन का जश्न है। इस वर्ष होली पर अनेक शुभ योग बनने से होली का महत्व अधिक है। सर्वार्थसिद्धि योग, रवि योग, धनशक्ति योग, बुधादित्य योग मिलाकर बनते हैं पंच महायोग। कुंभ राशि में शनि, मंगल और शुक्र ग्रह होने से बनते हैं त्रिग्रही योग। इस बार होली पर रहने वाली है चंद्र ग्रहण की छाया, जिससे कुछ राशियों को मिलेगा शुभ परिणाम। इस प्रकार समस्त बड़े-छोटे, सूक्ष्म और बृहत् योग 340 वर्षों बाद प्राप्त हो रहे हैं, जो विशेष फलदायी, शुभ एवं नवीन उत्सवमयी होने का सूचक हैं। पौराणिक मान्यताओं की रोशनी में होली के त्योहार का विराट् समायोजन बदलते परिवेश में विविधताओं का संगम बन गया है, दुनिया को जोड़ने का माध्यम बन गया है। हमारी संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता है कि यहाँ पर मनाये जाने वाले सभी त्यौहार समाज में मानवीय गुणों को स्थापित करके लोगों में प्रेम, एकता एवं सद्भावना को बढ़ाते हैं। वस्तुतः होली आनंदोल्लास का पर्व है। इसे भी पढ़ें: Holi Celebration 2024: सामाजिक समरसता को बढ़ावा देने वाला पर्व है होली होली की परम्पराएँ श्रीकृष्ण की लीलाओं से सम्बद्ध हैं और भक्त हृदय में विशेष महत्व रखती हैं। श्रीकृष्ण की भक्ति में सराबोर होकर होली का रंगभरा और रंगीनीभरा त्यौहार मनाना एक विलक्षण अनुभव है। मंदिरों की नगरी वृन्दावन में फाल्गुन शुक्ल एकादशी का विशेष महत्व है। इस दिन यहाँ होली के रंग खेलना परम्परागत रूप में प्रारम्भ हो जाता है। मंदिरों में होली की मस्ती और भक्ति दोनों ही अपनी अनुपम छटा बिखेरती है। होली जैसे त्यौहार में जब अमीर-गरीब, छोटे-बड़े, ब्राह्मण-शूद्र आदि सब का भेद मिट जाता है, तब ऐसी भावना करनी चाहिए कि होली की अग्नि में हमारी समस्त पीड़ाएँ दुःख, चिंताएँ, द्वेष-भाव आदि जल जाएँ तथा जीवन में प्रसन्नता, हर्षोल्लास तथा आनंद का रंग बिखर जाए। होली का कोई-न-कोई संकल्प हो और यह संकल्प हो सकता है कि हम स्वयं शांतिपूर्ण एवं स्वस्थ जीवन जीये और सभी के लिये शांतिपूर्ण एवं निरोगी जीवन की कामना करें। ऐसा संकल्प और ऐसा जीवन सचमुच होली को सार्थक बना सकते हैं। होली शब्द का अंग्रेजी भाषा में अर्थ होता है पवित्रता। पवित्रता प्रत्येक व्यक्ति को काम्य होती है और इस त्योहार के साथ यदि पवित्रता की विरासत का जुड़ाव होता है तो इस पर्व की महत्ता शतगुणित हो जाती है। प्रश्न है कि प्रसन्नता का यह आलम जो होली के दिनों में जुनून बन जाता है, कितना स्थायी है? डफली की धुन एवं डांडिया रास की झंकार में मदमस्त मानसिकता ने होली जैसे त्योहार की उपादेयता को मात्र इसी दायरे तक सीमित कर दिया, जिसे तात्कालिक खुशी कह सकते हैं, जबकि अपेक्षा है कि रंगों की इस परम्परा को दीर्घजीविता प्रदान करते हुए आत्मिक खुशी का जरिया भी बनाये। जीवन को हर रंग में जीने और स्वीकारने की कला सबको नहीं आती। उसके लिए जरूरत होती है, एक मस्तमौला नजरिए की। समुद्र से मिलने को तत्पर, मीलों बहती रहने वाली नदी की ऊर्जा की। ऊर्जा और आनंद