Chile and Argentina Earthquake:चिली और अर्जेंटीना में शुक्रवार को भूकंप के तेज झटके महसूस किए गए हैं. मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया जा रहा है कि यह झटके 7.4 तीव्रता के थे. भूकंप के कई हैरान कर देने वाले वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं.
Hot Bedding: आधा बिस्तर बेचती है लड़की, हर महीने कमाती है लाखों, आखिर क्यों उठाया ये कदम
Hot Bedding: कनाडा में महंगाई से परेशान लोग अपने रोजमर्रा के खर्च पूरे करने के लिए तरह-तरह के तरीके अपना रहे हैं. इन्हीं में से एक तरीका सोशल मीडिया पर काफी चर्चा का विषय बना हुआ है.
Viral news: जरा सोचिए आप शानदार माहौल में मन बहलाने के लिए किसी पॉश इलाके के मशहूर रेस्टोरेंट में हों और हाथ में फेवरेट ड्रिंक हो तो बस मजा ही आ जाएगा, लेकिन अचानक आपके ग्लास में सांप आ जाए तो क्या होगा? अब जिस बारे में आपको बताने जा रहे हैं वो कहानी कुछ ऐसी ही सिचुएशन को बयान करती है.
पाकिस्तान पर हमला हुआ तो चीन के साथ मिलकर पीछे छुरा घोंपेगा बांग्लादेश! उगला जहर
Bangladesh on Northeastern States: बांग्लादेश राइफ्ल के पूर्व प्रमुख मेजर जनरलफजलुर्रहमान ने भारत के खिलाफ जहर उगलते हुए कहा कि अगर भारत पाकिस्तान पर हमला करता है तो बांग्लादेश को चाहिए कि वो भारत के पूर्वोत्तर राज्यों कब्जा कर ले.
Ukraine-Russia Conflict: यूक्रेन-रूस जंग कब खत्म होगी? यह सवाल अभी भी बना हुआ है. इस जंग को कौन रोक पाएगा? यह भी किसी को नहीं पता, अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के दौरान ट्रंप ने जंग में हस्तक्षेप करने की हुंकार तो भरी लेकिन धरातल पर कुछ नहीं दिखा. इसी बीच यूक्रेन-रूस जंग को लेकरअमेरिकी विदेश मंत्री और कार्यवाहक राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मार्को रुबियो ने बड़ा बयान दिया है. जानें पूरी खबर.
ट्रंप ने NSA को पद से हटाकर बनाया राजदूत, ये प्रमोशन है या डिमोशन? क्या बोले उपराष्ट्रपति जेडी वेंस
अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने माइक वाल्ट्ज को एनएसए पद से हटाए जाने और संयुक्त राष्ट्र में अमेरिकी राजदूत पद पर चुने जाने को 'प्रमोशन यानी पदोन्नति' के रूप में पेश करने की कोशिश की है.
Pahalgam terror attack News: पहलगाम आतंकी हमले के बाद पूरी दुनिया भारत के साथ खड़ी है. आतंकवाद को नाश करने के लिए भारत के पीएम मोदी ने पहले हीहुंकार भर दी है. दुनिया भर के देशों ने आतंकवाद के खिलाफ भारत को हर संभव मदद की पेशकश भी की है. इसी बीच भारत ने पूरी दुनिया में पाकिस्तान के चेहरे को बेनकाब करने के लिए एक चक्रव्यूह रचा. जानें क्या है पूरी बात.
तो क्या एलन मस्क ही गौतम बुद्ध के अवतार हैं? DOGE छोड़ते ही ट्विटर के मालिक ने क्या कह दिया
Elon Musk: मस्क ने प्रेस से मुलाकात की और DOGE यानी Department of Government Efficiency छोड़ने की बात कही. इस दौरान उन्होंने खुद की तुलना भगवान बुद्ध से कर दी. हालांकि मस्क का व्हाइट हाउस से नाता पूरी तरह नहीं टूटेगा.
नाटक मत करो...आतंकी अड्डे खत्म करने में भारत की मदद करे पाकिस्तान, अमेरिका ने सुना दी खरी-खरी
Pahalgam Terror Attack: पहलगाम आतंकवादी हमले को लेकर भारत ने पाकिस्तान को जवाबी कार्रवाई की चेतावनी दी है. इसको लेकर पाकिस्तान हुक्मरान दहशत में हैं. पहलगाम टेरर अटैक ऐसे वक्त हुआ था, जब अमेरिकी उप राष्ट्रपति जेडी वेंस भारत दौरे पर थे.
'लापता' पाक सेनाध्यक्ष जनरल आसिम मुनीर सामने आया, भारत को दी गीदड़भभकी
Pahalgam Terror Attack Latest Update: पहलगाम हमले के बाद से लापता चल रहे पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष आसिम मुनीर ने भारत को गीदड़भभकी दी है. चीफ ऑफ आर्मी स्टॉफ जनरल मुनीर ने कहा कि अगर भारत ने किसी भी तरह से हमला किया तो पूरी ताकत से जवाब दिया जाएगा.
तारीख- 25 जून 1990जगह- बांदीपोरा, कश्मीर28 साल की शादीशुदा महिला गिरिजा टिक्कू एक सरकारी स्कूल में लैब असिस्टेंट थीं। घाटी में हालात बिगड़ने पर वो और उनका परिवार जम्मू पलायन कर चुका था। घर में पैसों की सख्त जरूरत थी, इसलिए एक दिन वो अपनी सैलरी लेने लौटीं। बांदीपोरा में गिरिजा अपनी पहचान के एक मुस्लिम परिवार के घर में ठहरी हुई थीं। अचानक उस घर में कुछ हथियारबंद लोग घुस आए। उन्होंने गिरिजा की आंख पर पट्टी बांधी और उसे कार में बिठा ले गए। सभी ने उनका सामूहिक बलात्कार किया। बदहवास गिरिजा उनमें से एक शख्स की आवाज पहचान गईं और उसे नाम से पुकारा। पहचान उजागर होने के डर से बलात्कारियों ने गिरिजा को कार से निकाला और पास की आरा मशीन में ले गए। आरी से गिरिजा के दो टुकड़े कर दिए और शव वहीं फेक दिया। पोस्टमॉर्टम में पता चला कि काटे जाते वक्त गिरिजा की सांसें चल रही थीं। 1990 के दशक का कश्मीर ऐसे ही खूनी किस्सों से सना हुआ था। ‘मैं कश्मीर हूं’ सीरीज के चौथे एपिसोड में आज घाटी में आतंकवाद बढ़ने और उसके सबसे बड़े शिकार कश्मीरी पंडितों की कहानी… सितंबर 1982 में कश्मीर के सबसे बड़े नेता शेख अब्दुल्ला का निधन हो गया। उसके बाद हुए जम्मू-कश्मीर के चुनाव में नेशनल कॉन्फ्रेंस ने बहुमत हासिल किया और शेख के बेटे फारूक अब्दुल्ला CM बने, लेकिन 1984 में एक बड़ा खेल हुआ। उस वक्त के राज्यपाल जगमोहन मल्होत्रा ने अपनी किताब 'माय फ्रोजन टर्बुलेंस इन कश्मीर' में लिखते हैं, ‘1 जुलाई 1984 की देर शाम फारूक के बहनोई गुलाम मोहम्मद शाह ने 12 विधायकों के साथ फारूक की सरकार से समर्थन वापस ले लिया। वो कांग्रेस (आई) के साथ मिलकर सरकार बनाना चाहते थे।’ अगली सुबह राज्यपाल ने फारूक की सरकार बर्खास्त कर दी। 2 जुलाई की शाम ही कांग्रेस और अन्य के समर्थन से गुलाम मोहम्मद शाह ने जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। अगले ढाई साल जम्मू-कश्मीर में सबसे भ्रष्ट सरकार का दौर रहा। शाह को कश्मीरी जनता का तीखा विरोध झेलना पड़ा। 7 मार्च 1986 को जीएम शाह की सरकार बर्खास्त कर दी गई। मार्च 1987 में जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव हुए। इसमें राजीव गांधी की कांग्रेस और फारूक अब्दुल्ला की नेशनल कॉन्फ्रेंस ने गठबंधन किया। दूसरी तरफ गिलानी की जमात-ए-इस्लामी जैसी एक दर्जन कट्टरपंथी पार्टियों ने मिलकर यूनाइटेड मुस्लिम फ्रंट यानी MUF बनाया। इस चुनाव में धांधली की हर सीमा पार हो गई। लेखक और राजनीतिक विश्लेषक सुमंत्र बोस अपनी किताब 'कश्मीर: रूट्स ऑफ कॉन्फ्लिक्ट, पाथ टु पीस' में लिखते हैं कि वोटरों को उनके घर भेज दिया गया था। बूथ कैप्चरिंग की गई। सारे मतपत्रों पर नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस की मुहर लगा दी गई। इसमें सरकार और उनकी पूरी मशीनरी काम कर रही थी। नतीजों में भी हेरा-फेरी हुई। लेखक अशोक कुमार पांडेय अपनी किताब ‘कश्मीरनामा’ में इसकी एक बानगी देते हैं। श्रीनगर की आमिर कदल सीट से मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट के यूसुफ शाह उम्मीदवार थे। उसके पोलिंग एजेंट का नाम यासीन मलिक था। बेमिना डिग्री कॉलेज में मतगणना शुरू हुई। रुझानों में यूसुफ बड़े अंतर से जीत रहा था। उसके प्रतिद्वंदी नेशनल कॉन्फ्रेंस के मोइउद्दीन शाह निराश होकर घर चले गए। थोड़ी देर बाद शाह को मतगणना अधिकारी ने घर से बुलाया और विजयी घोषित कर दिया। ऐसा कई जगह हुआ। लोग सड़क पर उतर आए। इसके बाद सरकार ने मोहम्मद यूसुफ शाह और उसके चुनाव प्रबंधक यासीन मलिक को गिरफ्तार कर लिया। इन चुनाव में नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस गठबंधन को जीत हासिल हुई। मोहम्मद यूसुफ शाह दो चुनाव हार चुका था। तीसरी बार धांधली करके जीता चुनाव हरवा दिया गया। 20 महीने बाद जेल से छूटने के बाद यूसुफ शाह ने राजनीति छोड़ दी और सीमा पार पाकिस्तान चला गया। यही यूसुफ शाह आतंकी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन का कमांडर बना। उसके पोलिंग एजेंट रहे यासीन मलिक ने जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट नाम का आतंकी संगठन बनाया। कश्मीर एक्सपर्ट क्रिस्टोफर स्नेडेन अपनी किताब 'अंडरस्टैंड कश्मीर एंड कश्मीरी' में लिखते हैं कि इस चुनाव के बाद सिर्फ यूसुफ शाह ही नहीं, तमाम निराश युवा कश्मीरी मुसलमान बॉर्डर पार करके PoK चले गए। वहां पाकिस्तानी सेना और ISI ने उन्हें हथियार चलाने की ट्रेनिंग दी। जब वे लौटे तो उनके हाथ में आधुनिक हथियार थे। सपोर्ट करने के लिए पैसा था। पाकिस्तान ने ये सब इसलिए किया था कि वो इन आतंकियों के भरोसे भारत के खिलाफ लड़ सके। इन चुनावों में पर्यवेक्षक रहे जी.एन. गौहर के मुताबिक- अगर आमिर कदल और हब्बा कदल सीटों पर चुनाव में धांधली नहीं होती, तो शायद कश्मीर में हथियारबंद संघर्ष को कुछ सालों तक टाला जा सकता था। लेखक अशोक कुमार पांडेय अपनी किताब 'कश्मीर और कश्मीरी पंडित' में लिखते हैं कि ‘हत्याओं का जो सिलसिला उस दौर में शुरू हुआ, भारत और कश्मीर के अपरिपक्व राजनीतिक नेतृत्व के चलते वो एक ऐसे हिंसक चक्रव्यूह में फंसता चला गया, जिससे बाहर निकलना आज तक मुमकिन नहीं हुआ और इसकी कीमत सबको चुकानी पड़ी- बंदूक उठाए लोगों को, बेगुनाह पंडितों और बेगुनाह मुसलमानों को भी।' 1989 वो साल था जिसमें कश्मीर में आतंकवाद हिंसक होना शुरू हुआ। पाकिस्तान से आतंकी ट्रेनिंग लेकर आने वाले युवा कश्मीरी किसी भी कीमत पर पंडितों को घाटी से निकालना चाहते थे। 23 जून 1989 को श्रीनगर में परचे बांटे गए। ये परचे 'हज्ब-ए-इस्लामी' नाम के संगठन ने बांटे थे। परचों में मुस्लिम महिलाओं के लिए लिखा था कि इस्लामिक नियमों को मानना शुरू कर दो, बुर्का पहनो। कश्मीरी पंडित महिलाओं से कहा गया कि वो माथे पर तिलक जरूर लगाएं, ताकि उन्हें आसानी से पहचाना जा सके। जो ये बात नहीं मानेगा उसे खामियाजा भुगतने के लिए तैयार रहना चाहिए। इस दौरान हुई एक घटना ने आतंकियों के हौसले और बुलंद कर दिए। वीपी सिंह को प्रधानमंत्री बने अभी 6 दिन हुए थे। उन्होंने अपनी सरकार में पहली बार एक मुस्लिम नेता मुफ्ती मोहम्मद सईद को गृहमंत्री बनाया था। 8 दिसंबर को दोपहर 3:45 बजे राजधानी दिल्ली के नॉर्थ ब्लॉक में मुफ्ती अपने कार्यकाल की पहली बैठक कर रहे थे। ठीक इसी वक्त दिल्ली से करीब 800 किलोमीटर दूर श्रीनगर में उनकी बेटी रूबैया सईद अपनी ड्यूटी के बाद हॉस्पिटल से घर जाने के लिए निकलीं। रूबैया MBBS करने के बाद इस हॉस्पिटल में इंटर्नशिप कर रही थीं। हॉस्पिटल से निकलकर रूबैया JFK 677 नंबर वाली एक ट्रांजिट वैन में सवार हुईं। ये वैन लाल चौक से श्रीनगर के बाहरी इलाके नौगाम की तरफ जा रही थी। रूबैया जैसे ही चानपूरा चौक के पास पहुंचीं, वैन में सवार तीन अन्य लोगों ने गनपॉइंट पर वैन को रोक लिया। उन लोगों ने रूबैया सईद को वैन से नीचे उतारकर सड़क के दूसरी तरफ खड़ी नीले रंग की मारुति कार में बैठा लिया। उसके बाद वह मारुति कार कहां गई, किसी को नहीं पता। 2 घंटे बाद यानी शाम करीब 6 बजे JKLF के जावेद मीर ने एक लोकल अखबार को फोन करके जानकारी दी कि हमने भारत के गृहमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रूबैया सईद का अपहरण कर लिया है। JKLF की तरफ से रूबैया को छोड़ने के बदले 20 आतंकियों को छोड़ने की मांग की गई। 13 दिसंबर की दोपहर, यानी 5 दिन तक सरकार और अपहरणकर्ताओं के बीच बातचीत चलती रही। आखिरकार सरकार ने 5 आतंकियों को रिहा कर दिया। बदले में कुछ ही घंटे बाद लगभग 7.30 बजे रूबैया को सोनवर में मध्यस्थ जस्टिस मोतीलाल भट्ट के घर सुरक्षित पहुंचा दिया गया। कश्मीरी पंडितों के खिलाफ नफरत 1989 के आखिर में और जहरीली हो गई थी। उन्हें लाउडस्पीकर पर चेतावनी देकर कश्मीर छोड़ने के लिए कहा जाता था। अशोक कुमार पांडे अपनी किताब 'कश्मीर और कश्मीरी पंडित' में लिखते हैं कि उस समय कश्मीरी पंडितों और अखबारों में घर छोड़ने की जो धमकियां दी गई थीं वो हिजबुल मुजाहिदीन के लेटर पैड पर दी गई थीं। JKLF और हिजबुल हिंसा की अगुआई कर रहे थे। उनके साथ करीब दो दर्जन छोटे-मझोले इस्लामिक संगठन पंडितों की जान के दुश्मन बने हुए थे। हथियारबंद लोगों ने कैसे कश्मीरी पंडितों को घाटी छोड़ने पर मजबूर किया। निर्मम हत्याओं की कुछ बानगी… 1. पंडित मर्द भाग जाएं, उनकी औरतें रहेंवरिष्ठ पत्रकार और कश्मीर की त्रासदी झेलने वाले राहुल पंडिता अपनी किताब 'अवर मून हैज ब्लड क्लॉट' में लिखते हैं कि 19 जनवरी 1990 की रात मैं सो रहा था। मस्जिद के लाउडस्पीकर से लगातार सीटी बजने की आवाज आ रही थी। मेरे मामा का परिवार हमारे घर आ चुका था। मामा और पिताजी कुछ बात कर रहे थे। तभी बाहर जोर से आवाज आई 'नारा ए तकबीर, अल्लाह हू अकबर'। मैंने ये नारा कुछ दिन पहले दूरदर्शन पर आए धारावाहिक 'तमस' में सुना था। फिर आवाज आई, हम क्या चाहते...