राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा की मजबूती के लिए ‘साइबर सुरक्षा’ अभ्यास
नई दिल्ली, 16 जून . साइबर खतरों से निपटने के लिए भारतीय सुरक्षा व साइबर एजेंसियों ने खास पहल की है. डिफेंस साइबर एजेंसी ने एक व्यापक साइबर सुरक्षा अभ्यास ‘साइबर सुरक्षा’ शुरू किया गया है. इस साइबर सुरक्षा अभ्यास का आरंभ 16 जून को किया गया. इसके अलावा भारतीय सेना की एक टुकड़ी फ्रांस ... Read more
आईआईटी इंदौर की टीम ने इलेक्ट्रॉनिक मशीन और उपकरणों में लगने वाली चिप की रिवर्स इंजीनियरिंग व उसे क्लोन कर डिजाइन चोरी करने की समस्या का समाधान खोज निकाला है। टीम ने चिप डिजाइन में डीएनए सिग्नेचर को एंबेड करने की एक अनोखी टेक्नोलॉजी बनाई है। इससे अब कोई भी चिप की डिजाइन को चुरा नहीं सकेगा। प्रोफेसर अनिर्बन सेनगुप्ता और ट्रांसलेशनल रिसर्च फैलो आदित्य अंशुल की टीम ने हार्डवेयर डिजाइनों की साइबर सुरक्षा को मजबूत करने के लिए डीएनए आधारित वाटर मार्किंग तकनीक विकसित की है। यह अत्याधुनिक तकनीक मल्टीमीडिया, मेडिकल डिवाइसेस, मशीन लर्निंग और डिजिटल सिग्नल प्रोसेसिंग जैसे क्षेत्रों में इस्तेमाल होने वाले हार्डवेयर को सुरक्षित बनाने में कारगर साबित होगी। यह शोध प्रतिष्ठित नेचर साइंटिफिक रिपोर्ट्स जर्नल में प्रकाशित हुआ है। इस नवाचार को लेकर आईआईटी इंदौर के निदेशक प्रो. सुहास जोशी ने कहा कि ये तकनीक डीप टेक की मदद से दुनिया की असली समस्याओं का समाधान खोजने के लिए हमारी प्रतिबद्धता का प्रमाण है। इमेज प्रोसेसिंग सिस्टम में मददगार प्रोफेसर सेनगुप्ता ने कहा कि डीएनए आधारित वाटर मार्किंग तकनीक हार्डवेयर को साइबर सिक्योरिटी प्रदान करने का एक नया रास्ता है। इससे जितने भी आईपी वेंडर हैं, उन्हें यह भरोसा होगा कि उनकी चिप डिजाइन सिर्फ उनके नाम ही रहेगी, कोई इन्हें चोरी नहीं कर सकेगा। यह तकनीक इमेज प्रोसेसिंग सिस्टम, जेपेग-कोडेक, कार्डियक पेसमेकर, ईसीजी के क्यूआरएस डिटेक्टर, सीएनएन-आधारित एक्सेलरेटर और एफआईआर, डीसीटी, एफएफटी प्रोसेसर जैसे डिजिटल सिग्नल प्रोसेसिंग यूनिट्स की सुरक्षा में बेहद कारगर है। ये है समस्या सेमीकंडक्टर चिप डिजाइन करने और उसके उत्पाद बनाने तक की पूरी प्रक्रिया में कई कंपनियां शामिल होती हैं, जैसे आईपी वेंडर, सिस्टम ऑन चिप इंटीग्रेटर और चिप मैन्युफैक्चरर। असल में चिप डिजाइन सिर्फ आईपी वेंडर ही करता है, लेकिन जब वो अपनी चिप डिजाइन दूसरी कंपनी को देता है तो हमेशा ये आशंका बनी रहती है कि कोई गलत तरीके से उसकी चिप की डिजाइन को कॉपी न कर ले या चिप की डिजाइन पर अपना मालिकाना हक न जताए। अकसर इसे कॉपी करने में कुछ ऐसे लॉजिक भी अनजाने में इसमें डाले जा सकते हैं, जिनकी जांच नहीं की हो। इससे असली निर्माता और ग्राहकों को खतरा हो सकता है। ये समाधान : आईपी वेंडर की पहचान के आधार पर बनाया डीएनए जैसा यूनिक डिजिटल फिंगरप्रिंट इसी समस्या को हल करने के लिए डीएनए फिंगरप्रिंट वाटर मार्किंग मेथड का उपयोग किया गया है। यह कम्प्यूटर-एडेड डिजाइन पर आधारित है। बायोलॉजी में जैसे हर इंसान का डीएनए अलग होता है, उसी सिद्धांत पर ये काम करती है। इस तकनीक के जरिए आईपी वेंडर की पहचान के आधार पर एक यूनिक डीएनए फिंगरप्रिंट बनाएगा, जो हार्डवेयर डिजाइन में एम्बेड होगा और एक मजबूत डिजिटल वाटर मार्क का काम करेगा। इस वाटर मार्किंग की तकनीक में डीएनए जैसे सीक्वेंस को अलग-अलग करके, उनकी प्रतिकृति बनाकर और उन्हें जोड़कर एक बेहद अनोखा डीएनए सिग्नेचर बनाने का काम किया जाता है। फिर इस सिग्नेचर को गुप्त रूप से हार्डवेयर डिजाइन में एम्बेड किया जाता है। इस अनोखे डीएनए-आधारित वाटर मार्क को एम्बेड करके, कोई भी इंसान- चाहे वो ग्राहक हो या मैन्युफैक्चरर, यह सुनिश्चित कर सकता है कि हार्डवेयर असली है और सही आईपी विक्रेता से प्राप्त है। यह तकनीक वैश्विक सेमीकंडक्टर डिजाइन और मैन्युफैक्चरिंग प्रक्रिया में गलत कामों को रोकने के लिए विशेष रूप से उपयोगी है।