के इसी मेल का प्रतीक है होली का त्यौहार, जो लगातार बदलते रहने के बावजूद बना रहता है, धु्रव है, सत्य है। जितने रंग प्रकृति के हैं, उतने ही हमारे हैं और प्रकृति हर पल रंग बदलती है। पुरानी पत्तियां शाख छोड़ती नहीं हैं कि नई खिलनी शुरू हो जाती हैं। पतझड़ और बसंत साथ ही चलते रहते हैं। धरती के भीतर के घुप अंधेरों को चीर कर बाहर निकला बीज, फूल, शाख, पत्तियां और फल के रंग धर लेता है। उगने, डूबने, खिलने, फैलने, मिलने, सूखने, झड़ने, चढ़ने, उतरने और खत्म होने का हर रंग प्रकृति में है और है होली के मनभावन पर्व में। पर प्रकृति हो या होली इनसे उदासीन हम, कुछ ही रंगों में सिमट जाते हैं। गिले-शिकवों, उदासी, तेरे-मेरे, क्रोध और कुंठा में ही अटक जाते हैं। नतीजा, जिंदगी में तनाव और उदासी घिरने लगती है। होली जैसे त्यौहारों के बावजूद जीवन के सारे रंग फिके पड़ रहे हैं। न कहीं आपसी विश्वास रहा, न किसी का परस्पर प्यार, न सहयोग की उदात्त भावना रही, न संघर्ष में एकता का स्वर उठा। बिखराव की भीड़ में न किसी ने हाथ थामा, न किसी ने आग्रह की पकड़ छोड़ी। यूँ लगता है सब कुछ खोकर विभक्त मन अकेला खड़ा है फिर से सब कुछ पाने की आशा में। कितनी झूठी है यह प्रतीक्षा, कितनी अर्थ शून्य है यह अगवानी। हम भी भविष्य की अनगिनत संभावनाओं को साथ लिए आओ फिर से एक सचेतन माहौल बनाएँ। उसमें सच्चाई का रंग भरने का प्राणवान संकल्प करें। होली के लिए माहौल भी चाहिए और मन भी चाहिए, ऐसा मन जहाँ हम सब एक हों और मन की गंदी परतों को उखाड़ फेकें ताकि अविभक्त मन के आइने में प्रतिबिम्बित सभी चेहरे हमें अपने लगें। कलाकार एमी ग्रेंट के अनुसार, ‘काला रंग गहराई देता है। इसे मिलाए बिना किसी वास्तविकता को रचा नहीं जा सकता।’ जीवन में सुख-दुख दोनों हैं। दोनों एक-दूसरे में बदलते रहते हैं। हमें सुख अच्छा लगता है और दुख में हम घबरा उठते हैं। सारी कोशिशें ही दुखों से बचने की होती हैं। होली का अवसर भी सारे दुःखों को भूलकर स्वयं से स्वयं के साक्षात्कार का अवसर है। होली दिलों से जुड़ी भावनाओं का पर्व है। यह मन और मस्तिष्क को परिष्कृत करता है। न्यूरोबायोलिस्ट और रिसर्चर सेमिर जैक कहते हैं, ‘मस्तिष्क में प्यार और नफरत को जनरेट करने वाली वायरिंग एक ही होती है।’ इस भावना की कुछ अलग तरह से व्याख्या करते हैं लेखक और समाजशास्त्री पेजिल पामरोज, ‘प्रेम आत्मा के स्तर पर होता है और नफरत भावना के स्तर पर।’ होली प्रेम एवं संवेदनाओं को जीवंतता देने का दुर्लभ अवसर है। यह नफरत को प्यार में बदल देता है। यह पर्व बाहरी दुनिया में मौज-मस्ती का अवसर ही नहीं देता, बल्कि भीतरी दुनिया का साक्षात्कार भी कराता है। महान् दार्शनिक संत आचार्य महाप्रज्ञ ने प्रेक्षाध्यान के माध्यम से विभिन्न रंगों की साधना कराते हुए आत्मा को उजालने एवं भीतरी दुनिया को उन्नत बनाने की विधि प्रदत्त की है। रोमन सम्राट व चिंतक मार्क्स ऑरेलियस ने कहा भी है, ‘मन के विचारों में रंगी होती है आत्मा।’ जैन दर्शन भी कहता है कि जैसे विचार होते हैं, वैसे ही कर्म परमाणु आत्मा से चिपक जाते हैं। आत्मा के तमाम रंगों तक पहुंचने की हमारी यात्रा मन से होकर गुजरती है। हमें अपने विचारों को सही रखना होता है। उसमें दूसरों के लिए जगह छोड़नी होती है। नकारात्मक ऊर्जा के नुकसान से बचने के लिए होली के रंगों में सराबोर होना, रंगों का ध्यान करना, अपनी पर्वमय संस्कृति से रू-ब-रू होना फायदेमंद साबित होता है। - ललित गर्ग लेखक, पत्रकार एवं स्तंभकार

प्रभासाक्षी 23 Mar 2024 1:12 pm

Holi 2024: छोटी होली के दिन लग रही भद्रा, जानिए होलिका दहन का मुहूर्त और कब खेला जाएगा रंग

होली का महत्व ब्रज की होली दुनिया भर में प्रसिद्ध है। ब्रज के मथुरा, वृंदावन, गोवर्धन, गोकुल, नंदगांव और बरसाना में होली के त्योहार में शामिल होने के लिए दुनिया भर से श्रद्धालु पहुंचते हैं। इसमें भी बरसाना की लट्ठमार होली तो निराली है। होली का त्योहार दो दिन मनाया जाता है। होली के पहले दिन सूर्यास्त के बाद शुभ मुहूर्त में होलिका दहन किया जाता है और इस दिन को छोटी होली के नाम से जाना जाता है। होली के दूसरे दिन को रंग खेलते हैं। सूखे गुलाल और पानी के रंगों का उत्सव मनाते हैं। मौज-मस्ती के कारण दूसरे दिन को ही होली का मुख्य दिन माना जाता है। इसे रंगोंवाली होली या धुलण्डी के नाम से भी जानते हैं। कब है होली 2024 होली का पर्व फाल्गुन पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। इस साल फाल्गुन पूर्णिमा की शुरुआत 24 मार्च को सुबह 9.54 बजे हो रही है और यह तिथि 25 मार्च को दोपहर 12.29 बजे संपन्न हो रही है। इसलिए होलिका दहन 24 मार्च रविवार को होगा। धुलण्डी 25 मार्च को मनाई जाएगी। ये भी पढ़ेंः Mercury Transit: 26 मार्च को मंगल की राशि में आएंगे बुध, इन 3 राशियों के लोग रहें संभलकर होली पर शुभ योग, होलिका दहन का मुहूर्त होली पर दो शुभ योग बन रहे हैं। वृद्धि योग रात 9.30 बजे तक है, जबकि ध्रुव योग का समय 24 मार्च को पूरे दिन है। वहीं होलिका दहन का मुहूर्त रात 11.13 बजे से रात 12.07 बजे तक है। होलिका दहन 2024 के दिन भद्रा पंचांग के अनुसार होलिका दहन पर भद्रा का साया है। 24 मार्च को होलिका दहन के दिन ही भद्रा भी लग रही है। इस दिन भद्रा सुबह 09.54 बजे से लग रही है जो रात 11 बजकर 13 मिनट तक है। इस दिन भद्रा की पूंछ का समय शाम 06:33 बजे से शाम 07:53 बजे तक, भद्रा के मुख का समय शाम 07:53 बजे से रात 10:06 बजे तक है। पंचांग के अनुसार होलिका दहन के दिन पृथ्वी लोक पर भद्रा का वास सुबह 09:54 बजे से दोपहर 02:20 बजे तक है, पृथ्वी लोक की भद्रा ही हमारे लिए प्रभावी मानी जाती है। इसलिए इस समय कोई काम नहीं करते, वहीं पाताल लोक भद्रा का वास दोपहर 02:20 बजे से रात 11:13 बजे तक है।

पत्रिका 22 Mar 2024 12:46 pm

Shukra Pradosh Vrat 2024: शुक्र प्रदोष व्रत से प्राप्त होती है समृद्धि