आजादी, ए जालिमो, ए काफिरो, कश्मीर हमारा छोड़ दो। फिर कुछ देर में नारेबाजी थम गई। जब मेरी मां ने इसे सुना तो वो कांपने लगीं। उन्होंने कहा कि भीड़ चाहती है कि कश्मीर को पाकिस्तान में बदल दिया जाए। उसमें पंडित मर्द न हों, लेकिन उनकी औरतें हों। मां रसोई की ओर भागीं और लंबा चाकू ले आईं। उन्होंने कॉलेज जाने वाली मेरी बहन की तरफ देखकर कहा अगर वे (आतंकी) आए तो मैं इसे मार दूंगी। इसके बाद अपनी जान ले लूंगी। 2. मस्जिद की लिस्ट में नाम आया, अगली सुबह हत्यामार्च 1990। श्रीनगर के छोटा बाजार इलाके में 26 साल के बाल कृष्ण उर्फ बीके गंजू को चेतावनी दी जा चुकी थी कि वे कश्मीर छोड़ दें। उनके पड़ोसी ने बताया कि मस्जिद की लिस्ट में उनका नाम सबसे ऊपर था। अगले ही दिन गंजू और उसकी पत्नी ने श्रीनगर छोड़ने का फैसला किया। वो निकल ही रहे थे कि दरवाजे के बाहर से ही जोर से किसी ने कहा ‘गंजू साहब किधर है? उससे जरूरी काम है।’ पत्नी ने भीतर से कहा कि वो काम पर गए हैं। तब बाहर से आवाज आई अरे इतनी सुबह कैसे जा सकते हैं? मोहतरमा आप परेशानी समझिए हमें गंजू साहब से जरूरी काम है। दरवाजा नहीं खुला तो अजनबी खिड़की तोड़कर कर अंदर आने लगे। गंजू छत पर रखे चावल के ड्रम में छिप गए। आतंकियों ने पूरे घर में गंजू को खोजा। आहट मिलते ही उन्होंने गोली चला दी। बदहवास गंजू की पत्नी वहां पहुंची तो चावल से सनी खून की धार बह रही थी। 3. बाप-बेटों को मारकर लटका दिया, चमड़ी तक उधेड़ दीजम्मू-कश्मीर के दो बार राज्यपाल रहे जगमोहन अपनी किताब 'माय फ्रोजन टर्बुलेंस इन कश्मीर' में सर्वानंद कौल 'प्रेमी के बारे में लिखते हैं। सरकारी स्कूल के प्राध्यापक रहे सर्वानंद कौल केवल टीचर ही नहीं, वे कवि और लेखक भी थे। वे अनंतनाग जिले के शालि गांव में परिवार सहित रह रहे थे। दशतगर्दों की धमकी से पंडित भाग रहे थे, लेकिन प्रेमी ने तय किया वो कहीं नहीं जाएंगे। 30 अप्रैल 1990 को एक दिन तीन हथियारबंद लोगों ने दस्तक दी। परिवार के सभी लोगों को एक कमरे में इकट्ठा किया। प्रेमी को साथ ले जाने लगे तो कुछ मुस्लिम पड़ोसियों ने विरोध किया। बंदूक की नोंक के आगे उनका विरोध नहीं चला। प्रेमी के साथ उनका बेटा भी चल दिया। दो दिन हो गए थे। न प्रेमी लौटे ने उनका बेटा। दोनों की लाश एक जगह लटकी हुई मिलीं। लाशें देखकर पता चल रहा था कि दोनों के हाथ-पैर तोड़ दिए गए थे। बाल नोंचे गए थे। शरीर की चमड़ी जगह-जगह से उधेड़ दी गई थी। शरीर में जगह-जगह जलाने के निशान थे। ****'मैं कश्मीर हूं' सीरीज के पांचवे और आखिरी एपिसोड में कल यानी 3 मई को पढ़िए- वाजपेयी लाहौर में थे और पाक सेना कारगिल में और मोदी सरकार में कितना बदला कश्मीर... **** 'मैं कश्मीर हूं' सीरीज के अन्य एपिसोड एपिसोड-1: कश्मीर का पहला मुस्लिम शासक पहले बौद्ध था:हिंदू राजा को मारकर राजकुमारी से शादी की; घाटी में कैसे फैला इस्लाम एपिसोड-2: औरंगजेब को कश्मीरी औरतों के कपड़ों से दिक्कत थी:राजा गुलाब सिंह ने ₹75 लाख में खरीदा कश्मीर, रूस तक फैली थी रियासत एपिसोड-3: जिन्ना को कश्मीर आने से रोका, फिर हुआ नरसंहार:लाहौर तक पहुंची भारतीय सेना, क्या नेहरू की गलती से बना PoK; क्या इतिहास दोहराना अब संभव
हमारी शाहीन, गोरी और गजनवी जैसी 130 मिसाइलें भारत की तरफ निशाना साधे हुए हैं। किसी को नहीं पता कि हमने अपने न्यूक्लियर वेपन देशभर में कहां-कहां तैनात किए हैं। पाकिस्तान के रेलमंत्री हनीफ अब्बासी सबसे विनाशकारी हथियार की धमकी ऐसे दे रहे, मानो दिवाली के पटाखे हों। अमेरिका भी इसके खतरे समझता है। इसलिए कहा जाता है कि उसने पाकिस्तान के परमाणु हथियारों को कब्जे में लेने का एक ‘कंटिन्जेंसी प्लान’ बना रखा है। क्या सच में अमेरिका का ऐसा कोई प्लान है, ये किन हालातों में एक्टिवेट होगा और क्या अलग-अलग लोकेशन पर छिपाकर रखे गए 100 से ज्यादा परमाणु हथियारों को कब्जे में लेना संभव है; जानेंगे आज के एक्सप्लेनर में… सवाल-1: पाकिस्तान फौरन न्यूक्लियर अटैक की धमकी क्यों देने लगता है? जवाब: भारत और पाकिस्तान दोनों ने 1998 में परमाणु परीक्षण किए। 2003 में भारत ने न्यूक्लियर अटैक के लिए 'No First Use' की पॉलिसी अपनाई। यानी भारत पहला वार नहीं करेगा। इसलिए भारत की लीडरशिप कभी परमाणु हमले की धमकी नहीं देती। दूसरी तरफ पाकिस्तान का कोई न्यूक्लियर डॉक्ट्रिन नहीं है। वो मौका आने पर पहले भी न्यूक्लियर अटैक कर सकता है। इसलिए अपने परमाणु हथियारों को हाई-अलर्ट पर रखता है। अमेरिकी थिंकटैंक सेंटर फॉर स्ट्रैटजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज की रिसर्च एसोसिएट दीया अष्टकला के मुताबिक पाकिस्तान का न्यूक्लियर प्रोग्राम पूरी तरह से अपनी सैन्य कमजोरियों को छिपाने और भारत से मुकाबला करने के लिए है। पाकिस्तान को लगता है कि अगर पारंपरिक युद्ध हुआ, तो वह हार सकता है। इसलिए परमाणु धमकी से डराने की कोशिश करता है। सवाल-2: क्या अमेरिका ने पाकिस्तान के परमाणु हथियारों पर कब्जे का कोई कंटिन्जेंसी प्लान बनाया है? जवाब: न्यूक्लियर हथियारों के बारे में एक शब्द प्रचलित है - लूज न्यूक्स। यानी ऐसे परमाणु हथियार जिनके गलत हाथों में पड़ने का खतरा है। अमेरिका को डर है कि पाकिस्तान में अगर कट्टरपंथी ताकतें सत्ता या फौज पर काबिज हो जाती हैं, या अगर आतंकी संगठनों को इन हथियारों तक पहुंच मिल जाए, तो दुनिया के लिए बड़ा खतरा पैदा हो सकता है। 11 अप्रैल 2010 को तब के अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने साउथ अफ्रीका के प्रेसिडेंट जैकब जुमा को लिखा, अल-कायदा जैसे संगठन परमाणु हथियार हासिल करने की कोशिश में हैं और उन्हें इनको इस्तेमाल करते हुए कोई अफसोस नहीं होगा। अमेरिका की यही सबसे बड़ी चिंता है। अमेरिका के गवर्नमेंट ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट (GTI) की वेबसाइट पर छपे आर्टिकल के मुताबिक, ‘2 मई 2011 को लादेन के मारे जाने के बाद पाकिस्तान के तब के आर्मी चीफ जनरल अशफाक कयानी ने परमाणु हथियारों की सिक्योरिटी के इंचार्ज लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) खालिद किदवई को फोन किया। कयानी को चिंता थी कि अमेरिका पाकिस्तान के परमाणु हथियारों को हथियाने की कोशिश कर सकता है।’ 2011 में ही अमेरिकी चैनल NBC न्यूज ने कई अमेरिकी ऑफिसर्स से बातचीत के आधार पर दावा किया कि अमेरिका ने पाकिस्तान के परमाणु हथियारों को छीनने का इमरजेंसी प्लान बनाया है। 9/11 हमले के पहले से ही पाकिस्तान के न्यूक्लियर वेपंस की सुरक्षा सुनिश्चित करना अमेरिका की टॉप प्रायोरिटी है। अमेरिका के काउंटर टेररिज्म डिपार्टमेंट के डिप्टी डायरेक्टर रहे रोजर क्रेसी ने NBC न्यूज से कहा था कि पाकिस्तान के परमाणु हथियारों को लेकर अमेरिकी का प्लान तैयार है। 2005 में भी अमेरिका के तब के नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर कोंडोलीजा राइस ने कहा था कि इस्लामी तख्तापलट की स्थिति में पाकिस्तान के परमाणु हथियारों की समस्या से निपटने के लिए हम तैयार हैं। WikiLeaks और कुछ अमेरिकी डिफेंस जर्नल्स ने रिपोर्ट किया है कि अमेरिका और पाकिस्तान के बीच पर्दे के पीछे डिस्कशन होता रहा है कि अमेरिका क्या करेगा अगर हथियार खतरे में दिखें। अमेरिका की खुफिया एजेंसी CIA और स्पेशल फोर्सेस ने कथित तौर पर एक कोवर्ट प्लान तैयार किया है, जिसमें… सवाल-3: अमेरिका इस प्लान को किन हालातों में एक्टिवेट करेगा? जवाब: NBC न्यूज की रिपोर्ट के मुताबिक इन चार सिनेरियो में अमेरिका पाकिस्तानी परमाणु हथियार कब्जा करने का प्लान एक्टिवेट कर सकता है… सिनेरियो-1: आतंकी पाकिस्तान के न्यूक्लियर हथियारों पर कंट्रोल कर लें सिनेरियो-2: इस्लामी कट्टरपंथियों का सरकार या सेना पर कंट्रोल हो जाए सिनेरियो-3: पाकिस्तान में अंदरूनी अराजकता फैल जाए सिनेरियो-4: भारत के खिलाफ इस्तेमाल करने की तैयारी हो सवाल-4: अमेरिका इस प्लान को कैसे अंजाम देगा? जवाब: GTI के मुताबिक, पाकिस्तान के न्यूक्लियर वेपंस को कब्जाने के दो मुख्य प्लान हैं, जो अलग-अलग स्थितियों में काम करेंगे… 1. अगर कोई एक परमाणु हथियार गायब हो जाए 2. पाकिस्तान में मौजूद सभी परमाणु हथियारों पर खतरा सवाल-5: क्या 170 परमाणु हथियारों पर अमेरिका का कब्जा करना इतना आसान है? जवाब: ओसामा की हत्या के बाद पाकिस्तान ने अपने न्यूक्लियर वेपंस की सिक्योरिटी बढ़ा दी थी। GTI के मुताबिक, जनरल कयानी चिंतित थे कि अमेरिका के पास पाकिस्तान के एक से ज्यादा साइट्स पर रखे न्यूक्लियर वेपंस पर रेड करने की क्षमता है। इस पर किदवई ने कयानी से वादा किया कि वह न्यूक्लियर साइट्स पर अमेरिकी और भारतीय जासूसी को घुसने से रोकेंगे। कयानी से किदवई ने ये भी कहा कि हमारा न्यूक्लियर प्रोग्राम पूरे देश में फैला हुआ है। इसलिए अमेरिका को पूरे देश पर बड़े पैमाने पर हमला करना होगा। इसके बाद किदवई ने परमाणु हथियारों को तितर-बितर करने का आदेश दिया था। SPD, तब से परमाणु हथियारों को 15 या उससे ज्यादा न्यूक्लियर फैसिलिटीज के बीच शिफ्ट करता रहता है। परमाणु हथियारों को मेंटेनेंस के लिए ले जाते समय जासूसों और सैटेलाइट्स की नजर से बचाने के लिए कभी हेलीकॉप्टर से तो कभी बुलेटप्रूफ गाड़ियों के बजाय बिना सिक्योरिटी की पब्लिक वैन से ले जाया जाता है। एक सीनियर अमेरिकी खुफिया ऑफिसर ने नेशनल जर्नल को बताया कि डीमेटेड यानी परमाणु हथियारों को अलग-अलग हिस्सों में करने के बजाय लॉन्च के लिए तैयार यानी मेटेड वेपंस को भी बिना सुरक्षा के गाड़ियों से ले जाया जा रहा है। अमेरिका सुरक्षा बढ़ाने के लिए SPD को सैकड़ों करोड़ रुपए दे चुका है, लेकिन पाकिस्तान ने कभी भी अमेरिका को इस पैसे का ऑडिट नहीं करने दिया। न्यूक्लियर एक्सपर्ट्स का मानना है कि CIA जैसी अमेरिका की खुफिया एजेंसियों को पाकिस्तान के सभी परमाणु ठिकानों की जानकारी होना मुश्किल है। अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रहे जनरल जेम्स जोन्स ने 2011 में कहा था, 'कोई भी व्यक्ति जो आपको यह कहे कि उसे पता है पाकिस्तान के सभी न्यूक्लियर वेपन कहां हैं तो वह झूठ बोल रहा है।' असलियत यह है कि भारत की तरह पाकिस्तान का न्यूक्लियर प्रोग्राम पारदर्शी नहीं है। पाकिस्तान के परमाणु हथियारों की संख्या और लोकेशन के बारे में भी सिर्फ अंदाजे लगाए जाते हैं। ऐसे में अमेरिका के लिए उसके सभी न्यूक्लियर वेपंस को डीएक्टिवेट करना या कब्जे में लेना मुश्किल है। सवाल-6: क्या पाकिस्तान को अमेरिका के इस प्लान के बारे में पता है? जवाब: पाकिस्तानी नेता नहीं मानते कि उनके परमाणु हथियार को कोई खतरा है। सेना में कट्टरपंथी ऑफिसर्स या आतंकियों से ऑफिसर्स की नजदीकी से भी पाकिस्तान इनकार करता रहा है। पाकिस्तान की SPD की नींव रखने वाले परवेज मुशर्रफ ने नेशनल जर्नल से कहा था, ‘ये कहना गलत होगा कि हथियार गलत हाथों में जा सकते हैं।’ GTI के मुताबिक, पाकिस्तान के नेताओं को लंबे अरसे से पता है कि अमेरिकी सेना ने उसके परमाणु हथियार कब्जाने की योजना बनाई है। अमेरिका कहता है कि ऐसा कोई भी सेफ-रेंडर मिशन तभी एक्टिव किया जाएगा जब बाकी सारे तरीके फेल हो जाएंगे। अमेरिका ने खुलकर ऐसा कोई बयान नहीं दिया है कि वह पाकिस्तान के न्यूक्लियर वेपंस को लेकर कोई कार्रवाई करने जा रहा है। अमेरिका पाकिस्तान से यह कहता है कि उसका इरादा न्यूक्लियर वेपंस पर पाकिस्तान को लंबे समय तक सुरक्षित तरीके से पकड़ बनाए रखने में अमेरिका की मदद करना है। नेशनल जर्नल के मुताबिक, पाकिस्तान के कुछ ऑफिसर्स अमेरिका के इस प्लान का समर्थन भी करते हैं। सवाल-7: अगर अमेरिका ने पाकिस्तान के हथियार कब्जा लिए तो इससे भारत का क्या फायदा होगा? जवाब: लेफ्टिनेंट जनरल (रि) रामेश्वर रॉय कहते हैं, अभी पूरी दुनिया में तनाव के हालात हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध, इजराइल-ईरान संघर्ष के बीच अमेरिका पाकिस्तान में उसकी संप्रभुता के खिलाफ जाकर ऐसी कोई कार्रवाई करे, इसकी संभावना न के बराबर है। हालांकि अगर ऐसा होता है तो यह एक जहरीले सांप के जहर के दांत तोड़ने जैसा होगा। हालांकि रामेश्वर कहते हैं कि अगर पाकिस्तान के न्यूक्लियर हथियार नष्ट हो जाते हैं तो इसका मतलब ये नहीं है कि भारत उस पर हमला करने लगेगा, लेकिन वह कम से कम भारत को परमाणु हमले की धमकी नहीं दे सकेगा। ------------------- पाकिस्तान के परमाणु हथियारों से जुड़ी ये खबर भी पढ़ें... ‘130 परमाणु हथियारों का निशाना भारत':पाकिस्तान फौरन न्यूक्लियर अटैक की धमकी क्यों देने लगता है, भारत कैसे निपटेगा भारत की सख्ती देखते ही सीधा परमाणु हमले की धमकी क्यों देने लगता है पाकिस्तान; मंडे मेगा स्टोरी में दोनों देशों के न्यूक्लियर पावर की पूरी कहानी पढ़िए...