आज शुक्र प्रदोष व्रत है, हिन्दू धर्म में प्रदोष व्रत का खास महत्व है। इस दिन भगवान शिव को प्रसन्न किया जाता है, तो आइए हम आपको शुक्र प्रदोष व्रत की विधि एवं महत्व के बारे में बताते हैं। जानें शुक्र प्रदोष व्रत के बारे में पुराणों के अनुसार शुक्र प्रदोष व्रत धनदायक माना जाता है। प्रदोष व्रत के दिन जो व्यक्ति भगवान शंकर की शाम को विधिवत पूजा करता है वह सभी पापकर्मों से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त होता है। भगवान भोलेनाथ स्वंय उसी हर संकट से रक्षा करते हैं, धन-सुख, समृद्धि से जीवन परिपूर्ण रहता है। इस साल 22 मार्च को शुक्र प्रदोष पड़ा है और यह व्रत बहुत खास है, शिव भक्तों को मिलेगा दोगुना फल। धार्मिक मान्यता है कि प्रदोष व्रत रखने से भोलेनाथ भक्तों के सभी कष्ट दूर करते हैं। इस दिन शिवजी की आरती का पाठ करने से शुभ फल प्राप्त होता है। इस दिन इस शिव चालीसा का पाठ जरूर करें। इसे भी पढ़ें: Holi Celebration 2024: राशि अनुसार खेलें रंगों की होली और बनें सौभाग्यशाली शुक्र प्रदोष व्रत के शुभ संयोग 22 मार्च 2024 को शुक्र प्रदोष व्रत वाले दिन धृति और रवि योग का संयोग बन रहा है। इस दिन सूर्य-बुध की युति से बुधादित्य योग, कुंभ राशि में शुक्र, शनि और मंगल की युति से त्रिग्रही योग बन रहा है। ऐसे में शिव पूजा करने वालों इन सभी ग्रहों की शुभता प्राप्त होगी। शुक्र प्रदोष व्रत 2024 मुहूर्त फाल्गुन शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि शुरू- 22 मार्च 2024, सुबह 04 बजकर 44 फाल्गुन शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि समाप्त- 23 मार्च 2024, सुबह 07 बजकर 17 पूजा का समय- शाम 06.34- रात 08.55 शुक्र प्रदोष व्रत के दिन करें ये उपाय धन के लिए उपाय- बिजनेस में दिन दोगुनी रात चौगुना तरक्की चाहते हैं, तो प्रदोष व्रत की शाम को शिव मंदिर जल में गुलाल डालकर शिव जी का अभिषेक करें। पंडितों का मानना है इससे धन प्राप्ति के रास्ते खुलते हैं. मां लक्ष्मी की कृपा बरसती है। अच्छा जीवनसाथी- शादी के लिए मनचाहा जीवनसाथी पाना चाहते हैं तो शुक्र प्रदोष व्रत की शाम एक मौली से शिव-पार्वती का गठबंधन कराएं और शिव चालीसा का पाठ करें। कहते हैं इससे लव लाइफ में मिठास आती है. साथ ही सुयोग्य जीवनसाथी पाने की कामना पूरी होती है। परेशानियों का अंत- किसी मुकदमे में फंसे हैं और उसके चलते आपकी परेशानियां घटने के बजाय बढ़ती जा रही हैं, तो प्रदोष व्रत के दिन धतूरे के पत्ते को पहले साफ पानी से धो लें, फिर उन्हें दूध से धोकर शिवलिंग पर अर्पित करें। ऐसा करने से आपको मुकदमे की परेशानियों से बाहर निकलने में मदद मिलेगी। शुक्र व्रत पूजा सामग्री में होता है इन सामग्रियों का इस्तेमाल पंडितों के अनुसार पूजा की सामग्री में धूप, रोली, दीप, चंदन, अक्षत, शमी के पत्ते, मिठाई, फल, फूल, धतूरा, भस्म और बेलपत्र आदि शामिल किए जा सकते हैं। निम्न वो मंत्र दिए जा रहे हैं जिनका प्रदोष व्रत की पूजा के दौरान जाप किया जा सकता है। शुक्र प्रदोष व्रत से जुड़ी पौराणिक कथा प्राचीन काल