पहलगाम आतंकी हमले के बाद ये सवाल लगातार चर्चा में है कि आखिर आतंकी भारत में घुसे कैसे? दावा है कि जम्मू बॉर्डर के आस-पास एक, दो नहीं बल्कि सुरंगों का पूरा नेटवर्क मिला है, भारतीय सेना और बीएसएफ इन सुरंगों को खोजने में जुटी है, सुरक्षा एजेंसियों के मुताबिक यही आतंकियों के भारत में दाखिल होने का जरिया हो सकती हैं। लेकिन ये टनल्स बनती कैसे हैं, ये कैसे माना जाए कि इन्हें पाकिस्तान ने ही बनाया है और इनसे ही आतंकी भारत में दाखिल होते हैं, जानने के लिए ऊपर फोटो पर क्लिक कर वीडियो देखें।
'होटल की तीसरी मंजिल की एक खिड़की पर हमारी नजर पड़ी। देखा एक छोटा बच्चा अपनी मां के लिए जोर-जोर से चिल्ला रहा है। कोई उसे बचा पाता, इससे पहले ही आग ने उसे चपेट में ले लिया।' कोलकाता के भीड़भाड़ वाले बड़ा बाजार के दुकानदार ऋतुराज होटल में हुए अग्निकांड को याद कर सिहर उठते हैं। 29 अप्रैल को हुए इस हादसे में 14 लोगों की मौत हो गई और 13 लोग घायल हुए हैं। ज्यादातर लोगों की मौत धुएं के बीच दम घुटने से या फिर बचने की कोशिश में बिल्डिंग से गिरने से हुई। होटल के 42 कमरों में 88 लोग ठहरे थे। फंसे लोगों को निकालने का सिलसिला 30 अप्रैल को सुबह 9 बजे तक चलता रहा। चश्मदीदों के मुताबिक, फायर ब्रिगेड की गाड़ियों को होटल तक पहुंचने में एक घंटे लग गया। ये जल्दी आ जातीं, तो इतनी मौतें नहीं होतीं। चश्मदीदों का ये भी कहना है कि आग इतनी भीषण इसलिए हो गई क्योंकि होटल में एग्जिट गेट से लेकर वेंटिलेशन के रास्ते बंद थे। खिड़कियां भी ईंटों और कॉन्क्रीट से बंद कर दी गई थीं। फायर फाइटिंग सिस्टम भी काम नहीं कर रहे थे। दैनिक भास्कर की टीम कोलकाता में हादसे की जगह पहुंची। हमने विक्टिम के परिवारों, चश्मदीदों और अफसरों से बात की। चश्मदीदों ने बताया आंखों देखा हाल…होटल से निकलने का एक ही रास्ता, इसलिए बचने के लिए नीचे कूदे लोग होटल में आग लगने की रात क्या हुआ? ये समझने के लिए सबसे पहले हम बड़ा बाजार पहुंचे। यहां आसपास रह रहे लोगों और दुकानदारों से बात की। मनीष, ऋतुराज होटल से कुछ दूर किराने की दुकान में काम करते हैं। वे बताते हैं, ‘हमने बिल्डिंग से धुआं निकलते देखा। तेज बदबू भी आ रही थी। कुछ लोग उस तरफ गए तो देखा कि होटल में आग लगी है। लोग खिड़कियां तोड़कर निकलने की कोशिश कर रहे थे। कुछ लोग बालकनी से कूदते दिखाई दिए।’ घटना के वक्त मौजूद शिवलाल गुप्ता बताते हैं, ‘रात 8 बजे आग लगी थी। उस वक्त होटल में जितना स्टाफ था, सब जान बचाने के लिए भागने लगा। आग पूरी बिल्डिंग में नहीं लगी थी। सिर्फ पहली मंजिल पर थी, जो धीरे-धीरे बाकी हिस्सों में भी फैल गई।‘ शिवलाल आगे बताते हैं, ‘ये हादसा इसलिए इतना भयानक हो गया, क्योंकि हर फ्लोर से नीचे उतरने के लिए एक ही रास्ता था। इसलिए कोई निकल नहीं पाया। लोग दूसरे और तीसरे फ्लोर पर भागने लगे। कुछ लोग बालकनी में निकल आए। मेरे सामने एक शख्स बालकनी से कूद गया और उसकी वहीं मौत हो गई।‘ फायर ब्रिगेड की गाड़ियां एक घंटे बाद आईं, वरना लोग बच जातेहादसे में आग बुझाने के लिए फायर ब्रिगेड की 10 गाड़ियां लगाई गईं। तब जाकर रात 10:30 बजे आग पर काबू पाया जा सका। इसके बाद पुलिस औऱ प्रशासन की टीम ने बिल्डिंग के फंसे लोगों को मोबाइल की लाइट से सिग्नल देने के लिए कहा। फिर उन्हें रेस्क्यू किया गया। बचाव के लिए हाइड्रोलिक सीढ़ियां लगाई गईं, जिसके जरिए छत और ऊपरी फ्लोर से फंसे 20 से ज्यादा लोगों को बचा लिया गया। शिवलाल भी बताते हैं, ‘इससे पहले आज तक यहां ऐसी घटना नहीं हुई। फायर ब्रिगेड की गाड़ियां एक घंटे बाद आईं। अगर वो समय से आ जातीं, तो लोग बच सकते थे। उनके पास बड़ी वाली सीढ़ी भी नहीं थी। इसलिए बहुत देर तक लोग ऊपर अटके रहे। लोग यूं ही कूदते नहीं। मेरे सामने ही होटल से एक व्यक्ति ने जान बचाने के लिए बालकनी से छलांग लगा दी, लेकिन मौके पर ही उसकी मौत हो गई।‘ हादसे के विक्टिम परिवारों से बात…भागने की जगह नहीं मिली तो दूसरी मंजिल से कूदेअग्निकांड में जान गंवाने वाले दूसरे राज्यों से कोलकाता काम करने आए थे। इनमें से ज्यादातर लोग ओडिशा, तमिलनाडु, बिहार, झारखंड, और उत्तर प्रदेश से हैं। हादसे में मारे गए 42 साल के मनोज कुमार पासवान पिछले 20 साल से पश्चिम बंगाल में काम कर रहे हैं। वे झारखंड के गिरिडीह के रहने वाले थे। मनोज ने जान बचाने के लिए होटल की दूसरी मंजिल से छलांग लगा दी और मौके पर ही उनकी मौत हो गई। मॉर्चरी पर हमें मनोज का परिवार मिला। मनोज कुमार के गांव से उनके दादा और दोस्त उनकी डेडबॉडी लेने आए थे। उनके दोस्त प्रभु राम बताते हैं, 'मनोज होटल में परमानेंट स्टाफ था। आखिरी बार उससे 28 अप्रैल को बात हुई थी। घर में उसकी पत्नी और तीन छोटे बच्चे हैं। वो घर में अकेला कमाने वाला था।' मनोज के दादा मानेसर पासवान बताते हैं, ‘हमारे इलाके में रहने वाला एक व्यक्ति रात 11 बजे धर्मतल्ला से होते हुए आ रहा था। उसने होटल में आग लगी देखी, तो हम सबको खबर की। हम भागकर होटल आए। हमें पता चला कि सभी घायलों को मेडिकल कॉलेज भेज दिया गया है। वहां गए तो देखा कि मेरे पोते की लाश रखी हुई थी।’ मनोज के साथ ही एक अन्य व्यक्ति भी नाली के पाइप से नीचे उतरने की कोशिश कर रहा था। तभी वो नीचे गिर गया, जिससे उसके पैर में फ्रैक्चर हो गया। इसके बाद पुलिस और फायर ब्रिगेड टीम ने लाउडस्पीकर के जरिए लोगों से न कूदने की अपील की। अंदर फंसे लोगों को भरोसा दिलाया गया कि उनके पास बचाव के लिए हाइड्रोलिक सीढ़ियां पहुंच रही हैं। 25 साल से बंगाल में थे ओडिशा के दुष्मंत 47 साल के दुष्मंत कुमार की जान भी इसी हादसे में गई है। ओडिशा के रहने वाले दुष्मंत 25 साल से परिवार के साथ नॉर्थ 24 परगना के नटुन पल्ली इलाके में रह रहे थे। दुष्मंत की मौत के बाद से उनका बेटा सदमे में है। परिवार को हादसे के बारे में घटना की रात ही पता चल गया था। दुष्मंत का 20 साल का बेटा सुभ्रांग्शु बताता है, 'हम ओडिशा के सोमपुर के रहने वाले हैं। पिछले 25 साल से पश्चिम बंगाल में रह रहे थे। पिता 2018 से होटल में काम कर रहे हैं। घर पर हम दो भाई और दो बहनें हैं।' हम पापा की डेडबॉडी लेकर वापस ओडिशा जा रहे हैं। उनका अंतिम संस्कार परिवार के साथ गांव में ही करेंगे। वहीं दुष्मंत के भाई त्रिलोकपति बताते हैं, 'दुष्मंत घर में सबसे बड़े भाई थे इसलिए परिवार की ज्यादातर जिम्मेदारियां उन पर थीं। घर में मां, पिता, पत्नी और बच्चे हैं। मैं तो अभी-अभी गांव से आया हूं। अब परिवार कैसे चलेगा, समझ नहीं आ रहा है।' दुष्मंत के साथ काम करने वाले और उनके पड़ोसी सनी पारुई बताते हैं, 'हम साथ में काम पर जाते थे। घटना वाले दिन मेरी छुट्टी थी। न्यूज में देखा, तब हादसे के बारे में पता चला। दुष्मंत का कोई दोस्त होटल में काम करता था, उसी ने दुष्मंत की नौकरी लगवाई थी। इससे पहले वो छोटा सा बिजनेस करता था, लेकिन कोविड में वो खत्म हो गया।' अब होटल का हाल...एग्जिट गेट बंद मिला, खिड़कियां ईंटों से जाम इसलिए फैली आगहोटल में आग चौथी मंजिल पर बिजली मीटर में शॉर्ट सर्किट होने से लगी। हालांकि इसने इतना भीषण रूप कैसे ले लिया, ये समझने के लिए हम ऋतुराज होटल पहुंचे। यहां हमें होटल का एग्जिट गेट बंद मिला। होटल में अवैध कंस्ट्रक्शन का काम अधूरा पड़ा मिला। यहां लगे स्प्रिंकलर भी काम नहीं कर रहे थे। होटल में काफी मात्रा में ज्वलनशील सामान भी रखा था। मौके पर मिले एक चश्मदीद ने बताया, ‘आग पहली मंजिल पर लगी। जहां खिड़कियां ईंटों और कॉन्क्रीट से बंद थीं। इसके अलावा कोई वेंटिलेशन भी नहीं था। धुआं गलियारों के साथ दूसरी और तीसरी मंजिल पर होटल के कमरों के अंदर तक फैल गया।‘ सीनियर फायर अफसर के मुताबिक, होटल ने कई सारे सेफ्टी नियमों की अनदेखी कर रखी थी। सीढ़ियां बंद पड़ी थीं। सभी वेंटिलेशन की जगहें सील थीं। होटल में बिना परमिशन बार बनवाया जा रहा था। होटल मैनेजमेंट की लापरवाही सामने आईइसके बाद घटना को लेकर हमने पश्चिम बंगाल के इमरजेंसी सर्विस मिनिस्टर सुजीत बोस से बात की। वे बताते हैं, 'शुरुआती रिपोर्ट से पता चलता है कि फायर फाइटिंग सिस्टम काम नहीं कर रहा था। अलार्म भी नहीं बजा। होटल में डांस फ्लोर बनाया जा रहा था, जिसके लिए ज्वलनशील पदार्थ होटल के अंदर रखा हुआ था।' सभी घायलों का कोलकाता मेडिकल कॉलेज, एनआरएस हॉस्पिटल और आरजी कर मेडिकल कॉलेज में इलाज चल रहा है। घटना की जांच के लिए SIT बनाई जा चुकी है। 1 मई की सुबह कोलकाता पुलिस ने होटल के मालिक आकाश चावला और मैनेजर गौरव कपूर को अरेस्ट कर लिया है। पुलिस ने उन पर BNS की धारा 105/110/124/125/287/3(5)(7) और पश्चिम बंगाल फायर सर्विस एक्ट के तहत मामला दर्ज किया गया है। कोलकाता में पहले भी हुईं आग लगने की बड़ी घटनाएं कोलकाता में फायर सेफ्टी नियमों की अनदेखी के कारण आग लगने की कई बड़ी घटनाएं पहले भी सामने आ चुकी हैं। मार्च 2010 में कोलकाता की पार्क स्ट्रीट की स्टीफन कोर्ट बिल्डिंग में आग लग गई थी। इस घटना में 43 लोगों की जान गई थी। वहीं, दिसंबर 2011 में AMRI अस्पताल में लगी आग ने नियमों की अनदेखी के चलते भयानक रूप ले लिया था। इस घटना में 90 लोगों की मौत हुई थी। .................................. ये खबर भी पढ़ें... पश्चिम बंगाल के BSF जवान पूर्णव साव पाकिस्तान के कब्जे में पहलगाम में आतंकी हमले के अगले दिन 23 अप्रैल को पाकिस्तानी रेंजर्स ने दो फोटो जारी कीं। दावा किया कि उन्होंने एक BSF जवान पूर्णव कुमार साव को पकड़ा है। पूर्णव पश्चिम बंगाल के हुगली जिले के रहने वाले हैं। गांव का नाम रिसड़ा है। पूर्णव की पत्नी रजनी ने कहा, 'मैं हमेशा के लिए बैठकर इंतजार नहीं कर सकती। मैं दिल्ली जाऊंगी और PMO से जवाब मांगूंगी।' पढ़िए पूरी खबर...
धरती फाड़कर निकलेगा नया महासागर, दो टुकड़ों में टूट जाएगा ये देश...वैज्ञानिकों का खुलासा
East Africa:पूर्वी अफ्रीका को लेकर वैज्ञानिकों ने हैरान करने वाला खुलासा किया है. साइंटिस्ट का कहना है कि पूर्वी अफ्रीका देश की सतह के नीचे एक शांत और धीमी गति से बदलाव सामने आया है. अफ्रीका धीरे-धीरे दो भागो में बंट रहा है.
मीडिया आउटलेट ने पाकिस्तानी सेना में सामूहिक इस्तीफे के दावे वाले फेक लेटर दिखाए
बूम ने जांच में पाया कि वायरल पत्र फर्जी हैं. इनमें भाषाई और व्याकरण की अशुद्धियां हैं. पत्रों में सैन्य अधिकारियों के गलत पद और नाम लिखे गए हैं.
इजरायल में फिलस्तीनी कैदियों को एसिड टैंक में फेंकने के दावे से गलत वीडियो वायरल
बूम ने पाया कि वायरल वीडियो क्लिप बैंकॉक में स्थित ‘ड्रीम वर्ल्ड’ नाम के मनोरंजन पार्क में आयोजित होने वाले हॉलीवुड एक्शन शो के दौरान स्टंट की है.
Baba Venga Prediction: दुनिया में ऐसे कई भविष्यवक्ता हैं जिनकी कही गई बात सही साबित होती है, इसमें बाबा वेंगा की गणना सबसे ऊपर होती है. बाबा वेंगा ने एक बार फिर चौंकाने वाली भविष्यवाणी की है. उन्होंने कहा है कि 2025 में एक भयानक विश्वयुद्ध शुरू होगा.
Us tariff war with china: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जिस अंदाज में पूरी दुनिया में टैरिफ वॉर शुरू किया, उसके बाद सब हैरान हो गए. जिसका सबसे अधिक नुकसान चीन ने झेला. अब चीन से जो खबर सामने आ रही है, उसके बाद सब हैरान हैं. ड्रैगन का सिंहासन क्यों कांप रहा है. जानें पूरी खबर.
पहलगाम के बाद पाकिस्तान में 'तख्तापलट'? सेना और सरकार में तनातनी से बिगड़े हालात
Pak Govt vs Army: पाकिस्तान में भारत के किसी जवाबी एक्शन के पहले ही हालात बिगड़ गए हैं. वहां सेना और सरकार के बीच मतभेद उभर कर सामने आने लगे हैं. आधी रात आईएसआई चीफ को प्रधानमंत्री का सलाहकार बनाए जाने के बाद सुगबुगाहट तेज है.
Russia Ukraine War: यूक्रेन और रूस के लंबे खिंचते युद्ध के बीच बंधकों को यातनाएं दिए जाने की रोंगटे खड़ी करने वाली घटनाएं भी सामने आई हैं. ऐसी ही कहानी यूक्रेन की पत्रकार विक्टोरिया रॉश्चेयना की है.
मोदी सरकार ने ऐलान कर दिया है कि अगली जनगणना में जाति के आधार पर गिनती भी होगी। ये फैसला चौंकाने वाला है, क्योंकि विपक्ष की मांग के बावजूद अब तक बीजेपी इसे टाल रही थी। इस घोषणा के बाद राहुल गांधी बोले- कहा था ना, मोदी जी को ‘जाति जनगणना’ करवानी ही पड़ेगी। अब हम आरक्षण पर 50% की सीमा हटाने का दबाव बनाएंगे। कैसे और कब तक होगी जातिगत जनगणना, मोदी सरकार इसके लिए क्यों तैयार हुई और क्या अब आरक्षण की 50% लिमिट को भी बढ़ाया जाएगा; भास्कर एक्सप्लेनर में ऐसे 10 जरूरी सवालों के जवाब जानेंगे… सवाल-1: जातिगत जनगणना को लेकर केंद्र सरकार ने क्या फैसला लिया है? जवाब: 30 अप्रैल 2025 को राजनीतिक विषयों की कैबिनेट कमेटी ने जातिगत जनगणना कराने का फैसला लिया। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने मीडिया को बताया कि जातियों की गणना अब आने वाली मूल जनगणना में ही शामिल होगी। राजनीतिक मामलों की कैबिनेट कमेटी के अध्यक्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं। इसके अलावा इस कमेटी में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, गृह मंत्री अमित शाह, सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल भी इसमें शामिल हैं। अश्विनी वैष्णव ने कहा, 1947 से जाति जनगणना नहीं की गई। कांग्रेस की सरकारों ने हमेशा जाति जनगणना का विरोध किया। 2010 में पीएम मनमोहन सिंह ने कहा था कि जाति जनगणना के मामले पर कैबिनेट में विचार किया जाना चाहिए। इसके लिए मंत्रियों का एक समूह बनाया गया था। ज्यादातर राजनीतिक दलों ने जाति जनगणना की सिफारिश की। इसके बावजूद भी कांग्रेस ने महज खानापूर्ति का ही काम किया। उसने सिर्फ सर्वे कराना ही उचित समझा। सवाल-2: इस घोषणा के बाद अब जाति जनगणना कब तक पूरी होगी? जवाब: देश में पिछली जनगणना 2011 में हुई थी। इसे हर 10 साल में किया जाता है। इस हिसाब से 2021 में अगली जनगणना होनी थी, लेकिन कोविड-19 महामारी के कारण इसे टाल दिया गया था। बिहार में अक्टूबर-नवंबर में चुनाव हैं, इसलिए कयास लगाए जा रहे हैं कि सरकार सिंतबर में ही जनगणना की शुरुआत कर सकती है। इसे पूरा होने में कम से कम 1 साल लगेगा, इसलिए जातिगत जनगणना के अंतिम आंकड़े 2026 के अंत या 2027 की शुरुआत तक आ सकते हैं। जाति जनगणना के ऐलान के बाद राहुल गांधी ने कहा- हम इसे सपोर्ट करते हैं, लेकिन सरकार को इसकी समय सीमा बतानी होगी। हमने तेलंगाना में कास्ट सेंसस कराया, इसे मॉडल बनाया जा सकता है। हमें कास्ट सेंसस से आगे जाना है। किस जाति की ऊंचे पदों में कितनी हिस्सेदारी है, ये पता करनी है। सवाल-3: ये जनगणना कैसे होगी, आम लोगों से क्या सवाल पूछे जाएंगे? जवाब: पूरे देश में जनगणना के लिए सरकारी कर्मचारियों की नियुक्ति होती है, इन्हें एन्यूमेरेटर कहते हैं। ये तय किए गए इलाकों में पहुंचकर तमाम जानकारियां जुटाते हैं। जनगणना दो हिस्सों में होती है- जनगणना का रिकॉर्ड बताता है कि हर बार पूछे जाने वाले सवालों की संख्या बढ़ जाती है। मसलन, 2001 की तुलना में 2011 की जनगणना में कई एक्स्ट्रा सवाल पूछे गए। जैसे- जहां आप नौकरी करते हैं वो जगह आपके घर से कितनी दूर है। गांव का नाम भी पहली बार पूछा गया था। आखिर में इस डेटा को इकठ्ठा करके इसे नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर में दर्ज किया जाता है। जनगणना अधिनियम 1948 के तहत जनगणना का विस्तृत डेटा गोपनीय रखा जाता है। 2011 तक जनगणना फॉर्म में कुल 29 कॉलम होते थे। इनमें नाम, पता, व्यवसाय, शिक्षा, रोजगार और माइग्रेशन जैसे सवालों के साथ केवल SC और ST कैटेगरी से ताल्लुक रखने को रिकॉर्ड किया जाता था। अब जाति जनगणना के लिए इसमें एक्स्ट्रा कॉलम जोड़े जा सकते हैं। सवाल-4: मुसलमानों में भी कई तरह की जातियां हैं, क्या उनकी भी जनगणना होगी? जवाब: पॉलिटिकल एनालिस्ट रशीद किदवई कहते हैं कि मुसलमानों में कई पिछड़ी जातियां हैं। उनकी भी गिनती की जाएगी। मुख्य समस्या जनगणना के बाद शुरू होगी, जब इसे लेकर योजनाएं और रिजर्वेशन लागू करने की मांग होगी। मुसलमानों के अलावा महिलाओं या किसी भी अन्य जाति वर्ग को लेकर भी नए सिरे से एक बहस छिड़ेगी। सवाल-5: क्या भारत में इससे पहले भी जाति आधारित जनगणना हुई है? जवाब: साल 1881 में अंग्रेजों ने पहली बार जनगणना करवाई थी। इसमें जातियों की भी गिनती होती थी। 1931 तक ऐसा ही चलता रहा। तब पूर्ण जातिगत जनगणना हुई थी। 1941 में जातिगत जनगणना तो हुई, लेकिन इसके आंकड़े सार्वजनिक नहीं किए गए। इसके बाद आजाद भारत की पहली कैबिनेट में शामिल नेहरू, पटेल और आंबेडकर जैसे नेताओं ने तय किया कि जातिगत जनगणना नहीं करवाई जाएगी, क्योंकि इससे समाज में बंटवारा होगा। आजादी के बाद 1951 में पहली जनगणना हुई, इसमें सभी जातियों के बजाय सिर्फ अनुसूचित जातियों (SC) और अनुसूचित जनजातियों (ST) की गिनती हुई। यानी SC और ST का डेटा दिया गया लेकिन OBC और दूसरी जातियों का डेटा नहीं दिया गया। तब से ऐसा ही चला आ रहा है। हर दस साल में होने वाली जनगणना में SC और ST के अलावा दूसरी किसी भी जाति का डेटा नहीं दिया जाता है। सवाल-6: सिर्फ SC/ST की जातिगत जनगणना क्यों होती है? जवाब: 1951 से 2011 तक हर 10 साल पर जनगणना होती रही है। इसके पीछे संवैधानिक कारण हैं। दरअसल, संविधान की धारा 330 और 332 में यह प्रावधान है कि SC और ST समुदायों की जनसंख्या के आधार पर उनके लिए लोकसभा और राज्यसभा में सीटें रिजर्व की जाएं। बिना सही जनसंख्या का पता लगाए उस अनुपात में सीटें रिजर्व करना संभव नहीं है, इसीलिए हर 10 साल में होने वाली जनगणना के साथ ही SC और ST के आंकड़े भी जारी किए जाते हैं। 2021 में जनगणना हुई नहीं है, इसलिए अभी SC और ST सीटों का रिजर्वेशन 2011 की जनगणना के आधार पर ही किया जाता है। समय-समय पर पिछड़ी जातियों के रिजर्वेशन के लिए सभी जातियों की जनगणना की भी मांग की जाती रही है, लेकिन इसके लिए संविधान में कोई प्रावधान नहीं है। हालांकि साल बिहार और कर्नाटक जैसे राज्यों में जातिगत सर्वे कराए गए हैं। 2023 में बिहार सरकार ने इसके आंकड़े भी जारी किए थे। सवाल-7: बिहार और कर्नाटक जैसे राज्यों में हुए जातिगत सर्वे और इस जनगणना में क्या फर्क है? जवाब: बिहार ने 2 अक्टूबर, 2023 को जातिगत जनगणना (सर्वे) के आंकड़े जारी किए थे। ऐसा करने वाला देश का पहला राज्य बना था। जातिगत जनगणना और जातिगत सर्वे में तीन बड़े फर्क हैं- 1. जातिगत जनगणना का अधिकार सिर्फ केंद्र को सैम्पल साइज और डेटा में फर्क जनगणना संवैधानिक मुद्दा, जातिगत सर्वे राज्य सरकारों की मर्जी सवाल-8: सरकार के जातिगत जनगणना के ऐलान का राजनीतिक मकसद क्या है? जवाब: सबसे पहले जातिगत जनगणना पर सभी पार्टियों का पुराना स्टैंड समझते हैं- विपक्ष: कांग्रेस समेत BJD, SP, RJD, BSP, NCP शरद पवार देश में जातिगत जनगणना की मांग कर रही हैं। TMC का रुख साफ नहीं है। विपक्ष के नेता और कांग्रेस सांसद राहुल गांधी लगातार जाति जनगणना की मांग करते रहे हैं। NDA: भाजपा पहले जाति जनगणना के पक्ष में नहीं थी। NDA ने कांग्रेस समेत दूसरी विपक्षी पार्टियों पर आरोप लगाए थे कि ये जातिगत जनगणना के जरिए देश को बांटने की कोशिश कर रही हैं। हालांकि बिहार में भाजपा ने ही जातिगत जनगणना का सपोर्ट किया था। जातिगत जनगणना की कांग्रेस की मांग के पीछे एक बड़ी वजह OBC वोटर को लुभाना था। दरअसल, आजादी के बाद से लंबे समय तक पिछड़ा वर्ग कांग्रेस का पारंपरिक वोटर रहा था। 2014 में इसका बड़ा चंक बीजेपी की तरफ शिफ्ट हो गया। कांग्रेस लंबे समय से इस वोट शेयर को दोबारा हासिल करने की कोशिश में है। 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में वादा किया था कि सत्ता में आने पर जातियों की सामाजिक और आर्थिक स्थितियों को समझने के लिए देश भर में जाति जनगणना करवाएगी।’ राहुल गांधी ने चुनाव प्रचार के दौरान भी जातिगत जनगणना करवाने का वादा किया था। अश्विनी वैष्णव ने जातिगत जनगणना का ऐलान करते हुए कहा, कांग्रेस और सहयोगी दलों ने जाति जनगणना को केवल एक राजनीतिक टूल के बतौर इस्तेमाल किया है।' इस ऐलान के बाद राहुल ने कहा है कि हम इसे सपोर्ट करते हैं। कांग्रेस के नेता इसे कांग्रेस की जीत बता रहे हैं। हालांकि एक्सपर्ट्स कहते हैं कि बीजेपी ने एक झटके में कांग्रेस से उसका एक बड़ा मुद्दा छीन लिया है। पॉलिटिकल एनालिस्ट अमिताभ तिवारी कहते हैं कि इस ऐलान के पीछे बीजेपी के तीन ऑब्जेक्टिव हो सकते हैं- 1. कांग्रेस के मुद्दे को खत्म करना: विपक्ष ने सरकार को वो मुद्दा दिया, जिसको उसने पूरा कर दिया, ऐसे में इसका पूरा क्रेडिट सरकार को जाएगा। 2. अपना पिछड़ा वर्ग का वोट शेयर बढ़ाना: 2024 के लोकसभा चुनाव में खास तौर पर यूपी और बिहार में बीजेपी का गैर यादव OBC वोट शेयर कम हुआ है। इसे वापस हासिल करने के लिए यह फैसला लिया गया। 3. बिहार चुनाव में नए मुद्दे की तलाश: इस फैसले से बीजेपी को बिहार चुनाव में पिछड़े वर्ग के वोटर्स को टारगेट करने में आसानी होगी। सवाल-9: मोदी सरकार ने ये फैसला अभी ही क्यों किया? जवाब: अमिताभ तिवारी कहते हैं कि अभी ये फैसला लेने की दो वजहें हैं- रशीद किदवई भी कहते हैं कि बीजेपी सिर्फ बिहार चुनाव नहीं देख रही, 2024 के उनका 400 सीटें लाने का टारगेट था। अभी देश में जिस तरह का माहौल है, मध्यावधि चुनाव भी हो सकते हैं। उसके मद्देनजर यह फैसला लिया गया है। हालांकि रशीद किदवई के मुताबिक, पहलगाम हमले से ध्यान हटाने के के लिए यह फैसला नहीं लिया गया। वह कहते हैं, ‘मोदी एक मंझे हुए नेता हैं, बिहार चुनाव और पहलगाम हमले को वह अलग-अलग तरीके से देख रहे हैं।' सवाल-10: क्या जातिगत जनगणना के बाद आरक्षण पर 50% की लिमिट हट जाएगी? जवाब: जातिगत जनगणना में सिर्फ अलग-अलग जाति के लोगों की गिनती होगी। इसके आधार पर अभी किसी जाति को कोई फायदा नहीं मिलेगा। हालांकि इस जनगणना के आधार पर जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी की मांग तेजी से उठ सकती है। ऐसे में आरक्षण से 50% कैप हटाने का मुद्दा भी उठेगा। पॉलिटिकल एनालिस्ट रशीद किदवई कहते हैं कि कांग्रेस की मांग सिर्फ जातिगत जनगणना नहीं थी। उसने घोषणा पत्र में कहा था कि सत्ता में आने पर रिजर्वेशन की सीमा (जो कि अभी अधिकतम 50%) है, उसे बढ़ाने के लिए संवैधानिक कोशिश करेंगे। ------------ जातिगत जनगणना से जुड़ी ये खबर ही पढ़ें: देश में आजादी के बाद पहली बार जातिगत जनगणना होगी:बिहार चुनाव से पहले केंद्र का फैसला; राहुल बोले- फैसले का समर्थन, डेडलाइन तय हो जाति जनगणना के ऐलान के बाद राहुल गांधी ने कहा- आखिरकार सरकार ने जाति जनगणना की बात कह दी है। हम इसे सपोर्ट करते हैं, लेकिन सरकार को इसकी समय सीमा बतानी होगी। पूरी खबर पढ़ें...