में एक नगर में राजकुमार, ब्राह्मण कुमार और धनिक पुत्र तीन मित्र रहते थे। इन मित्रों में राजकुमार, ब्राह्मण कुमार अविवाहित थे लेकिन धनिक पुत्र का विवाह हो गया था लेकिन गौना बाकी था। तीनों मित्र एक दिन बात कर रहे थे कि स्त्रियों के घर विरान होता है और उसमें भूत निवास करते हैं। उसके बाद धनिक पुत्र अपने ससुराल गया और विदाई की जिद करने लगा। इस पर उसके ससुराल वालों ने कहा कि अभी शुक्र देव डूबे हैं, अभी विदाई करना ठीक नहीं है। लेकिन धनिक पुत्र नहीं माना और अपनी पत्नी विदा कर ले आया। रास्ते में बैलगाड़ी का पहिया टूट गया और दोनों पति-पत्नी गिर गए उन्हें चोट लग गयी। उसके बाद उन्हें रास्ते में डाकू मिले जो सारा धन लूटकर ले गए। इसके बाद भी परेशानी कम नहीं हुई घर पहुंच कर धनिक पुत्र को सांप ने काट लिया और वैद्य ने कहा कि यह केवल तीन दिन तक जीवित रहेगा। तब धनिक पुत्र के घर वाले उसके मित्र ब्राह्मण कुमार को बुलाए। ब्राह्मण कुमार ने धनिक के मां-बाप को शुक्र प्रदोष का व्रत करने की सलाह दी और धनिक को उसकी पत्नी के साथ ससुराल भेज दिया। इस प्रकार शुक्र व्रत के प्रभाव से धनिक पुत्र की समस्याएं कम हो गयीं और वह धीरे-धीरे ठीक हो गया। शुक्र प्रदोष व्रत के मंत्र प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव की पूजा के दौरान कुछ खास मंत्रों का जाप भी किया जा सकता है। इन मंत्रों का जाप करना बेहद शुभ माना जाता है। शुक्र प्रदोष व्रत के नियम जानें प्रदोष व्रत करने वाले साधक को सुबह जल्दी उठकर नित्य क्रिया के बाद घर की साफ सफाई कर के स्नान करना चाहिए। इसके बाद पूजा स्थल या अपने घर के मंदिर की अच्छी तरह से साफ सफाई करें। अब एक चौकी लें और उस पर लाल कपड़ा बिछाएं और शिव परिवार की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें। इसके बाद शिव परिवार के समक्ष प्रदोष व्रत का संकल्प लें। अब पंचामृत और जल से शिव परिवार को स्नान करवाएं। सफेद चंदन और अक्षत का तिलक करें। अब घी का दीपक और धूप जलाएं। भगवान शिव को बेल पत्र बहुत प्रिय माने जाते हैं इसलिए उनकी पूजा में उनको बेल पत्र जरूर अर्पित करें। अब भगवान को सफेद फूलों की माला अर्पित करें और सम्पूर्ण शिव परिवार को खीर का भोग लगाएं। अब महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें और प्रदोष व्रत कथा पढ़ें या सुने। पूजा का समापन आरती के साथ करें और पूजा या व्रत में हुई गलतियों के लिए भगवान से क्षमा मांगे और अगले दिन सुबह पूजा करने के बाद अपना व्रत खोलें। शुक्र प्रदोष व्रत पर ऐसे करें पूजा, मिलेगा लाभ मार्च का दूसरा प्रदोष व्रत शुक्रवार के दिन पड़ रहा है और इसलिए इसे शुक्र प्रदोष व्रत कहा जाता है। इस दिन भगवान शिव का पूजन शाम के समय प्रदोष काल में किया जाता है। पंडितों के अनुसार प्रदोष काल में भोलेनाथ प्रसन्न मुद्रा में होते हैं और इस दौरान उनकी अराधना करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है। शुक्र प्रदोष व्रत के दिन सुबह