कांग्रेस सांसद राहुल गांधी जिस जातिगत जनगणना के दम पर लंबे समय के बाद सत्ता में वापसी करने की उम्मीद कर रहे थे, सत्तासीन भाजपा सरकार ने उनसे ये मौका छीन लिया है। हमेशा जातिगत जनगणना के विरोध में रही भाजपा ने बिहार चुनाव से पहले ऐतिहासिक ऐलान करते हुए कहा कि वो इस बार जनगणना के साथ जातिगत जनगणना भी करवाएगी। भारत में पहली बार कब हुई थी कास्ट सेंसेस यानी जातिगत जनगणना। देश में इसका इतिहास क्या है, जातिगत जनगणना के फायदे और नुकसान क्या हो सकते हैं, जानने के लिए ऊपर दी इमेज पर क्लिक कर देखें वीडियो।
कश्मीर के पहलगाम के पास सिखों के कुल 9 गांव हैं। आज ये सभी गांव वीरान हैं। 90 के दशक में हुए कत्लेआम के बाद कश्मीरी पंडितों ने तो घाटी छोड़ दी, लेकिन सिख डटे रहे। सिखों को गांव और जमीनें छोड़कर श्रीनगर शहर में बसना पड़ा, लेकिन इन्होंने कश्मीर नहीं छोड़ा। पहलगाम हादसे के बाद अल्पसंख्यक होने की वजह से इन्हें घर से बाहर निकलने की इजाजत नहीं है। बच्चे नौकरी के लिए भी नहीं जा पा रहे हैं। जिनके बच्चे घाटी से बाहर हैं, वो अब घर लौटने को तैयार नहीं है। इसलिए अब ये पलायन करने को मजबूर हैं। आज ब्लैकबोर्ड में कहानी कश्मीरी सिखों की जो घाटी छोड़कर पलायन को मजबूर हैं… श्रीनगर के महजूर नगर में रहने वाले कश्मीरी सिख हरपाल सिंह कहते हैं कि बम और ग्रेनेड वाले माहौल में भी सिख घाटी छोड़कर नहीं गए। जब कश्मीरी पंडित यहां से पलायन कर रहे थे, तब भी सिख यहीं डटे रहे। यहां से सिखों का पलायन मात्र एक फीसदी के करीब रहा। सरकारी आंकड़ों के अनुसार मात्र 1200 सिखों ने पलायन किया। धमकियां मिलीं, लेकिन हम डरे नहीं। आज की तारीख में घाटी में सिखों की संख्या करीब 40 हजार है। हरपाल सिंह कहते हैं- 20 मार्च साल 2000 की बात है। अनंतनाग के पास चिट्टीसिंहपुरा गांव में 36 निहत्थे सिखों को आतंकियों ने गोलियों से भून दिया था। आतंकी जबरन गांव में घुसे और सिखों को घरों से निकाल निकाल कर गोली मारी। उस वक्त अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन भारत के दौरे पर थे। सिखों के इस नरसंहार ने दुनिया को हिला कर रख दिया। उस वक्त ज्यादातर सिख गांवों में रहते थे। इस घटना के बाद सिखों ने तय किया कि वह घाटी के गांवों में नहीं रहेंगे बल्कि श्रीनगर पलायन कर जाएंगे। इसके बाद साल 2001 में महजूर नगर हत्याकांड में 10 बेकसूर सिखों को गोली मार दी गई थी। इसके बाद से घाटी के गांवों में रहने वाली तमाम सिख आबादी ने श्रीनगर में पलायन कर लिया और गांव खाली कर दिए थे। हरपाल सिंह बताते हैं कि तीन फरवरी साल 2001 की बात है। सुबह के वक्त सभी अपना अपना काम कर रहे थे। सब कुछ सामान्य था। अचानक तीन आतंकी मोहल्ले में घुसे और अंधाधुंध गोलियां बरसानी शुरू कर दीं। हमले में कुल 10 सिख मारे गए। घाटी में इस नरसंहार के बाद माहौल इतना खराब हो गया था कि सभी 10 सिखों का अंतिम संस्कार महजूर नगर के गुरुद्वारे में ही किया गया था। इस नरसंहार के बाद भी श्रीनगर से मात्र एक फीसदी सिखों ने ही पलायन किया था। उनके पलायन की सबसे बड़ी वजह थी कि वो ऐसी नौकरियों में थे जिसमें जान का खतरा था। उस वक्त हमने घाटी नहीं छोड़ी, लेकिन पहलगाम हादसे के बाद यहां रहना मुश्किल है। मैं जल्द ही सरकारी नौकरी से रिटायर होने वाला हूं। दो बेटे हैं, दोनों बाहर रहते हैं। किसी भी कीमत पर मेरे बेटे यहां आने के लिए राजी नहीं हैं। महजूर नगर गुरुद्वारे के ग्रंथी देवेंद्र सिंह कहते हैं कि घाटी में सिखों के साथ धोखा हुआ है। हमारे बच्चे यहां नहीं रहते, लेकिन जो बच्चे प्राइवेट नौकरियों में हैं, वह सुबह जाकर शाम को घर आते हैं। ऐसा ही माहौल रहा तो कभी भी कश्मीर बंद हो सकता है। लोग गुजारा कैसे करेंगे। अब यहां रहना मुश्किल है। हरपाल सिंह कहते हैं कि पिछले साल पब्लिक सर्विस कमीशन की तरफ से अंग्रेजी के लेक्चरर की 129 पोस्ट निकली थीं। जिनमें से 110 कैटेगरी में चली गई, बाकी बची 19 पोस्ट के लिए सात लाख एप्लिकेशंस आईं। इसमें भी सिखों को कुछ नहीं मिला। हरपाल सिंह कहते हैं कि जो लोग घाटी छोड़ कर चले गए उन्हें तो सरकार कोटा देकर बुला रही है। कश्मीरी पंडितों के अलावा बहुसंख्यक का भी कोटा है, लेकिन सिखों का क्या। जो घाटी में डटे रहे उन्हें पूछने वाला कोई नहीं। हाल ही में भाषा के आधार पर भी कोटा दिया गया है। जबकि हमारी पंजाबी ही हमसे छीन ली गई। कृष्ण सिंह बेदी भी कश्मीरी सिख हैं। इनके गांव का नाम है त्राल, जो पहलगाम के पास है। बेदी कहते हैं कि मैं गांव की जमीन छोड़कर कई सालों से श्रीनगर में रह रहा हूं। कभी-कभार अपनी जमीन देखने के लिए त्राल चला जाता हूं। अब मेरे गांव समेत आस-पास के 9 गांव के सिख श्रीनगर में ही बस गए हैं। बेदी कहते हैं कि जमीन है तो करोड़ों की, लेकिन मेरे किसी काम की नहीं है। इसे बेचूंगा तो कौड़ियों के मोल जाएगी, क्योंकि पुलिस की इजाजत के बिना हम गांव नहीं जा सकते। इजाजत मिल भी जाए तो पुलिस वाले भी हमारे साथ जाते हैं। कई बार तो महीनों हमें इजाजत नहीं मिलती, जैसे इन दिनों अपने गांव त्राल जाने की मनाही है। कृष्ण सिंह बेदी कहते हैं कि हमने तो 90 के दशक में भी घाटी से पलायन नहीं किया था, जब कश्मीर आतंकवाद की आग में जल रहा था, क्योंकि पलायन हमारी शान के खिलाफ था, लेकिन अब पहलगाम हादसे ने हमें इस बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया है। बेदी कहते हैं कि बेशक अब इतना डर नहीं है। पहले तो आतंकी हमारे सामने घूमते थे। वो बंदूक कंधे पर रखकर टोलियों में चलते थे। हमें धमकियों भरे लेटर भी मिले, लेकिन हम डटे रहे, दलेर कौम हैं। उस वक्त सिखों के गांवों में सिक्योरिटी थी, बंकर और चेक पोस्ट भी थे, लेकिन अब नहीं है। उस वक्त घाटी में जिन सिखों ने सरकार का साथ दिया था, उन्हें आज भी सिक्योरिटी मिली हुई है। अगर आज भी हमारे गांवों में चेक पोस्ट और बंकर बनाए जाएं तो कम से कम हम अपनी जमीनों को देख सकें। श्रीनगर में रह रहे देवेंद्र सिंह बताते हैं कि हमारी पीढ़ी ने तो बम और ग्रेनेड झेल लिए, लेकिन हमारी आज की युवा पीढ़ी ये सब नहीं झेल पाएगी है। बेशक यहां के बहुसंख्यक यानी मुस्लिम समुदाय हमारे साथ बहुत मिल-जुलकर रहता है। वह हमारी रक्षा करते हैं और उनकी वजह से ही हम यहां रह गए, लेकिन हमारे बच्चों के पास नौकरियां नहीं हैं। आजकल बच्चे जज्बाती हो जाते हैं, यहां रहने के लिए राजी नहीं हैं। देवेंद्र सिंह कहते हैं कि पहले सिख समुदाय के पास जमीनें थीं, लोगों के पास सरकारी नौकरी थी। आज सरकारी नौकरी वाली पीढ़ी रिटायर होकर घर बैठ गई है। छोटा-मोटा बिजनेस कर रहे हैं। परमजीत सिंह कहते हैं कि घाटी में नॉन माइग्रेंट पैकेज के तहत सभी को फायदा मिला, लेकिन सिख समुदाय के बच्चों को कोई फायदा नहीं मिला। हमारे बच्चों के पास नौकरियां नहीं हैं। जो बच्चे प्राइवेट सेक्टर में हैं, वह पहलगाम जैसे हादसे होने से घर बैठ गए हैं। प्रशासन ने अल्पसंख्यक समुदाय होने की वजह से शाम होते ही घर से बाहर न जाने के लिए कहा है। ऐसे हादसों के बाद प्राइवेट सेक्टर पूरी तरह से बैठ जाता है। श्रीनगर गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी सचिव गुरमीत सिंह बाली के दोनों बेटे घाटी से बाहर जाने को तैयार हैं। गुरमीत सिंह खुद प्राइवेट कॉन्ट्रैक्टर हैं। वह बताते हैं कि सिखों के बच्चे यहां पढ़-लिख कर, डिग्री लेकर भी घर बैठे हैं। उनके पास नौकरी नहीं है। पहले के समय में सिख गांवों में रहते थे। उनकी खेती थी, बगीचे थे। सरकारी नौकरी थी, लेकिन बिजनेस नहीं था। बाली कहते हैं जब गांव छोड़कर श्रीनगर आए तो जमीन छूट गई, लेकिन सरकारी नौकरी थी। अब धीरे-धीरे वह जनरेशन रिटायर हो रही है। बच्चों को नौकरियां नहीं मिल रही हैं। बच्चे दूसरे शहरों में नौकरियों के लिए जा रहे हैं। जब बच्चे बाहर जाएंगे तो उनके साथ उनके माता-पिता भी जाएंगे। बाली बताते हैं कि यह पहलगांव हादसा कोई पहला हादसा नहीं है। कश्मीर छह-छह महीने या सालभर भी बंद रहा है। हम यहां गोलियों, बमों और ग्रेनेड में पैदा हुए। हम लोग डरते नहीं हैं, लेकिन अब अगर हमारा पलायन हुआ तो सरकार की वजह से होगा। अगर हालात ऐसे ही रहे तो दस साल बाद घाटी में एक भी सरदार नहीं मिलेगा। बाली कहते हैं कि स्पेशल पीएम पैकेज के तहत कश्मीरी पंडितों को यहां लाया जा रहा है, लेकिन सिखों की बात कोई नहीं करता। सिखों को नॉन माइग्रेंट पैकेज मे भी फायदा नहीं मिला। इसी बात को लेकर सिखों में रोष है कि सिर्फ कश्मीरी पंडितों की बात होती है। सिखों का कहना है कि उन्हें राजनीतिक आरक्षण चाहिए, भले ही सिर्फ एक फीसदी मिले, ताकि वो अपनी बात कह सकें। 90 के दशक में कश्मीरी पंडितों ने घाटी से पलायन किया था। कश्मीरी पंडितों के हक की लड़ाई लड़ रहे संजय टीकू का कहना है कि सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस वक्त घाटी में 808 कश्मीरी पंडितों के परिवार रह रहे हैं। ये वो लोग हैं जिन्होंने 90 के दशक में घाटी नहीं छोड़ी। हालांकि हमारी संस्था के अनुसार यह आंकड़ा 654 है। इनमें पीएम पैकेज वाले परिवार शामिल नहीं हैं। -------------------------------------------------------- ब्लैकबोर्ड सीरीज की ये खबरें भी पढ़िए... 1. ब्लैकबोर्ड- जीजा ने मूंछ पर ताव देकर जबरन करवाई शादी:नाबालिग का निकाह; ससुराल जाने से मना किया तो बहन बोली- जिंदा दफना दूंगी मेरे जीजा जी कुछ लोगों के साथ बैठकर शराब पी रहे थे। उन्होंने नशे में मूंछ पर ताव देते हुए कहा- ‘मैं अपनी साली की शादी आपके बेटे से ही करवाऊंगा। पूरी खबर पढ़ें... 2.ब्लैकबोर्ड- 359 दिनों से शव के इंतजार में बैठा परिवार:विदेश में नौकरी के नाम पर रूसी सेना में मरने भेजा, खाने में जानवरों का उबला मांस दिया मेरे भाई रवि ने 12 मार्च 2024 को फोन में आखिरी वीडियो रिकॉर्ड किया था। तब से आज तक हम उसकी डेडबॉडी के इंतजार में बैठे हैं। एजेंट ने नौकरी के नाम पर भाई को रूसी आर्मी में भर्ती करवा दिया। यूक्रेन के खिलाफ जंग लड़ते हुए उसकी मौत हो गई। पूरी खबर पढ़ें...