उठकर स्नान आदि करने के बाद मंदिर में पूजा करें। भोलेनाथ और माता पार्वती को तिलक लगाएं और फिर उन्हें फूल व फल अर्पित करें। इसके बाद दिनभर फलाहार करें और शाम के समय प्रदोष काल में स्नान आदि करने के बाद मंदिर में चौकी बिछाकर शिव परिवार की तस्वीर स्थापित करें। शिव जी और गणेश जी को चंदन का तिलक लगाएं और पार्वती जी को सिंदूर का तिलक लगाएं। फिर शिव जी को बेल पत्र और धतूरा अर्पित करें। इसके बाद घी की दीपक जलाएं और मिष्ठान का भोग लगाएं।फिर शिव चालीसा का पाठ करें और भोलेनाथ से अपनी गलतियों के लिए क्षमा मांगे। - प्रज्ञा पाण्डेय

प्रभासाक्षी 22 Mar 2024 12:08 pm

Govind Dwadashi 2024: गोविंद द्वादशी व्रत से प्राप्त होते हैं मनोवांछित फल

आज गोविंद द्वादशी है, इस व्रत को करने भक्त को सभी प्रकार के सुख, सौभाग्य तथा समृद्धि मिलती है तो आइए हम आपको गोविद द्वादशी व्रत के महत्व के बारे में बताते हैं। गोविंद द्वादशी व्रत के बारे में जानें खास बातें हिंदू कैलेंडर के फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को गोविंद द्वादशी व्रत होता है। गोविंद द्वादशी के दिन नरसिंह द्वादशी भी मनाया जाता है। इस दिन भगवान गोविंद की पूजा-अर्चना करने का विधान है। इस व्रत को रखने से मनोवांछित फल प्राप्त होता है। इस साल गोविंद द्वादशी 21 मार्च को है। इसे भी पढ़ें: Laxmi Avatar: मां लक्ष्मी ने पृथ्वी पर लिए कई अवतार, इन मंत्रों के जाप से प्रसन्न होंगी धन की देवी गोविंद द्वादशी का महत्व पुराणों के अनुसार जगत का पालन करने वाले श्री गोविंद का स्वरूप शांत और आनंदमयी है। इनका स्मरण करने से भक्तों के जीवन के समस्त संकटों का निवारण होता है। घर-परिवार को धन-धान्य और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। इस व्रत के प्रभाव से मानव जीवन के समस्त समस्याएं दूर हो जाती हैं और अंत में बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती। गोविंद द्वादशी व्रत से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है तथा सभी रोग और कष्ट दूर होते हैं। इस दिन व्रत से पितृदोष शांत होते हैं तथा किसी प्रकार का धनाभाव नहीं रहता है। पूजा के बाद गोविंद द्वादशी कथा जरूर सुननी चाहिए। पूजा अर्चना के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराकर दक्षिणा देना चाहिए। गोविंद द्वादशी व्रत पर ऐसे करें पूजा शास्त्रों के अनुसार गोविंद पूजा का हिन्दू धर्म में खास महत्व है। इसके लिए प्रातः स्नान आदि से निवृत्त होकर साफ कपड़े पहनकर, ईशान कोण, यानि उत्तर-पूर्व दिशा के कोने को साफ करके, उस कोने को गाय के गोबर से लीपकर, उस पर आठ पंखुड़ियों वाला कमलदल बनाएं। फिर उस कमल के बीचों-बीच एक कलश स्थापित करें और कलश के ऊपर एक चावलों से भरा हुआ बर्तन रखें। अब उस चावलों से भरे बर्तन के ऊपर भगवान नृसिंह की प्रतिमा रखें और पूजन विधि आरंभ करें। सबसे पहले भगवान को पंचामृत से स्नान कराएं। फिर चंदन, कपूर, रोली, तुलसीदल, फल-फूल, पीले