'मोदी जी के नाम एक संदेश है कि वो गंगा मैया का नाम लेकर पाकिस्तान पर हमला कर दें। हिंदुस्तान जिंदाबाद, मेरा भारत महान।' हरिद्वार से पैदल चलकर गंगोत्री धाम पहुंचे यमराज गिरि आगे के सफर को लेकर उत्साह से भरे हैं। वो अपनी ढाई-तीन महीने की पैदल यात्रा की तैयारी के बारे में बताते हैं, लेकिन पहलगाम हमले को लेकर नाराजगी जाहिर करने से भी खुद को रोक नहीं पाते। 30 अप्रैल को गंगोत्री और यमुनोत्री धाम के कपाट खुलने के साथ ही चारधाम यात्रा शुरू हो गई है। यमुनोत्री धाम में पहले दिन शाम 5 बजे तक 7 हजार लोगों ने दर्शन किए। गंगोत्री धाम में मां गंगा के जयकारों के साथ यात्रा की शुरुआत हुई। यहां पहले दिन करीब 6 हजार तीर्थ यात्री पहुंचे। उत्तराखंड के CM पुष्कर सिंह धामी भी पहले दिन यमुनोत्री धाम पहुंचे। यमुना धाम के कपाट खुलने के बाद CM धामी ने तीर्थ पुरोहितों के साथ पूजा की। उन्होंने कहा- ‘चारधाम यात्रा पर आने वाले सभी तीर्थयात्रियों के लिए हमारी कोशिश है कि उन्हें कोई परेशानी न हो। उनकी यात्रा सुरक्षित हो। हम लगातार निगरानी कर रहे हैं।‘ अब 2 मई को सुबह 7 बजे केदारनाथ और 4 मई को 6 बजे बद्रीनाथ धाम के कपाट भी खुलेंगे। चारधाम यात्रा की शुरुआत कैसी रही। पहले दिन कितने श्रद्धालु पहुंचे और आने वाले दिनों में श्रद्धालु कैसे यहां तक पहुंच सकते हैं, पढ़िए पूरी खबर… गंगोत्री-यमुनोत्री पहुंचे श्रद्धालुओं की बात…पहलगाम हमले से थोड़ा डरे थे, यहां आकर वो भी दूर हो गयासुबह 10:30 बजे मां यमुना के मायके खरसाली गांव से उनकी उत्सव डोली यमुनोत्री धाम पहुंची। ढोल-नगाड़ों की धुन के बीच मां की डोली के साथ उनके भाई शनिदेव समेश्वर देवता की डोली भी धाम पहुंची। भाई शनिदेव और यमुना जी के मायकेवालों ने उन्हें भावुक होकर विदा किया। इस दौरान यमुनोत्री में हमारी मुलाकात हरियाणा के अंबाला से आए मयंक शर्मा से हुई। वो यात्रा को लेकर काफी उत्साहित हैं। मयंक बताते हैं, 'उत्तराखंड में अब तक मुझे कोई परेशानी नहीं हुई।' 'पहलगाम हमले के बाद एक बार तो मन में डर लगा था। हालांकि मैंने यहां आकर व्यवस्था और सुरक्षा इंतजाम देखे, तब मैं निश्चिंत हो गया।' यहां करीब 7 हजार घोड़े और खच्चर चलाने वाले श्रद्धालुओं को यात्रा करा रहे हैं। सुनील कुमार उन्हीं में से एक हैं। पहलगाम हमले के बाद यहां के माहौल के बारे में पूछने पर वे कहते हैं, ‘यहां पर कभी कुछ ऐसा होने की आशंका तो नहीं है। अगर कुछ होता भी है तो प्रशासन हमारे साथ है। यहां जगह-जगह फोर्स तैनात है।‘ वहीं खच्चर चलाने वाले धर्मेश सिंह रावत कहते हैं, 'पहलगाम की घटना के बाद से डर तो है, लेकिन यहां सिक्योरिटी अच्छी है।' यशपाल सिंह रावत भी खच्चर चलाते हैं। वे भी सुरक्षा इंतजामों को लेकर कहते हैं, ‘हमारी पुलिस और प्रशासन अलर्ट है। बहुत सख्ती बरती जा रही है।' वेरिफिकेशन के बारे में पूछने पर यशपाल कहते हैं, इसका काम भी चल रहा है। आज ही यात्रा शुरू हुई है। जब यात्री चढ़ाई करेंगे, तब घोड़े-खच्चरों की जरूरत लगेगी। इधर, गंगोत्री में मिले कैलाश चंद्र मारू मध्य प्रदेश के धार जिले से आए हैं। वे कहते हैं, 'कई अफवाहें चल रही हैं कि भारत और पाकिस्तान के बीच जंग हो जाएगी। चारधाम आने वाले किसी मुश्किल में न फंस जाए, लेकिन ऐसा कुछ नहीं है। जो भी यहां आएंगे, उन्हें एक नया अनुभव मिलेगा।' मंदिर में QRT अलर्ट, बाहरी लोगों का वेरिफिकेशन जारी ड्यूटी पर तैनात यमुनोत्री CO सुशील रावत बताते हैं, ‘चारधाम यात्रा को लेकर यहां सुरक्षा इंतजाम चाक-चौबंद हैं। बाहरी लोगों का लगातार वेरिफिकेशन किया जा रहा है। मंदिर में QRT (क्विक रिएक्शन टीम) लगी हुई है। यहां जगह-जगह फोर्स तैनात की गई है। सभी को अलर्ट कर दिया गया है। किसी भी तरह की आशंका पर हमें तुरंत सूचना मिलेगी और एक्शन होगा।‘ चारधाम यात्रा की पहली सीढ़ी माना जाता है यमुनोत्री धाम यमुना धाम पर मंदिर को फूलों और लाइट से सजाया गया। श्रद्धालुओं ने सूर्य कुंड के गर्म पानी में स्नान कर मां यमुना की पूजा की। बीते 50 साल से यमुनोत्री धाम में पूजा-पाठ करवा रहे मुख्य पुजारी बताते हैं, ‘6 महीने तक मां यमुना अपने मायके खरसाली गांव में शीतकालीन प्रवास करती हैं।' इसके बाद अक्षय तृतीया के दिन वो उत्तरकाशी में अपने धाम पहुंचती हैं। जैसे ही पट खुलते हैं, चारधाम यात्रा की औपचारिक शुरुआत हो जाती है। 'यमुनोत्री धाम को चारधाम यात्रा की पहली सीढ़ी माना जाता है। मान्यता है कि यमराज ने अपनी बहन यमुना को 22 वचन दिए थे। उनमें से एक वचन ये भी है कि जो मनुष्य यमुनोत्री धाम आकर दर्शन करेगा, उसे यमलोक से छुटकारा मिल जाता है। उसे सूर्यलोक मिलता है।‘ यमुनोत्री तक कैसे पहुंचें…देहरादून से यमुनोत्री तक का सफर 6 घंटे काहम देहरादून से मसूरी होते हुए यमुनोत्री के लिए सुबह 10 बजे निकले। रास्ते में अच्छी सड़कें और खूबसूरत वादियों ने हमारे सफर को यादगार बना दिया। करीब 4 घंटे में हम बरकोट पहुंचे। यमुनोत्री आने वाले यात्री बरकोट में ही रात में रुकते हैं। फिर अगले दिन सुबह धाम के लिए निकलते हैं। बरकोट से यमुनोत्री की दूरी 50 किमी है। उत्तराखंड सरकार ने चारों धामों को पक्की सड़क से जोड़ने के लिए ऑल वेदर रोड प्रोजेक्ट शुरू किया है। इसके जरिए अब श्रद्धालुओं को यमुनोत्री सहित चारों धामों तक पहुंचने में मुश्किलों का सामना नहीं करना पड़ता। पहाड़ों के घुमावदार रास्तों से होते हुए हम 6 घंटे में देहरादून से जानकी चट्टी पहुंचे। यमुनोत्री धाम आने वाली गाड़ियां सीधे जानकी चट्टी तक आती हैं। यहां से 5 किमी पैदल चढ़ाई कर धाम तक पहुंचा जाता है। जानकी चट्टी से लेकर यमुनोत्री धाम का ट्रैक छोटा, लेकिन कठिन है। कुछ जगहों पर सीधी चढ़ाई है, जो यात्रियों को थका देती है। रास्ते पर जगह-जगह पानी और खाने के सामान की दुकानें हैं। यहां हर चीज महंगी है, जो ऊंचाई को देखते हुए जायज लगती है। यमुनोत्री ट्रैक चारों तरफ से बंदरपुंछ पर्वतमाला से घिरा हुआ है। यहां धाम की तरफ पैदल चलते वक्त हिमालय की बर्फीली चोटियां और रास्ते में कई झरने हैं। यमुनोत्री का उद्गम स्थल कालिंदी पर्वत है। यमुनोत्री के रास्ते में धधकते पहाड़ दिखेसफर में उत्तरकाशी की ओर बढ़ने पर जंगलों में आग देखने को मिली। पहाड़ों पर चलती तेज हवाओं और बढ़ती गर्मी के कारण जंगलों में आग लगने की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। चारधाम यात्रा रूट पर कैंम्पटी, बरकोट और नौगांव के पास जंगलों में आग लगने की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं। गंगोत्री धाम में मुखबा गांव से पहुंची उत्सव डोलीगंगोत्री धाम में पट खुलने से पहले मां गंगा के शीतकालीन प्रवास भैरो घाटी में मुखबा गांव से उनकी उत्सव डोली निकली। डोली सुबह 10 बजे विधि विधान के साथ गंगोत्री धाम पहुंची। फिर पूजा-पाठ के बाद मंदिर के पट खोले गए। इसके बाद बाकी देवी-देवताओं की पालकी मंदिर परिसर में घुमाई गई। पट खुलने से पहले से मंदिर के बाहर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ जुटी रही। हम प्राइवेट टैक्सी के जरिए गंगोत्री तक पहुंचे। यहां आने के 2 रूट हैं। एक, हरिद्वार से उत्तरकाशी होते हुए गंगोत्री तक पहुंचता है। दूसरा, देहरादून, मसूरी के रास्ते गंगोत्री तक पहुंचता है। देहरादून से गंगोत्री वाला रूट लेना ज्यादा बेहतर है। इसके जरिए 240 किमी की यात्रा में धाम तक पहुंचने में करीब 8 घंटे लगे। गाड़ी सीधे मंदिर के पास तक पहुंचाती है। चारधाम यात्रा के पहले दिन यमुनोत्री और गंगोत्री धाम पहुंचे 13 हजार श्रद्धालु चारधाम यात्रा के पहले दिन यमुनोत्री और गंगोत्री धाम पर तकरीबन 13 हजार लोग दर्शन करने पहुंचे। उत्तराखंड सरकार के रजिस्ट्रेशन प्रोसेस के कारण दोनों धामों पर सीमित संख्या में लोग पहुंचे। इससे दर्शन करने में किसी को ज्यादा परेशानी नहीं हुई। चारधाम यात्रा शुरू करने से पहले आपको registrationandtouristcare.uk.gov.in पर रजिस्ट्रेशन करवाना जरूरी है। जो यात्री ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन नहीं करा पा रहे हैं, उनके लिए उत्तराखंड सरकार ने ऑफलाइन रजिस्ट्रेशन शुरू भी कर दिया है। हरिद्वार, देहरादून, ऋषिकेश, चमोली, रुद्रप्रयाग और उत्तरकाशी जिलों में 50 से ज्यादा रजिस्ट्रेशन सेंटर बनाए गए हैं। यहां यात्रा शुरू करने से पहले रजिस्ट्रेशन करा सकते हैं। ऑफलाइन रजिस्ट्रेशन के बाद आपका मोबाइल नंबर यात्री ट्रैकिंग सिस्टम में दर्ज हो जाएगा। इससे इमरजेंसी के वक्त तीर्थयात्रियों की ट्रैकिंग हो सकेगी। रजिस्ट्रेशन के वक्त आपको अपनी मेडिकल हिस्ट्री की डिटेल भी देनी होगी। 2 मई को केदारनाथ, 4 मई को बद्रीनाथ धाम के खुलेंगे कपाट भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक केदारनाथ धाम के कपाट 2 मई को सुबह 7 बजे खुलेंगे। केदारनाथ आने के लिए चारधाम यात्री हरिद्वार और ऋषिकेश से सीधे बस ले सकते हैं। बसें सिर्फ सोनप्रयाग तक ही जाती हैं। किराया 600 से 700 रुपए है। यहां से आपको 8 किलोमीटर दूर गौरीकुंड तक आना होगा। गौरीकुंड में ठहरने और खाने की सुविधा है। यहीं से केदारनाथ धाम के लिए 20 किमी का मुश्किल ट्रैक शुरू होता है। केदार-बद्री मंदिर समिति के अनुसार, केदारनाथ मंदिर के कपाट 2 मई को खुलेंगे, लेकिन भगवान की पंचमुखी डोली यात्रा 28 अप्रैल से ही शुरू हो जाएगी। डोली यात्रा की शुरुआत उखीमठ में ओंकारेश्वर मंदिर से होगी। यात्रा उसी दिन गुप्तकाशी में विश्वनाथ मंदिर पहुंचेगी और रात वहीं रुकेगी। अगली सुबह 29 अप्रैल को डोली यात्रा गुप्तकाशी से फाटा और 30 अप्रैल को फाटा से गौरीकुंड पहुंचेगी। 1 मई को यात्रा गौरीकुंड से जंगलछत्ती, भीमबाली, रामबाड़ा और रुद्र पॉइंट से होकर केदारनाथ धाम पहुंचेगी। 2 मई की सुबह 7 बजे केदारनाथ धाम के कपाट भक्तों के दर्शन के लिए खोल दिए जाएंगे। जून से अगस्त के बीच अगर मौसम सही रहता है, तो इस बार 25 लाख से ज्यादा लोगों के केदारनाथ धाम पहुंचने का अनुमान है। चारधाम यात्रा का आखिरी धाम बद्रीनाथ यमुनोत्री, गंगोत्री और केदारनाथ के कपाट खुलने के बाद आखिरी में बद्रीनाथ धाम की बारी आती है। बद्रीनाथ का रास्ता जोशीमठ से होकर गुजरता है और केदारनाथ से लौटकर जोशीमठ में रुक भी सकते हैं। बद्रीनाथ धाम चीन बॉर्डर से सिर्फ 3-4 किमी की दूरी पर है। यहां से भारत का आखिरी गांव माणा पास में ही है। आप चारधाम यात्रा पूरी करके माणा गांव भी घूमने जा सकते हैं। बद्रीनाथ धाम के कपाट 4 मई की सुबह 6 बजे खुलेंगे। यहां आने के लिए चारधाम यात्री हरिद्वार से सीधे जोशीमठ तक बस से सफर कर सकते हैं। किराया 800 से 900 रुपए है। जोशीमठ से 40 किलोमीटर की दूरी पर बद्रीनाथ धाम पड़ता है। बद्रीनाथ धाम के लिए हेलिकॉप्टर सुविधा भी है। ये केदार-बद्री टूर पैकेज में शामिल है, जिसका रेट 1 लाख 31 हजार रुपए है। चारधाम यात्रा से जुड़े हर अपडेट और धामों के LIVE दर्शन के लिए जुड़े रहें दैनिक भास्कर एप के साथ। ..................................... चारधाम यात्रा पर ये खबर भी पढ़ें... गंगोत्री-यमुनोत्री से केदारनाथ-बद्रीनाथ तक के बारे में सब कुछ 30 अप्रैल को गंगोत्री और यमुनोत्री मंदिर के कपाट खुलने के साथ ही चारधाम यात्रा शुरू हो गई। इस बार 50 लाख से ज्यादा यात्रियों के चारधाम पहुंचने की उम्मीद है। 2024 में हुई चारधाम यात्रा में करीब 48,11,279 लाख लोग आए थे। हमने यात्रा शुरू होने के पहले उत्तराखंड पहुंचकर चारों धाम गंगोत्री, यमुनोत्री, बद्रीनाथ और केदारनाथ धाम के रूट देखे और आपके लिए एक टूरिस्ट फ्रेंडली चारधाम यात्रा गाइड और रूट मैप बनाया है। पढ़िए पूरी खबर…
‘मैं 2003 में पाकिस्तान गया था। तब उम्र सिर्फ 14 साल थी। 7वीं में पढ़ता था। नादानी में बॉर्डर पार चला गया। मेरे साथ और भी लोग थे। वहां हमें 2-3 महीने ट्रेनिंग दी गई। 3 महीने बाद फिर कैंप में वापस आए। वहां 5-6 साल रहे। शुरुआत में हर महीने 1 हजार से 1500 रुपए मिलते थे। जैसे-जैसे मैं सीनियर हुआ, मेरी सैलरी 20-22 हजार रुपए हो गई।’ भर्ती, ट्रेनिंग, सैलरी, प्रमोशन पढ़कर शायद लग रहा हो कि ये कॉर्पोरेट कंपनी की बात हो रही है, लेकिन ऐसा नहीं है। ये कश्मीर में आतंकी संगठनों के काम करने का तरीका है। दैनिक भास्कर को ये बात बताने वाले शख्स खुद आतंकी रह चुके हैं। फिर सरेंडर करके आम जिंदगी में लौट आए। पहलगाम में 26 टूरिस्ट के कत्ल के बाद सुरक्षा एजेंसियों ने 14 लोकल आतंकियों की लिस्ट जारी की है। अब ये सुरक्षाबलों के टारगेट पर हैं। इनमें 19 साल का आदिल रहमान और 25 साल का आसिफ अहमद शेख आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद के डिस्ट्रिक्ट कमांडर हैं। 28 साल का जुबैर अहमद वानी हिजबुल मुजाहिदीन का चीफ ऑपरेशनल कमांडर है। दैनिक भास्कर ने पहले आतंकी रह चुके शख्स और पूर्व आर्मी अफसर से आतंकी संगठनों का स्ट्रक्चर समझा। ये कैसे भर्ती करते हैं, कैसे काम करते हैं और आतंकियों को बदले में क्या मिलता है। पढ़िए ये रिपोर्ट पहलगाम हमले में शामिल आदिल गुस्से में बना आतंकीकश्मीर में आतंकी संगठनों के टारगेट पर कम उम्र के लड़के होते हैं। कई बार तो वे नाबालिगों को भी अपने साथ जोड़ लेते हैं। आदिल रहमान जब लश्कर से जुड़ा, उसकी उम्र सिर्फ 15 साल थी। ज्यादातर लड़के गुस्से में या किसी लालच में आतंकी संगठनों से जुड़ते हैं। ये पहलगाम अटैक में शामिल रहे आदिल अहमद ठोकर की पड़ताल के दौरान इसका पता चला। साइंस से ग्रेजुएट और उर्दू में MA करने वाला आदिल टीचर होने के बाद भी आतंकी बन गया। 2017 में उसकी जमीन पर मोबाइल टावर बनाने को लेकर विवाद हुआ था। पहले आतंकी रह चुके एक शख्स ने धमकी देकर टावर का काम रुकवा दिया था। इससे नाराज होकर आदिल घरवालों को बिना बताए 2018 में आतंकी बनने पाकिस्तान चला गया। तब आदिल की उम्र करीब 26 साल थी। पुलिस और आर्मी की तरह आतंकियों की भी रैंक और डेजिग्नेशनसोर्स बताते हैं कि आतंकी संगठन नए कैडर को भर्ती करने के बाद उन्हें ट्रेनिंग देते हैं। एक्टिविटी के हिसाब से रैंक देते हैं। फिर उनके जरिए नए युवाओं को भर्ती करवाते हैं। हमारी पड़ताल में आतंकी संगठनों के बारे में तीन बातें पता चलीं। 1. पहलगाम अटैक के बाद जिन 14 एक्टिव आतंकियों की लिस्ट बनाई गई है। उनमें ज्यादातर 2021 या इसके बाद आतंकी बने। इनमें भी सबसे ज्यादा साउथ कश्मीर यानी अनंतनाग और पहलगाम वाले एरिया के हैं। इनकी उम्र 19 से 27 साल के बीच है। 2. जम्मू-कश्मीर या भारत के दूसरे हिस्से में हमले के लिए आतंकी संगठन लोकल सपोर्ट का इस्तेमाल करते हैं। बायसरन घाटी तक जाने और वहां से लौटने में भी यही तरीका अपनाया। लोकल सपोर्ट की वजह से ही हमले के एक हफ्ते बाद भी आतंकियों की सटीक लोकशन नहीं मिल पा रही है। 3. बायसरन घाटी में अटैक के लिए रूट मैप बनाने की बात सामने आई है। इसमें एक कश्मीरी आतंकी फारुख अहमद टेडवा पर शक है। वो पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर जाकर ट्रेनिंग ले चुका है। फिर कश्मीर लौटकर रेकी की। अभी वो पाकिस्तान में ही है। शक है कि उसी ने बायसरन घाटी की लोकेशन और रूट मैप तय किया था। फारुख को कश्मीर के पहाड़ों का चप्पा-चप्पा पताजांच एजेंसियों की पड़ताल में ये बात साफ हुई है कि आतंकियों के पास बायसरन घाटी तक पहाड़ी रास्ते से आने और हमले के बाद 30 मिनट से पहले सेफ ठिकाने तक पहुंचने का रूट मैप था। फारुख अहमद टेडवा ऐसे रूट मैप बनाने में एक्सपर्ट है। 45 साल का फारुख कश्मीर के कुपवाड़ा जिले के कलारुस का रहने वाला है। कुपवाड़ा लाइन ऑफ कंट्रोल से सटा एरिया है, जहां से पाकिस्तानी आतंकी घुसपैठ करते हैं। सोर्स से पता चला कि फारुख 1990 में पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर गया था। वहां ट्रेनिंग ली। कश्मीर के बारे में इनपुट दिया। इसके बाद 2016 तक घुसपैठ कर कई बार कश्मीर लौटा। फिर वापस PoK चला गया। 2016 के बाद वो कश्मीर नहीं लौटा। अब वो बॉर्डर पार मौजूद आतंकियों का मेन हैंडलर है। उसे कश्मीर के पहाड़ी इलाकों की अच्छी जानकारी है। फारुख आतंकियों को पहाड़ों पर चलने से लेकर वहां छिपने तक की ट्रेनिंग देने में माहिर है। पहाड़ों पर किस लोकेशन से चढ़ना है और कहां से उतरना है, आर्मी की नजर में आए बिना किसी लोकेशन पर कैसे पहुंचना है, इसकी तैयारी में फारुख का ही रोल होता है। कश्मीर में ग्राउंड पर मजबूत नेटवर्क, एप के जरिए आतंकियों के कॉन्टैक्ट मेंमाना जाता है कि फारूख अभी PoK में है। वहीं से ट्रेनिंग और पहाड़ों की लोकेशन कश्मीर में मौजूद आतंकियों को देता है। वो मोबाइल एप के जरिए कश्मीर में उनके कॉन्टैक्ट में रहता है। उसका कश्मीर में ग्राउंड पर काफी मजबूत नेटवर्क है। हाल में ही आर्मी ने उसके घर को ब्लास्ट कर उड़ा दिया था। सोर्स बताते हैं कि पहलगाम अटैक में शामिल पाकिस्तानी आतंकियों को फारूख ने ही लॉजिस्टिक सपोर्ट दिलाया था। उनका कॉन्टैक्ट ओवरग्राउंड वर्कर्स से कराया। उन्हीं की मदद से पाकिस्तान से आने वाले आतंकियों के लिए कश्मीर में लोकल सपोर्ट मिलने के साथ खाने-पीने का इंतजाम होता है। जांच एजेंसी के सूत्रों के मुताबिक, फारूख को कुपवाड़ा, त्राल और पीरपंजाल रेंज के बारे में अच्छी जानकारी है। फिलहाल कश्मीर में एक्टिव आतंकियों में सबसे ज्यादा अनुभव उसी के पास है। इसलिए किसी भी बड़ी आतंकी घटना में इसकी भूमिका रहती है। अब पढ़िए पूर्व आतंकी की कहानीकश्मीर में युवाओं का ब्रेनवॉश कर कैसे उन्हें आतंकी बनाया जाता है, कैसे वे पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में ट्रेनिंग दी जाती है। ये जानने के लिए हमने ऐसे शख्स से बात की जो 14 साल की उम्र में PoK में ट्रेनिंग ले चुका है। वो कई साल तक कैंप में रहा। वहीं शादी की। फिर आतंक की राह छोड़कर नॉर्मल जिंदगी गुजारने लगा। ये शख्स 2003 में POK गया था। 2012 में कश्मीर लौटा और आर्मी के सामने सरेंडर कर दिया। अब वो मजदूरी करके घर चलाता है। आर्मी और पुलिस सूत्रों के मुताबिक उसे क्लीनचिट मिल चुकी है। हमने उससे जाना कि कश्मीर के युवाओं को आतंकी कैसे टारगेट करते हैं। कैंप में ट्रेनिंग, हर महीने 20 हजार रुपए तनख्वाह‘मैं 2003 में PoK गया था। उस वक्त कश्मीर में काफी आतंकी एक्टिव थे। मैं तब स्कूल में पढ़ता था। कई लोगों ने कहा कि इस काम में मजा है। थोड़ा दबाव भी बनाया। इसलिए मैं बॉर्डर पार चला गया। हम 20-25 लोग थे। छिप-छिपकर PoK गए थे। वहां कैंप में ट्रेनिंग ली। पहले हजार से 1500 रुपए मिलते थे। फिर 20 हजार रुपए तक मिलने लगे।’ आतंक का रास्ता क्यों छोड़ा? जवाब मिला- ‘PoK में कई साल रहते हुए समझ आया कि पाकिस्तान की हालत बहुत खराब है। महंगाई बहुत ज्यादा थी। कैंप से उतने पैसे नहीं मिलते थे।’ ‘2008 में मैंने वहीं एक लड़की से लव मैरिज कर ली थी। उसके साथ रहने लगा था। खर्च पूरा नहीं हो पाता था। तब समझ आया कि जो पाकिस्तान हमारे ऊपर खर्च करता है, उसकी खुद की हालत खराब है। मैंने तय कर लिया कि जल्द ही पाकिस्तान छोड़ दूंगा। उस समय माहौल सही नहीं था। 2012 में माहौल अच्छा हुआ, तब 300 से ज्यादा लोग पाकिस्तान से भारत लौट आए। उनमें मैं भी था।’ ‘तब मेरी सोच भी ज्यादा नहीं थी। उम्र बढ़ी तो सोच बदली। समझ आ गया कि यहां हमारी जिंदगी खराब हो गई। युवाओं को इसी तरह बरगलाया जाता है। उन्हें गलत रास्ते पर नहीं जाना चाहिए। पहलगाम अटैक का मुझे दुख है। ऐसा नहीं होना चाहिए था। सभी गुनहगारों को सजा मिलनी चाहिए।’ पाकिस्तान में बैठा TRF लीडर, अभी सबसे खतरनाक संगठन यहीखुफिया सूत्रों से पता चला है कि आर्टिकल-370 हटने के बाद लश्कर-ए-तैयबा की एक्टिविटी कम हो गई। तभी साउथ कश्मीर के लोकल आतंकियों ने नया संगठन TRF बनाया। ये लश्कर के लिए काम करता है। इसमें लश्कर के ही आतंकी हैं। तब अब्बास शेख चीफ एरिया कमांडर था। वो साउथ कश्मीर के कुलगाम का रहने वाला था। अब्बास ने ही ये तय किया था कि लोकल कश्मीरियों पर कोई हमला नहीं करेगा। कश्मीर में बाहर से आए लोगों और सुरक्षाबलों पर ही अटैक करेंगे। उसने कम उम्र के लड़कों को संगठन में जोड़ा था। 2021 में एक शूटआउट में अब्बास मारा गया था। ये एनकाउंटर श्रीनगर में हुआ था। इसके बाद से PoK में रहते हुए सज्जाद गुल कश्मीर नेटवर्क संभाल रहा है। वो भी कम उम्र के लड़कों को संगठन में जोड़ता है। उन्हें ट्रेनिंग दिलाता है। उन्हें हिट एंड रन की स्ट्रैटजी सिखाता है। यानी मारो और भागो। निशाने पर गैरकश्मीरी और आर्मी है। जिन युवाओं में बदले की भावना होती है या कोई परेशानी होती है, वे उससे कॉन्टैक्ट कर संगठन में शामिल कर लेते हैं। सज्जाद गुल पर UAPA के तहत केस दर्ज हैं। इनमें हथियारों की स्मगलिंग, सिक्योरिटी फोर्स पर अटैक, गैर कश्मीरियों की टारगेट किलिंग और भारत में आतंकवाद बढ़ाना शामिल है। सुरक्षाबलों ने भी आतंकियों की कैटेगरी बनाई, उसी हिसाब से ट्रेसिंगआतंकियों की कैटिगरी और उनकी रैंकिंग का क्या मतलब है? ये समझने के लिए हमने रिटायर्ड ब्रिगेडियर विजय सागर धीमान से बात की। उनसे ऑपरेशनल कमांडर, डिस्ट्रिक्ट कमांडर और ए-प्लस से लेकर सी-कैटिगरी के बारे में पूछा। वे बताते हैं, ‘जैसे आर्मी, पुलिस या दूसरे ऑफिसों में रैंकिंग होती है, उसी तरह आतंकियों के ग्रुप में भी रैंकिंग है। ये कैटेगरी आर्मी और पुलिस खुद बनाती है, ताकि हम उन पर नजर रख सकें। उन्हें ट्रैक कर सकें। किस आतंकी को कितना ट्रैक करना जरूरी है, इसे ध्यान में रखते हुए रैंकिंग बनाई जाती है।’ ‘जैसे किसी आतंकी संगठन का चीफ ऑपरेशनल कमांडर होता है। उसे पूरे स्टेट की जिम्मेदारी दी जाती है। वही उस आतंकी संगठन को ऑपरेट करता है। इसलिए हमारे टारगेट पर सबसे पहले वही होता है। अगर उसे ट्रेस कर लिया तो उससे जुड़े आतंकियों को ट्रेस करना आसान होता है। इसके बाद डिस्ट्रिक्ट कमांडर होता है। उसके पास पूरे जिले की जिम्मेदारी होती है। डिस्ट्रिक्ट कमांडर के नीचे कई कैटेगरी के आतंकी होते हैं।’ C कैटेगरी का मतलब, जिसने अभी हाल में आतंकी संगठन जॉइन किया है। उसे ट्रेंड किया जा रहा है। कोई पुराना आतंकी भी इस कैटेगरी में हो सकता है, अगर वो कम एक्टिव है। ‘इसी तरह B-कैटेगरी का मतलब कोई आतंकी 5-6 महीने या उससे ज्यादा वक्त से संगठन में है। और काफी एक्टिव है। इसके बाद कैटेगरी-A का मतलब कोई आतंकी 1 से 2 साल से लगातार एक्टिव है। वो टारगेट को पूरा करने के लिए एक्टिव होता है। इसके बाद सबसे ज्यादा रैंक वाला A+ और A++ की भी रैंकिंग होती है। इस कैटेगरी के आतंकी सबसे ज्यादा एक्टिव और खतरनाक होते हैं। ये 2 साल या उससे ज्यादा समय से लगातार एक्टिव रहते हैं।’ TRF के नाम से ऑडियो जारी, हमले की धमकी दीTRF से जुड़े कमांडर अहमद सलार का पहलगाम में आतंकी हमले के बाद ऑडियो सामने आया है। ये ऑडियो अलग-अलग सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर वायरल है। हालांकि, सिक्योरिटी या जांच एजेंसियों ने इसकी पुष्टि नहीं की है। ऑडियो में कहा गया है- कुछ दिन से हिंदुस्तान आर्मी और पुलिस बेगुनाह लोगों को गिरफ्तार कर रही है। ओवर ग्राउंड वर्कर्स को सामान (हथियार) देकर आतंकी साबित कर रहे हैं। कुछ हमारे साथियों और उनके हमसायों (पड़ोसियों) के घर में ब्लास्ट किए गए हैं। अगर किसी को लगता है कि ऐसा करके वो हमारे हौसले पस्त कर देंगे, तो ये उनकी गलतफहमी है। हम पहले ही घर छोड़कर अल्लाह की राह में निकल चुके हैं। इन्हें ये सब करके खुशी मिलती है। आने वाले वक्त में हम भी इनके साथ यही करेंगे। मकान के बदले मकान। घरवालों के बदले घरवाले। इस बार कोई कैंडल मार्च नहीं होना चाहिए। ये सब इन्होंने (सरकार और आर्मी) शुरू किया है, लेकिन हम इसे खत्म करेंगे। पाकिस्तान ने इंटरनेशनल बॉर्डर पर चौकियां खाली कीं, झंडे हटाएपहलगाम हमले के 8 दिन बाद 30 अप्रैल को पाकिस्तानी सेना ने इंटरनेशनल बॉर्डर पर कई पोस्ट खाली कर दी हैं। पाकिस्तानी सेना ने यहां से झंडे भी हटा लिए हैं। ये पोस्ट कठुआ के पर्गवाल इलाके में खाली की गई हैं। 23 अप्रैल से पाकिस्तानी सेना LoC पर लगातार सीजफायर वॉयलेशन कर रही है। इस बीच 29 अप्रैल को भारत और पाकिस्तान के डायरेक्टर जनरल ऑफ मिलिट्री ऑपरेशंस ने हॉटलाइन पर बात की। भारत ने लाइन ऑफ कंट्रोल पर फायरिंग के लिए पाकिस्तान को चेतावनी दी है। पूर्व रॉ चीफ को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड की कमानकेंद्र सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड का नए सिरे से गठन किया है। पूर्व रॉ चीफ आलोक जोशी को इसका चेयरमैन बनाया गया है। प्रधानमंत्री आवास पर सुरक्षा मामलों की कैबिनेट कमेटी (CCS) बैठक के बाद ये जानकारी दी गई। CCS की यह दूसरी मीटिंग है, पहली मीटिंग पहलगाम अटैक के अगले दिन 23 अप्रैल को हुई थी। बोर्ड में कुल 7 लोग हैं। इनमें पूर्व वेस्टर्न एयर कमांडर एयर मार्शल पीएम सिन्हा, दक्षिणी आर्मी कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल एके सिंह, रियर एडमिरल मोंटी खन्ना, रिटायर्ड IPS अफसर राजीव रंजन वर्मा, मनमोहन सिंह और IFS से रिटायर्ड वेंकटेश वर्मा शामिल हैं। ................................... पहलगाम हमले से जुड़ी ये खबरें भी पढ़िए 1. जम्मू-कश्मीर के 15 सेक्टर में पाकिस्तान ने बरसाए बम, बंकर में छिपे लोग पहलगाम हमले के बाद पाकिस्तान ने बारामूला, कुपवाड़ा और जम्मू के 15 सेक्टर में फायरिंग की और रॉकेट दागे हैं। यहां बसे गांवों में जगह-जगह कम्युनिटी बंकर बने हैं। पहले यहां अक्सर फायरिंग होती थी, लेकिन 4-5 साल से शांति थी। इसलिए बंकरों का इस्तेमाल भी बंद हो गया। अब बदले माहौल में गांववाले इन्हें साफ करके फिर से तैयार कर रहे हैं। पढ़ें पूरी खबर... 2. 26 टूरिस्ट का कत्ल करने वाला आदिल कैसे बना आतंकी,साइंस और उर्दू में डिग्री पहलगाम से करीब 55 किमी दूर अनंतनाग के गुरी गांव में आदिल का घर है। कभी बच्चों को पढ़ाने वाला आदिल अब 20 लाख का इनामी आतंकी है। सुरक्षा एजेंसियों के मुताबिक वो पहलगाम हमले में शामिल था। हमले के बाद पुलिस और सेना आदिल के घर पहुंची थीं। इसी दौरान ब्लास्ट में आदिल का घर तबाह हो गया। पढ़िए पूरी खबर...
दुबई में शानदार नौकरी का ऑफर, मिलेगी 84 लाख रुपये सैलरी, बस करना होगा ये आसान काम
Dubai Jobs: बहुत से लोगों की ख्वाहिश होती है कि वो UAE में जाकर नौकरी करें. क्योंकि वहां भारत के मुकाबले अच्छी सैलरी मिलती है. इसी बात को सच करता एक विज्ञापन खूब वायरल हो रहा है. जिसमें एक हाउस मैनेजर को 84 लाख रुपये सालाना देने की बात कही गई है.
New York Subway Viral Video:NYC सबवे का एक वीडियो इस वक्त सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है. इस वीडियो को TikTok परशेयर किया गया, जिसमें ब्रुकलिन के जेफरसन स्ट्रीट स्टेशन की छत से पानी गिरता हुआ दिखाई दे रहा है, साथ ही मैनहट्टन के 34वें स्ट्रीट स्टॉप पर पाइप फटने की भी तस्वीर है.
कलयुगी मां, नाबालिग बेटे के साथ बनाए यौन संबंध, पति ने रंगे हाथ पकड़ा तो बोली-तुम्हारे जैसा...
कलयुग चल रहा है और आए दिन अजीब-अजीब खबरें सामने आती रहती हैं. हाल ही में एक मां-बेटे के बीच यौन संबंध से जुड़ी खबर आई है. बताया जा रहा है कि मां ने अपने नाबालिग बेटे के साथ शारीरिक संबंध बनाए.
माउंट एवरेस्ट फतेह करने के लिए कितना होना चाहिए बजट? जान लीजिए नेपाल सरकार के नए नियम
दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट को फतेह करना हर पर्वतारोही का सपना होता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस सपने को पूरा करने के लिए कितने रुपये खर्च करने पड़ते हैं?
गैर-लड़की का आया मैसेज, महिला ने बॉयफ्रेंड को दी ऐसी खौफनाक सजा, पुलिस के भी उड़े होश!
US Crime News:अमेरिका के एक कोर्ट ने एक महिला को अपने बॉयफ्रेंड के कत्ल करने के इल्जाम में 35 साल की सजा सुनाई है. महिला अपने सोते वक्त इसलिए गोली मारकर हत्या कर दी, क्योंकि उनके मोबाइल में एक गैर-लड़की का मैसेज आया था.
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हो रही थी खुदाई, अचानक जमीन से निकले इतने करोड़ के सोने के सिक्के, उड़ गए सबके होश!
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कांसे के बर्तन में जिंदा जलाना, कीड़ों-चूहों से कटवाना... ये हैं इतिहास की सबसे खौफनाक सजा
Most Creepy Punishments:कानून और सज का असल मकसद इंसाफ को बनाए रखना, जुर्म को रोकना और लोगों को सही रास्ते पर वापस लाना है. लेकिन आज हम आपको कुछ ऐसी क्रूर सजाओं के बारे में बताएंगे, जो आज भी रीढ़ की हड्डी में सिहरन पैदा कर देती हैं.