वस्त्र आदि भगवान को भेंट करें और फिर धूप दीप आदि से भगवान की पूजा करें। साथ ही भगवान नृसिंह के इस मंत्र का जप करें। मंत्र इस प्रकार है- 'ॐ उग्रवीरं महाविष्णुं ज्वलन्तं सर्वतोमुखं। नृसिंहं भीषणं भद्रं मृत्युमृत्युं नमाम्यहम् ॥' इस दिन इस मंत्र का जप करने से आपकी आर्थिक स्थिति मजबूत होगी। आपको किसी प्रकार का कोई भय नहीं होगा। आपको कोई बुरी शक्ति परेशान नहीं कर पाएगी। पूजन के बाद चरणामृत एवं प्रसाद सभी को बांटें। ब्राह्मणों को भोजन कराने के बाद दक्षिणा देनी चाहिए। फिर खुद भोजन करें। इस दिन अपने पूर्वजों का तर्पण करने का भी विधान है। यह व्रत सर्वसुखों के साथ-साथ बीमारियों को दूर करने में भी कारगर है। अत: फाल्गुन द्वादशी के दिन पूरे मनोभाव से पूजा-पाठ आदि करते हुए दिन व्यतीत करना चाहिए। गोविंद द्वादशी व्रत से जुड़ी पौराणिक कथा शास्त्रों में गोविंद द्वादशी से जुड़ी पौराणिक कथा प्रचलित है। इस कथा के अनुसार कश्यप ऋषि की पत्नी दिति के हिरण्याक्ष व हिरण्यकशिपु नाम के दो पुत्र थे। हिरण्यकशिपु के पुत्र का नाम प्रह्लाद था वह विष्णु भगवान का परम भक्त था। हिरण्यकशिपु उसको मारने का प्रयास करता लेकिन हर बार वह बच जाता। एक बार भरी सभा में प्रहलाद ने जब भगवान विष्णु के सर्वशक्तिमान होने की बात कर रहा था तभी हिरण्यकश्यपु को क्रोधित हो गया और उसने कहा कि अगर तुम्हारा भगवान है तो उसे इस खम्बे से बुलाकर दिखाओ। उसके बाद भक्त प्रह्लाद ने भक्ति से भगवान विष्णु को याद किया तब श्री विष्णु खम्बे से नृसिंह अवतार में प्रकट हुए और उन्होंने हिरण्यकश्यपु का वध कर दिया। इस प्रकार भगवान नरसिंह ने प्रह्लाद को आर्शीवाद दिया कि इस दिन मेरे स्मरण एवं पूजन से लोगों की सभी मनोकामनाएं पूरी होंगी और सभी कष्ट दूर होंगे। गोविंद द्वादशी व्रत में ये पूजा सामग्री करें इस्तेमाल पंडितों के अनुसार गोविंद द्वादशी व्रत में पूजा करते समय केले का पत्ता, आम का पत्ता, रोली, मोली, कुमकुम, फूल, फल, तिल, घी, दीपक, पान का पत्ता, नारियल, सुपारी, लकड़ी, भगवान की फोटो, चौकी, आभूषण तथा तुलसी पत्र अवश्य होना चाहिए। गोविंद द्वादशी के दिन करें ये उपाय भगवान विष्णु की पूजा: गोविंद द्वादशी के दिन भगवान विष्णु की विशेष पूजा की जाती है। भक्तों को भगवान विष्णु को तुलसी, फल, मिठाई और चंदन अर्पित करना चाहिए। दान-पुण्य: इस दिन दान-पुण्य करने का भी विशेष महत्व है। भक्तों को गरीबों और जरूरतमंदों को दान-पुण्य करना चाहिए। भजन-कीर्तन: इस दिन भगवान विष्णु के भजन-कीर्तन करने का भी विशेष महत्व है। गोविंद द्वादशी एक महत्वपूर्ण त्योहार है। इस दिन व्रत रखने और भगवान विष्णु की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। गोविंद द्वादशी पूजा का शुभ मुहूर्त द्वादशी तिथि आरंभ- 21 मार्च को प्रातः 2 बजकर 23 मिनट से द्वादशी तिथि समाप्त- 22 मार्च को शाम 4 बजकर 44 मिनट तक - प्रज्ञा पाण्डेय

प्रभासाक्षी 21 Mar 2024 12:12 pm