तारीख- 27 जून 1839 जगह- लाहौर का किला सिख साम्राज्य के महाराजा रणजीत सिंह का शव चिता पर रखा है। महारानी महताब देवी उर्फ गुड्डन नंगे पैर हरम से बाहर निकलीं। उनके साथ तीन और रानियां आईं। उन्होंने चेहरे पर कोई पर्दा नहीं किया था। लेखक सर्बप्रीत सिंह अपनी किताब 'द कैमल मर्चेंट ऑफ फिलाडेल्फिया' में लिखते हैं, 'चारों महारानियां धीरे-धीरे सीढ़ियों के जरिए चिता पर चढ़ीं और महाराजा रणजीत सिंह के सिरहाने बैठ गईं। थोड़ी देर बाद 7 गुलाम लड़कियां शव के पैर की तरफ बैठीं।' महाराजा के बेटे खड़क सिंह ने चिता में आग लगाई। 180 तोपों की आखिरी सलामी से माहौल गरज उठा। रणजीत सिंह के साथ उनकी 4 रानियां और 7 गुलाम लड़कियां भी भस्म हो गईं। उनके प्रधानमंत्री राजा ध्यान सिंह ने भी चिता में कई बार कूदने की कोशिश की, लेकिन वहां मौजूद लोगों ने पकड़ लिया। लाहौर के किले में चल रही ये अंत्येष्टि, 200 किमी दूर जम्मू-कश्मीर का मुस्तकबिल बदलने वाली थी। 'मैं कश्मीर हूं' सीरीज के पहले एपिसोड में आपने कश्मीर के पहले मुस्लिम शासक से राजवंश तक की कहानी पढ़ी। आज दूसरे एपिसोड में उससे आगे की बात… कश्मीर में बौद्धों और हिंदू शासकों के बाद मुस्लिम शासन आया। शाहमीरी वंश के जैनुल आबिदीन ने करीब 50 साल तक कश्मीर पर खुशहाल शासन किया। हालांकि, वो अपने तीनों बेटों को लालची, शराबी और लम्पट मानता था। 12 मई 1470 को जैनुल ने आखिरी सांस ली और इसके बाद शाहमीरी वंश ढलने लगा। इसके बाद चक राजवंश का शासन शुरू हुआ। इस दौर में भी शिया-सुन्नी विवाद और हिंदुओं के धर्मांतरण का दौर चलता रहा। 1579 ईस्वी में यूसुफ शाह चक कश्मीर की गद्दी पर बैठा। वो कश्मीर के इतिहास के सबसे रूमानी किरदारों में से एक है। सुंदर सजीला और बांका यूसुफ एक बार कहीं जा रहा था। रास्ते में खेतों में केसर चुनती हब्बा खातून अपनी ही धुन में कोई दर्द भरा गीत गा रही थीं। अशोक कुमार पांडेय अपनी किताब कश्मीरनामा में लिखते हैं, ‘यूसुफ शाह हब्बा की खूबसूरती और उसकी आवाज के जादू में बंध गया और दिल दे बैठा। हब्बा उस वक्त एक गरीब किसान की बीवी थी। यूसुफ के आदेश पर किसान से फौरन तलाक दिलवाया गया और हब्बा बेगम बनकर श्रीनगर आ गईं।’ संगीत, शायरी और आशिकी में डूबे यूसुफ के खिलाफ विद्रोह हो गया। उसे गद्दी छोड़कर भागना पड़ा। उस वक्त मुगल बादशाह अकबर का साम्राज्य अपने चरम पर था। यूसुफ ने 1580 में अकबर से आगरा में मुलाकात की। अकबर ने उसकी मदद के लिए राजा मान सिंह को नियुक्त किया। मुगलों की मदद से यूसुफ लाहौर की तरफ बढ़ा। रास्ते में उसे पुराना वजीर मोहम्मद बट्ट मिला। दोनों ने मिलकर तय किया कि वो मुगल सेना की मदद लिए बिना कश्मीर पर कब्जा करेंगे, क्योंकि इनके साथ कश्मीर की जनता के खिलाफ होने का खतरा है। ये फैसला एक बड़ी गलती साबित हुआ। यूसुफ शाह ने कश्मीर की गद्दी तो पा ली, लेकिन मुगलों को अंधेरे में रखने की वजह से अकबर नाराज हो गया। उसने यूसुफ को अपने सामने हाजिर होने के फरमान भेजे। न आने पर सैनिक भेजकर बंदी बना लिया और 1586 में अकबर के सामने पेश किया। उसे काफी वक्त तक कैद रखा गया। बाद में मान सिंह के कहने पर रिहा करके बिहार भेज दिया गया। 22 सितंबर 1592 को उसकी मौत हो गई। यूसुफ के बेटे याकूब शाह को भी देश निकाला मिला। अक्टूबर 1593 में चक वंश का यह आखिरी चिराग भी अपने पिता की कब्र के बगल में हमेशा के लिए सो गया। यूसुफ की याद में उसकी पत्नी हब्बा खातून जोगन बन गई। वो नंगे पांव यहां वहां भटकती और विरह के गीत गाती। कश्मीर में उसके गीत आज भी गाए जाते हैं। चक राजवंश को खत्म कर अकबर ने कश्मीर को अपने साम्राज्य में शामिल कर लिया। वहां एक सूबेदार नियुक्त कर प्रशासन चलाने लगा। अकबर अपने जीवन में 3 बार कश्मीर की यात्रा पर गया। 1589 की पहली यात्रा में उसने कश्मीरी ब्राह्मणों को स्वर्ण मुद्राएं दीं और मार्तण्ड मंदिर गया। 1592 की दूसरी यात्रा के दौरान दिवाली थी। अकबर ने उसमें भी शिरकत की। 1597 में अकबर तीसरी बार कश्मीर गया तो भयानक अकाल पड़ा था। सूबे में भुखमरी फैली थी। अकबर ने हरि पर्बत में विशाल नागर किला बनवाया, जिससे लोगों को रोजगार मिल सके। अकबर का उत्तराधिकारी जहांगीर तो कश्मीर का दीवाना था। उसने 6 बार कश्मीर की यात्रा की और अपने आखिरी दिन भी कश्मीर में ही गुजारे। शाहजहां का दौर भी कश्मीर के लिए शांतिपूर्ण और खुशहाली भरा था। आर के परिमू की किताब ‘ए हिस्ट्री ऑफ मुस्लिम रूल इन कश्मीर’ के मुताबिक, मुगल बादशाह औरंगजेब इस मामले में उलट था। वो अपने कार्यकाल में महज एक बार कश्मीर गया। वहां की खूबसूरती की बजाय उसका ध्यान तीन बातों पर गया, जो उसे इस्लाम विरोधी लगीं… औरंगजेब ने फौरन इन तीनों पर प्रतिबंध लगाने के आदेश दिए। इसके बाद मुगलों का पतन शुरू हुआ। आखिरी 45 साल में मुगलों ने कश्मीर में 22 सूबेदार नियुक्त किए। यानी शासन में स्थिरता नहीं बची थी। धीरे-धीरे कश्मीर पर अफगानी पठानों का नियंत्रण हो गया। जिनके बारे में चर्चित है… सर बुरीदां पेश इन संगीन दिलां गुलचिदान अस यानी पत्थर दिल अफगानों के लिए सिर काट देना वैसा ही है जैसे बगीचे से फूल तोड़ लेना। ये 1819 के आसपास का दौर था जब महाराजा रणजीत सिंह सिख साम्राज्य का तेजी से विस्तार कर रहे थे। उनके पास उस वक्त देश की सबसे बड़ी सेना थी। रणजीत सिंह के हमले का सुराग लगते ही अफगानी शासक आजम खां ने कश्मीर की सत्ता अपने भाई जब्बार खां को सौंप दी और काबुल भाग गया। महाराजा रणजीत सिंह ने 30 हजार सैनिकों की सेना कश्मीर पर हमले के लिए भेजी। 20 जून 1819 को जब्बार खां भाग गया और कश्मीर भी सिख साम्राज्य के अधीन आ गया। इससे सटे जम्मू राज्य के डोगरा राजपूतों गुलाब सिंह, ध्यान सिंह और सुचेत सिंह की सेवा से महाराजा रणजीत सिंह इतने खुश हुए कि गुलाब सिंह को जम्मू की गद्दी दी। ध्यान सिंह को भिम्बर, छिबल और पुंछ की जबकि रामनगर की गद्दी सुचेत सिंह को दे दी। दोनों भाइयों की मौत के बाद पूरी जम्मू रियासत पर गुलाब सिंह का अधिकार हो गया। गुलाब सिंह का राजा के तौर पर राजतिलक महाराजा रणजीत सिंह ने स्वयं किया था। गुलाब सिंह ने अपने राज्य का विस्तार लद्दाख, गिलगित और बाल्टिस्तान तक किया। 1839 में महाराजा रणजीत सिंह की मौत हो गई, जिसका जिक्र हमने इस आर्टिकल की शुरुआत में किया है। यहीं से घटनाक्रम तेजी से बदले। रणजीत सिंह की मौत के बाद लाहौर में षड्यंत्र रचे जाने लगे। ईस्ट इंडिया कंपनी इसी ताक में बैठी थी। 1846 की जंग में सिख हार गए और उन्होंने संधि की पेशकश की। खुशवंत सिंह अपनी किताब ‘सिखों का इतिहास’ में लिखते हैं, ‘10 फरवरी 1846 में सिखों के हारने के दो दिन बाद अंग्रेजी फौज ने सतलज पार कर लाहौर के एक शहर कसूर को अपने कब्जे में ले लिया। सिख दरबार ने गुलाब सिंह डोगरा को दोनों पक्षों से बातचीत करने की जिम्मेदारी दी।’ अंग्रेजों ने युद्ध में हुए खर्च के हर्जाने के तौर पर डेढ़ करोड़ रुपए और पंजाब के एक बड़े हिस्से की मांग रखी। दरबार के पास इतनी रकम नहीं थी, इसलिए व्यास और सिंधु नदी के बीच के पहाड़ी इलाके देने की पेशकश की, जिसमें कश्मीर भी शामिल था। इस इलाके में अंग्रेजों की उतनी दिलचस्पी नहीं थी। ये इलाका ज्यादातर पहाड़ी था, इसलिए पैदावार कम होती थी। गुलाब सिंह इसे भांप गए। उन्होंने इस इलाके को खरीदने की पेशकश रखी। बात आगे बढ़ी और 16 मार्च 1846 को गुलाब सिंह और अंग्रेजों के बीच अमृतसर की संधि हुई। गुलाब सिंह ने अंग्रेजों की सरपरस्ती स्वीकार की और उन्हें जम्मू-कश्मीर रियासत का राजा घोषित कर दिया गया। गुलाब सिंह को इसके लिए एकमुश्त 75 लाख रुपए देने पड़े। इसके अलावा उन्हें हर साल अंग्रेज सरकार को एक घोड़ा, बकरी के बालों से बने 12 शॉल और 3 कश्मीरी शॉल देना तय हुआ। बाद में ये करार सिर्फ 2 कश्मीरी शॉल और 3 रूमाल तक रह गया। अमृतसर संधि के बाद से ही मौजूदा ‘जम्मू कश्मीर’ अस्तित्व में आया और यहीं से डोगरा शासन की शुरुआत होती है। गुलाब सिंह के पास सिन्धु और रावी का पूरा इलाका आया था, जिसमें कश्मीर, जम्मू, लद्दाख और गिलगित भी शामिल था। गुलाब सिंह की मृत्यु 1857 में हुई। पूर्व राजदूत सुजान आर चिनॉय ने अपने रिसर्च आर्टिकल में लिखा है कि 1865 में हुंजा कश्मीर रियासत का हिस्सा हुआ करता था। जम्मू कश्मीर के राजा ने यहां एक भव्य किला बनवाया था। 1869 में हुंजा के मीर ने कश्मीर के महाराजा की संप्रभुता को मान्यता दी थी। राजा गुलाब सिंह की मौत के बाद 26 साल के बेटे युवराज रणवीर सिंह राजा बने। 12 सितंबर, 1885 को रणवीर सिंह की मौत हो गई। रणवीर सिंह की मौत के बाद उनके बड़े बेटे प्रताप सिंह का राजतिलक हुआ। प्रताप सिंह ने राज्य की सीमाओं का विस्तार करना शुरू कर दिया। 1891 में प्रताप सिंह की सेना ने गिलगित की हुंजा वैली, नागर और यासीन वैली को भी अपने राज्य में मिला लिया। अब प्रताप के राज्य की सीमाएं उत्तर में रूस तक मिलने लगी थीं। 1914 में ब्रिटिश अधिकारी हेनरी मैकमोहन ने भारत और चीन की सीमा तय करने के लिए एक मैकमोहन रेखा खींची थी। तिब्बत ने इसे मान लिया, लेकिन चीन ने इसे नहीं माना। चीन ने कश्मीर रियासत के हुंजा समेत बड़े हिस्से पर दावा किया। अंग्रेज अधिकारियों ने इस दावे का विरोध किए बिना चीन की बात मान ली। सुजान अपने रिसर्च आर्टिकल में बताते हैं कि वायसराय लॉर्ड लैंसडाउन ने अपने एक पत्र में लिखा था- हम चीन को जितना मजबूत बना सकेंगे और जितना अधिक हम उसे पूरे काश्गर-यारकंद क्षेत्र पर अपना कब्जा बनाए रखने के लिए प्रेरित कर सकेंगे, उतना ही वह इस क्षेत्र में रूसी सेनाओं को आगे बढ़ने से रोकने में ब्रिटेन के लिए ताकतवर साबित होगा। प्रताप सिंह के बाद 1925 में उनके भतीजे हरि सिंह गद्दी पर बैठे। हरि सिंह के राजतिलक से 4 साल पहले की बात है। 1921 में 26 साल के हरि सिंह पेरिस के एक होटल में ठहरे थे। उनके सुइट में एक महिला घुस आई। थोड़ी देर बाद एक शख्स महिला को अपनी पत्नी बताते हुए कमरे में घुस आया। उसने रुपयों की डिमांड की। लेखक कुलदीप चंद्र अग्निहोत्री अपनी किताब 'महाराजा हरि सिंह' में लिखते हैं कि युवराज ने बदनामी से बचने के लिए इंग्लैंड की मिडलैंड बैंक के दो ब्लैंक चेक महिला को दिए। जिसमें से एक चेक से पैसा ले लिया गया। कहा जाता है कि दूसरा चेक बैंक में फोन कर हरि सिंह ने रुकवा दिया। दरअसल, इस पूरे मामले का सरगना ब्रिटेन का बड़ा वकील हॉब्स था। उसने महाराज के ADC कैप्टन ऑथर से साठगांठ की और एक साजिश रची। इस साजिश में रॉबिंसन नाम की महिला का इस्तेमाल किया। हालांकि मामला दबा दिया गया। हरि सिंह जम्मू-कश्मीर रियासत के आखिरी राजा साबित हुए। उनके कार्यकाल में 1937 तक चीन ने शक्सगाम घाटी पर भी अपना दावा ठोंक दिया। इस तरह कश्मीर रियासत का बड़ा हिस्सा देश की आजादी के पहले ही चीन के साथ मिल गया। **** मैं कश्मीर हूं सीरीज के तीसरे एपिसोड में कल यानी 1 मई को पढ़िए- कैसे जम्मू-कश्मीर रियासत भारत में शामिल हुई और आजादी के बाद कश्मीर पर लड़ी गई जंग के किस्से… **** मैं कश्मीर हूं सीरीज के अन्य एपिसोड **** References and further reading…
पीएम नरेंद्र मोदी ने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के साथ हाई-लेवल मीटिंग की है, जिसमें NSA अजित डोभाल, CDS अनिल चौहान और तीनों सेनाओं के मुखिया मौजूद रहे। मीटिंग में पीएम मोदी ने कहा, 'आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई का तरीका, लक्ष्य और समय सेना तय करे।' उधर गृह मंत्री अमित शाह ने भी NSG, BSF, CRPF और SSB के सीनियर अधिकारियों के साथ बैठक की है। रूसी मीडिया के बाद अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स ने भी कहा है कि भारत पाकिस्तान पर हमले की तैयारी में दिख रहा है। क्या पहलगाम आतंकी हमला का बदला लेने के लिए भारत जंग करेगा; अगर हां, तो पाकिस्तान कितने दिन टिक पाएगा और दोनों देश जंग के लिए कितने तैयार; जानेंगे आज के एक्सप्लेनर में... सवाल-1: जंग का मतलब क्या है, कैसे होती इसकी शुरुआत?जवाब: लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) रामेश्वर रॉय कहते हैं, ‘कोई भी देश जंग का ऐलान करके जंग नहीं लड़ता है। किसी एक देश की कार्रवाई के बदले में दूसरी तरफ से जैसा रिएक्शन आता है, उसके हिसाब से तय होता है कि आगे का एक्शन कितना सख्त होगा। इसके लिए हम लोग अंग्रेजी का मुहावरा ‘Escalate the ladder’ इस्तेमाल करते हैं।’ यानी अगर दोनों तरफ से कार्रवाई बढ़ती है तो कहा जाता है कि अब संघर्ष बढ़ रहा है। इस संघर्ष में जब आर्मी, एयरफोर्स और नेवी यानी सेना के तीनों अंग शामिल हो जाते हैं तो इसे फुल फ्लेज्ड वॉर यानी 'पूरी तरह से शुरू हो चुकी जंग' कहा जाता है।' ले. जन. (रि.) रामेश्वर रॉय कहते हैं कि 1999 में हुई कारगिल की लड़ाई एक सीमित जंग यानी लिमिटेड वॉर थी। हमारे टारगेट्स तय थे कि हमें अपनी जमीन को वापस पाना है। लड़ाई में हमने अपने पॉइंट्स वापस पा लिए और जंग में जीत की घोषणा की। अभी ऐसा नहीं लग रहा कि जंग छिड़ जाएगी, लेकिन अगर दोनों तरफ से जवाबी कार्रवाई बढ़ी तो बात जंग तक पहुंच सकती है। सवाल-2: भारत की सैन्य ताकत के आगे पाकिस्तान कितना कमजोर है?जवाब: ग्लोबल फायर पावर इंडेक्स की रिपोर्ट के मुताबिक भारत, पाकिस्तान से 3 गुना ज्यादा ताकतवर है। 145 देशों की लिस्ट में अमेरिका, रूस और चीन के बाद भारत चौथे नंबर पर है, जबकि पाकिस्तान 12वें नंबर पर है। 2023 में पाकिस्तान 7वें स्थान पर था। 2024 में फिसलकर 9वें पर पहुंच गया और 2025 में टॉप 10 देशों की लिस्ट से बाहर हो गया। यानी भारत के पास दुनिया की चौथी सबसे ताकतवर सेना है। जबकि पाकिस्तान 8 नंबर पीछे है। ग्लोबल फायर पावर इंडेक्स में 60 अलग-अलग पैरामीटर्स पर देशों की ताकत को परखा जाता है। किसी देश की ताकत उसके स्कोर पर निर्भर करती है। जिस देश का स्कोर जितना ज्यादा होता है, उसकी ताकत उतनी ही कम आंकी जाती है। भारत का स्कोर 0.1025 है, जबकि पाकिस्तान का स्कोर 0.1695 है। सवाल-3: पाकिस्तान के मुकाबले भारत के पास हथियारों का कितना बड़ा जखीरा?जवाब: ग्लोबल फायर पावर इंडेक्स के मुताबिक भारत के पास पाकिस्तान की तुलना में करीब 3 गुना ज्यादा बड़ा हथियारों का जखीरा है। भारत के पास मिसाइल अटैक, ड्रोन अटैक या समुद्री, जमीनी लड़ाई के लिए हथियारों का बड़ा जखीरा और हर तरह के युद्धपोत हैं। जमीनी जंग में भारत मजबूत, रात में लड़ाई करने के हथियारभारत के पास टी-90 भीष्म और अर्जुन जैसे ताकतवर टैंक हैं। हालांकि, स्वचालित आर्टिलरी यानी तोपों के मामले में पाकिस्तान के पास बढ़त है, लेकिन मोबाइल आर्टिलरी यानी एक जगह से दूसरी जगह ले जाई जा सकने वाली तोपें भारत के पास ज्यादा हैं। पाकिस्तान के मुकाबले भारत के पास 1.6 गुना ज्यादा तोपे हैं। भारत के पास रात में लड़ाई करने के लिए अपग्रेडेड हथियार हैं। वहीं डिजिटल वॉरफेयर के मामले में भारत कहीं आगे है। भारत के पास राफेल और सुखोई जैसे फाइटर जेटपाकिस्तान के मुकाबले इंडियन एयरफोर्स कहीं ज्यादा मजबूत है। राफेल और सुखोई जैसे भारतीय फाइटर जेट के आगे पाकिस्तानी F-16 जैसे जेट्स कमजोर हैं। भारत के पास हेरॉन, हारोप और हर्मीस जैसे इजराइली ड्रोन हैं, जो 450 किमी. से लेकर 1000 किमी. तक वार कर सकते हैं। भारत के पास अमेरिकी MQ-9B रीपर जैसे बड़े और सबसे ताकतवर ड्रोन हैं, जो INS विक्रांत युद्धपोत से समुद्र में उड़कर टारगेट पर हमला कर सकते हैं। भारत के पास दो एयरक्राफ्ट कैरियर, मजबूत समुद्री बेड़ाभारत के पास INS विक्रमादित्य और INS विक्रांत जैसे भारी विमानवाहक युद्धपोत हैं, जबकि पाकिस्तान के पास कोई विमानवाहक युद्धपोत नहीं है। भारत और पाकिस्तान के बीच लंबी कोस्टल लाइन यानी समुद्री तटरेखा है, ऐसे में ये युद्धपोत भारत के लिए समुद्र से फाइटर जेट्स लॉन्च करने में मददगार होंगे। इसके अलावा भारत के पास न्यूक्लियर सबमरीन्स हैं, जो अभी पाकिस्तान के पास नहीं हैं। हालांकि पाकिस्तान बाबर जैसी मिसाइल्स को पनडुब्बियों से लॉन्च करने की तकनीक डेवलप कर रहा है। अब न्यूक्लियर पावर में भी भारत आगे, ज्यादा बेहतर मिसाइल्सफेडरेशन ऑफ अमेरिकन साइंटिस्ट की स्टेटस ऑफ वर्ल्ड न्यूक्लियर फोर्सेस रिपोर्ट, 2025 के मुताबिक, भारत के पास 180 परमाणु हथियार हैं। वहीं पाकिस्तान के पास 10 कम यानी 170 परमाणु हथियार हैं। यानी न्यूक्लियर पावर के मामले में भारत और पाकिस्तान लगभग एक जैसी ताकत रखते हैं। न्यूक्लियर वेपन्स को भारत पृथ्वी और अग्नि सीरीज की मिसाइल्स (रेंज 700 से 8000 किमी.) से लॉन्च कर सकता है। INS अरिहंत और INS अरिघात जैसी न्यूक्लियर सबमरीन से K-15 सागरिका और K-4 मिसाइल्स लॉन्च कर न्यूक्लियर अटैक किया जा सकता है। वहीं मिराज-2000 और जगुआर जैसे जहाज न्यूक्लियर मिसाइल लॉन्च कर सकते हैं। भारत के पास S-400 एयर डिफेंस सिस्टम है जो पाकिस्तान की दागी हुई मिसाइल्स को ट्रैक करके हवा में ही खत्म कर सकता है। वहीं, पाकिस्तान के पास 2750 किमी. रेंज की शाहीन-3 मिसाइल है। इसके अलावा बाबर (750 किमी.) और राद (350 किमी.) जैसी क्रूज मिसाइल्स हैं, जो न्यूक्लियर वेपन ले जा सकती हैं। उसके पास F-16 और JF-17 जैसे न्यूक्लियर वेपन ले जा सकने वाले जेट्स हैं। सवाल-4: फुल फ्लेज्ड वॉर में दोनों देश कितना पैसा खर्च कर सकते हैं?