Amalaki Ekadashi 2024: आमलकी एकादशी पर आंवले के वृक्ष की पूजा का है विशेष महत्व, मिलेगा दीर्घायु का आशीर्वाद

हिंदू धर्म में व्रत-त्योहार का अधिक महत्व होता है। लेकिन सभी व्रतों में एकादशी का व्रत बेहद शुभ माना जाता है। एकादशी का व्रत भगवान श्रीहरि विष्णु को समर्पित होता है। एकादशी के दिन जातक आध्यात्मिक भक्ति के साथ व्रत और पूजा करते हैं। बता दें कि हर महीने में दो एकादशी पड़ती हैं। इस तरह से पूरे साल में कुल 24 एकादशी पड़ती हैं। इन सभी 24 एकादशी को अलग-अलग नामों से जाना जाता है। आमलकी एकादशी फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष को पड़ने वाली एकादशी को आमलकी एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस एकादशी को आंवला एकादशी या रंगभरी एकादशी भी कहा जाता है। इस साल 20 मार्च 2024 यानी की आज आमलकी एकादशी का व्रत किया जा रहा है। इस दिन आंवले के पेड़ की पूजा करने का महत्व होता है। आमलकी एकादशी के दिन भगवान श्रीहरि विष्णु आंवले के पेड़ पर वास करते हैं। इसके अलावा इस दिन भगवान शिव की नगरी काशी में काशी विश्वनाथ के संग रंग-गुलाल वाली होली भी खेली जाती है। जिस कारण इसे रंगभरी एकादशी भी कहा जाता है। इसे भी पढ़ें: Khatu Shyam Mela 2024: आस्था के प्रतीक हैं खाटू के श्री श्याम, वार्षिक मेले में आते हैं लाखों श्रद्धालु पूजा विधि इस दिन सुबह जल्दी स्नान आदि कर स्वच्छ वस्त्र पहनें। फिर पूजाघर की सफाई कर घी का दीपक जलाएं और व्रत का संकल्प लें। इसके बाद लकड़ी की चौकी पर भगवान विष्णु की प्रतिमा या मूर्ति को स्थापित करें। फिर श्रीहरि को पीले चंदन का तिलक कर उन्हें पीले पुष्पों की माला पहनाएं। फिर फल, पंचामृत, पंजीरी, पंचमेवा और तुलसी पत्ता आदि का भोग लगाकर भगवान से मन ही मन भोग ग्रहण करने की प्रार्थना करें। इसके बाद विधि-विधान से आवंले के वृक्ष की पूजा करें। आंवले के वृक्ष के नीचे नवरत्न युक्त कलश स्थापित कर धूप-दीप अर्पित करें। इसके बाद वृक्ष पर चंदन, फल, फूल, रोली और अक्षत आदि अर्पित करें। यदि आपके घर के आसपास आंवले का वृक्ष नहीं है, तो आप श्रीहरि को प्रसाद के रूप में आंवला का फल चढ़ा सकते हैं। पूजा के बाद आरती करें और पूजा में हुई भूल के लिए क्षमा प्रार्थना करें। आमलकी एकादशी का महत्व भगवान श्रीहरि विष्णु का आशीर्वाद पाने के लिए आमलकी एकादशी का व्रत किया जाता है। इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा अवश्य करनी चाहिए। वहीं पूजा में भगवान विष्णु को आंवका अर्पित करना चाहिए। आंवले के फल को काफी गुणकारी माना गया है। यह लंबी आयु का भी प्रतीक होता है। इस दिन भगवान विष्णु को आंवला चढ़ाने और आंवले के पेड़ की पूजा करने से व्यक्ति दीर्घायु होता है। आमलकी एकादशी के दिन पूजा-अर्चना के बाद कुछ समय आंवले के वृक्ष के नीचे बैठने की सलाह दी जाती है। आमलकी एकदशी का व्रत रखने वाले व्यक्ति को धन-समृद्धि, सुख-सौभाग्य और सभी सांसारिक सुखों की प्राप्ति होती है।

प्रभासाक्षी 20 Mar 2024 8:38 am