जवाब: फुल फ्लेज्ड वॉर की स्थिति में रोजाना का खर्च सेना की तैनाती, हथियारों के इस्तेमाल, लॉजिस्टिक्स, ईंधन, रखरखाव और इन्फ्रास्ट्रक्चर पर निर्भर करता है। सरकारें कभी भी जंग में रोजाना के खर्च का ऑफिशियल ब्योरा जारी नहीं करतीं। हालांकि रक्षा बजट, सैन्य संसाधनों और युद्ध की लागत से अनुमान लगा सकते हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान भारत ने रोजाना करीब 1400 करोड़ रुपए जबकि पाकिस्तान ने सिर्फ 370 करोड़ रुपए खर्च किए थे। यानी भारत ने करीब 4 गुना ज्यादा पैसा जंग में खर्च किया। अब 26 साल बाद अगर फुल फ्लेज्ड वॉर की स्थिति बनती है, तब भी भारत, पाकिस्तान से कहीं ज्यादा पैसा खर्च कर सकता है। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो भारत जंग में करीब 1500 से 2000 करोड़ रुपए प्रतिदिन खर्च कर सकता है और पाकिस्तान 400 से 600 करोड़ रुपए खर्च कर सकता है। हालांकि यह अनुमानित खर्च है। जरूरत पड़ने पर भारत फॉरेक्स रिजर्व, कर्ज और इमरजेंसी पड़ने पर अलग से पैसा जुटा सकता है। सवाल-5: जंग के मुहाने पर भारत की इकोनॉमी पाकिस्तान से कितनी मजबूत?जवाब: 2024 में भारत की प्रति व्यक्ति आय, पाकिस्तान से 1.7 गुना ज्यादा थी। इस साल भारत में प्रति व्यक्ति सालाना आय 2.26 लाख रुपए और पाकिस्तान में 1.32 लाख रुपए रही। आज भारत की अर्थव्यवस्था कई और पैरामीटर्स पर भी पाकिस्तान से कई गुना बेहतर है- पाकिस्तान की खराब माली हालत का अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि इस समय पाकिस्तान में डीजल की कीमत 280 रुपए प्रति लीटर से ज्यादा है। यूरेशियन टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, जुलाई 2023 में पाकिस्तान ने पूरे साल के लिए सभी युद्धाभ्यास रोक दिए थे, उसकी वजह थी कि रिजर्व फ्यूल और लुब्रिकेंट्स की कमी। कर्नल (रिटायर्ड) दानवीर सिंह के मुताबिक, 'पाकिस्तान के पास ईंधन नहीं है। पाकिस्तानी टैंक T-80 एक किमी. चलने में 2 लीटर फ्यूल खाता है। 1990 के दशक में अर्थव्यवस्था चरमराने से भारतीय सेना ने ऐसा ही महसूस किया था। युद्धाभ्यास में हमें गोला-बारूद चलाने की अनुमति नहीं थी।' इसके अलावा, 2022 में पाकिस्तान ने शुक्रवार को ‘ड्राई डे’ घोषित किया था। इस दिन सरकारी गाड़ियां सिर्फ इमरजेंसी में चलती थीं। इसके अलावा पाक सेना ने कोविड फंड और हथियार खरीदने के लिए मिले 300 करोड़ रुपए पाकिस्तान सरकार को वापस कर दिए थे। कर्नल (रि.) दानवीर सिंह कहते हैं, 'फरवरी 2021 में पाकिस्तान ने भारत के साथ युद्धविराम समझौते पर सहमति इसलिए जताई थी, क्योंकि इसकी बड़ी वजह जंग की लागत थी। एक तोप के गोले की कीमत लगभग 6 लाख रुपए होती है, जबकि .12 बोर का एक कारतूस 500 रुपए से ज्यादा का आता है।’ फरवरी 2021 में पाक आर्मी चीफ जनरल कमर बाजवा ने भी पत्रकारों के सामने माना था कि पाकिस्तान के टैंक और व्हीकल जंग खा चुके हैं और उनकी सेना के पास जंग लड़ने के लिए पर्याप्त रसद नहीं है। सवाल-6: अगर भारत-पाकिस्तान युद्ध छिड़ा, तो पाक कितने दिन टिक पाएगा?जवाब: मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, भारत के पास 40 (I) लेवल का गोला-बारूद है। इसका मतलब है कि ‘फुल फ्लेज्ड वॉर’ यानी पूरी तरह जंग छिड़ जाए तो भारत का गोला-बारूद 40 दिन तक चलेगा। हालांकि 2017 में CAG की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत के पास 10 दिन तक लगातार जंग लड़ने लायक गोला-बारूद है। रिस्क और फाइनेंस ऑडिट करने वाली फर्म KPMG और फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (FICCI) ने 2024 में 'Ammo India 2024' नाम की एक रिपोर्ट जारी की थी। इसके मुताबिक, बीते सालों में भारत से गोला-बारूद का निर्यात बढ़ा है। 2023-24 में भारत ने 837 करोड़ रुपए के 47 लाख एम्यूनिशन यानी गोला-बारूद दूसरे देशों को खरीदा था, जबकि इसी साल भारत ने 1,230 करोड़ रुपए का गोला-बारूद बेचा। दिसंबर 2024 में ‘हिंदू बिजनेसलाइन’ अखबार की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत गोला-बारूद के मामले में 88% आत्मनिर्भर हो चुका है। अलग-अलग साइज और टाइप के कुल 175 तरह के गोला-बारूद में से भारत 154 तरह के गोला-बारूद खुद बना रहा है। वहीं मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि भीषण जंग की स्थिति में पाकिस्तान के पास करीब 7 दिन तक लड़ने का गोला-बारूद है। इसके अलावा महंगाई की मार झेल रहे पाकिस्तान के लिए जंग के दौरान दूसरे खर्च उठाना भी मुश्किल है। हालांकि लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) रामेश्वर रॉय कहते हैं, ‘ये महज एक थ्योरी होती है कि कोई देश कितने दिन तक जंग में टिक पाएगा। जंग की शुरुआत में यह देखा जाता है कि दुश्मन के कमजोर पॉइंट कौन से हैं, ये नहीं देखा जाता कि किस देश के पास कितना गोला-बारूद है। माने दूसरे देश के गोला-बारूद के भंडार के आधार पर यह नहीं तय किया जाता कि उस पर हमला करना है या नहीं करना है। ले. जन. (रि.) रामेश्वर रॉय के मुताबिक, जब सेना के सारे फ्रंट खुल जाते हैं तब ये आंकड़े देखे जाते हैं। हालांकि फुल फ्लेज्ड वॉर के दौरान चाहे पाकिस्तान हो या भारत, दोनों ही अपनी सैन्य ताकत और गोला-बारूद बढ़ा सकते हैं। दूसरे देशों से भी मदद ले सकते हैं। -------------------- भारत-पाकिस्तान से जुड़ी अन्य खबर पढ़ें पहलगाम हमला: PM बोले- आतंकवाद को कुचलना हमारा राष्ट्रीय संकल्प: सेना को टारगेट, समय और हमले का तरीका तय करने की पूरी छूट पहलगाम हमले के बाद मंगलवार को पीएम मोदी ने तीनों सेना प्रमुखों से कहा- उन्हें आतंकवाद से निपटने के लिए खुली छूट है। पहलगाम हमले का करारा जवाब देना राष्ट्रीय संकल्प है। इसका तरीका, लक्ष्य और समय सेना तय करे। हमें सेना की क्षमता पर पूरा भरोसा है। पीएम मोदी ने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, चीफ डिफेंस स्टाफ अनिल चौहान, नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर अजित डोभाल और तीनों सेनाओं के प्रमुख के साथ डेढ़ घंटे मीटिंग की। पूरी खबर पढ़ें...
Lord Meghnad Desai News: ब्रिटेन सरकार ने पहलगाम आतंकी हमले के बाद भले ही इस मसले पर न्यूट्रल रहने की नीति अपनाई हो. लेकिन वहां के सांसद खुलकर भारत के फेवर में आते दिख रहे हैं.
‘मैं पाकिस्तान की बेटी थी, लेकिन अब बहू भारत की हूं। मैं पाकिस्तान नहीं जाना चाहती, इसलिए मुझे यहीं रहने दिया जाए। मैं सचिन की शरण में हूं और इनकी अमानत हूं।‘ पहलगाम हमले के बाद पाकिस्तानियों को वापस उनके देश भेजा जा रहा है। तब दो साल से भारत में रह रही सीमा हैदर ने इंस्टाग्राम पर ये वीडियो शेयर कर अपने लिए रियायत मांगी है। नेपाल के रास्ते अवैध तरीके से भारत आई पाकिस्तानी नागरिक सीमा हैदर फिलहाल ग्रेटर नोएडा में रह रही है। प्रेमी सचिन मीणा से शादी करने के बाद वह सीमा सचिन मीणा बन चुकी है। पाकिस्तानियों को डिपोर्ट किए जाने के बाद से सवाल उठ रहे हैं कि सीमा हैदर का क्या होगा। क्या उसे भी सरकार पाकिस्तान भेजेगी। हालांकि सीमा के वकील एपी सिंह का दावा है कि पहलगाम हमले के बाद पाकिस्तानियों की जो लिस्ट बनी है, उसमें सीमा का नाम नहीं है। डेढ़ महीने पहले भारत में पैदा हुई सीमा की बेटी उसके लिए सुरक्षा कवच है। सोर्सेज की मानें तो ये लिस्ट अंतिम नहीं है। लॉन्ग टर्म वीजा पर रह रहे लोगों की भी कैटेगरी बनेगी और फैसला लिया जाएगा कि कौन यहां रहेगा और कौन वापस जाएगा। दैनिक भास्कर ने एंटी टेरर स्क्वॉड (ATS) के सोर्सेज से सीमा हैदर के केस का अपडेट लिया। साथ ही उसके वकील से भी समझने की कोशिश की कि पाकिस्तानियों को वापस भेजने के आदेश से वो बच कैसे गई। सीमा हैदर का केस अलग, ATS के पास सारे कागजात: वकीलसीमा हैदर के वकील एपी सिंह ने हमें वे 3 कारण बताए, जिनकी वजह से सीमा हैदर को वापस पाकिस्तान नहीं भेजा गया। 1. सीमा यहां वीजा लेकर नहीं आई। वो जब आई तो उसकी जांच हुई और वो गिरफ्तार भी हुई। अब भी जांच चल रही है। उसके लिए सरकार और जांच एजेंसियों ने जो गाइडलाइन बनाई है, वो उसका पालन कर रही है। इसलिए पहलगाम हमले के बाद बनी उस लिस्ट में वो शामिल नहीं की गई, जिन्हें पाकिस्तान भेजा जाना था। 2. दूसरा और सबसे अहम कवच उसका परिवार बना। उसके पति और ससुराल वाले सभी लोग भारतीय हैं। सबसे बड़ा कवच उसकी पांचवीं संतान यानी डेढ़ महीने पहले भारत में पैदा हुई उसकी बेटी है। हमारे कानून में सामान्य दशा में मां को बच्ची से अलग करने की प्रक्रिया नहीं है। वकील एपी सिंह का दावा है कि नेचुरलाइजेशन के नियम के आधार पर बच्ची जन्म के साथ भारतीय नागरिक है। हालांकि दैनिक भास्कर इन दावों को कन्फर्म नहीं करता है। भारतीय नागरिकता एक्ट के तहत भारत में पैदा होने वाले बच्चे को भारतीय नागरिक मान लिया जाता है, लेकिन उसके लिए भी कुछ शर्तें हैं। जैसे: सीमा हैदर के केस में सचिन भारतीय नागरिक है, लेकिन एक शर्त पूरी नहीं हो रही। सीमा भारत में अवैध तरीके से दाखिल हुई थी और यही बच्चे की नागरिकता में रोड़ा बनेगी। 3. एपी सिंह के मुताबिक, सीमा हैदर ने यहां के तौर-तरीके से शादी की और हिंदू धर्म अपनाया। वो अब खुद को सीमा हैदर नहीं, बल्कि सीमा सचिन मीणा कहती है। तो क्या सीमा अब पूरी तरह से सुरक्षित है। वो अब भारत में ही रहेगी? इसके जवाब में एडवोकेट एपी सिंह कहते हैं, 'देखिए मैं बस इतना जानता हूं कि सीमा ने भारत के धर्म और संस्कृति को अपना लिया है।' 'सीमा अपने मोहल्ले रबूपुरा, ठकुरान से कभी बाहर नहीं गई'एपी सिंह बताते हैं, 'सीमा भारत में रहते हुए सरकार और जांच एजेंसी की हर शर्त मान रही है। उसे रबूपुरा से बाहर जाने की इजाजत नहीं है। सीमा दो साल में अपने मोहल्ले ठकुरान से भी बाहर नहीं निकली। अस्पताल से घर और घर से अस्पताल यही सीमा का दायरा है।' सरकार और जांच एजेंसियों को पता है कि सीमा हर शर्त मान रही है। इसलिए उस पर किसी तरह की अतिरिक्त कार्रवाई की जरूरत नहीं है। एपी सिंह ने जिस नेचुरलाइजेशन कानून का जिक्र किया, वो क्या है? भारत के नागरिकता अधिनियम 1955 के तहत विदेशी नागरिक कुछ शर्तों को पूरा करने पर नेचुरलाइजेशन के जरिए भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन कर सकता है। फिलहाल सीमा का भारतीय मूल का ससुराल और डेढ़ महीने पहले पैदा हुई उसकी बेटी इस नेचुरलाइजेशन प्रक्रिया की शुरुआत है। अब वो शर्तें समझें, जो नागरिकता अधिनियम के तहत नेचुरलाइजेशन के लिए जरूरी हैं… हालांकि आखिरी शर्त पर सीमा खरी नहीं उतरती। बाकी कुछ शर्तों के मुताबिक, सीमा की हिंदुस्तानी बेटी और उसका परिवार भविष्य में उसके लिए भारतीय नागरिकता पाने का मजबूत जरिया बन सकता है। इस पूरी प्रक्रिया के लिए गृह मंत्रालय को आवेदन करना होता है और फैसला सरकार की मंजूरी के अधीन है। सीमा को अब तक नहीं मिली क्लीन चिट, पाकिस्तान बन रहा रोड़ा सीमा के केस के अपडेट को लेकर हमने ATS में अपने सोर्सेज से भी बात की। दरअसल, सीमा के केस की जांच अब ATS के पास है। सोर्स के मुताबिक, 'सीमा को अब तक जांच एजेंसी से क्लीन चिट नहीं मिली है क्योंकि पाकिस्तान ने उसके डाक्यूमेंट्स का वेरिफिकेशन नहीं किया है। हालांकि भारत की होम मिनिस्ट्री से कई बार रिमाइंडर भेजा जा चुका है, लेकिन पाकिस्तान का जवाब नहीं आ रहा। नेपाल से वेरिफिकेशन हो चुका है।' वेरिफिकेशन में अभी कितना वक्त और लगेगा? सोर्स ने बताया, 'इसकी कोई समय सीमा नहीं है क्योंकि वेरिफिकेशन दूसरे देश को करना है। पाकिस्तान वैसे भी ऐसे मामलों को लटकाता है।' फिर क्या अब तक ये तय नहीं हुआ कि सीमा ने शादी करने का जो मकसद बताया, उसी के लिए वो भारत आई या फिर वो जासूस है? सोर्स बताते हैं, ‘जब तक जांच नहीं हो जाती, तब तक हम उसे किसी एक ब्रेकेट में नहीं डाल सकते। जांच रिपोर्ट तभी बनेगी, जब पाकिस्तान उसके डॉक्यूमेंट्स वेरिफाई करेगा।' पहलगाम हमले के बाद क्या सीमा को भी पाकिस्तान भेजने या न भेजने पर कोई चर्चा हुई? जवाब मिला, 'इस पर चर्चा तो हुई थी, लेकिन सीमा उस दायरे में नहीं आती, जिनके लिए सरकार ने आदेश जारी किया था। उसके सारे डॉक्यूमेंट्स हमारे पास हैं। उसकी हर एक्टिविटी पर हमारी नजर है। वो सरकार और हमारी शर्तें मानकर यहां रह रही है।' सीमा की बेटी अब हिंदुस्तानी है तो क्या अब वो पूरी तरह से सेफ जोन में है। यानी अब उसे भविष्य में भारतीय नागरिकता मिल ही जाएगी? जवाब मिला, ‘सिटिजनशिप देना या न देना हमारा काम नहीं है। ये सरकार का काम है।’ हालांकि बच्चे की नागरिकता से ज्यादा अहम जांच रिपोर्ट होगी। उसमें जो भी सामने आएगा, उसके आधार पर सरकार फैसला लेगी। एक्सपर्ट बोले- नाजायज तरीके से आने वाला कोई भी देश के लिए खतरा सीमा हैदर को लेकर यूपी के पूर्व DGP विक्रम सिंह कहते हैं, 'जो इस देश में नाजायज तरीके से रह रहा है, वो इस देश के लिए खतरा है। चाहे बांग्लादेशी हो या पाकिस्तानी हो। सीमा को क्यों नहीं डिपोर्ट किया गया, शायद सरकार की कोई नीति होगी। मैं इस पर कुछ नहीं कह सकता। सीमा हैदर जायज तरीके से तो भारत नहीं आई है। उसे भी यहां रहने का हक नहीं है।' भारत में पहली बार पाकिस्तानी नागरिकों को डिपोर्ट करने की प्रोसेस शुरू हुई, उसमें तो वो बच गई। तो क्या अब आगे भी वो सुरक्षित है? 'नहीं सुरक्षित कैसे, ऐसे भी मामले सामने आए हैं, जब कई-कई साल बाद लोगों को डिपोर्ट किया गया है। भारत सरकार को न सिर्फ सीमा बल्कि नाजायज तरह से रह रहे हर व्यक्ति को डिपोर्ट करना चाहिए।' पहलगाम हमले के बाद भारत में रह रहे पाकिस्तानियों को वापस भेजने का आदेश जारी किया गया, लेकिन सीमा हैदर बच गई। एडवोकेट एपी सिंह का कहना है कि उसके सारे डॉक्यूमेंट ATS के पास हैं। अभी जांच पूरी नहीं हुई है, क्या जांच में इतना वक्त लगता है? जवाब में बिहार के पूर्व DGP अभयानंद कहते हैं, 'जांच की बात समझनी है तो अपने ही देश की अदालतों में 50-50 साल से कई मुकदमे पड़े हैं। जांच पूरी नहीं हुई ट्रायल खत्म ही नहीं हुआ। कुछ का खत्म हुआ, लेकिन सजा नहीं सुनाई गई। ये तो इंटरनेशनल केस है। हमारी अदालतें और जांच एजेंसियां हमारे कंट्रोल में हैं, लेकिन इंटरनेशनल मामले हमारे कंट्रोल में नहीं हैं।' वे आगे कहते हैं, ‘सीमा हैदर का मामला सामान्य नहीं है। डिपोर्ट उन्हें करते हैं, जो स्पष्ट तौर पर किसी एक देश के नागरिक हों। यहां तो उसके खिलाफ जांच चल रही है। अगर मान लीजिए भारत ने डिपोर्ट किया और पाकिस्तान ने नहीं लिया।' डेढ़ महीने पहले सीमा ने बेटी को दिया जन्मडेढ़ महीने पहले सीमा ने बेटी को जन्म दिया। बेटी का नाम उसने भारती मीणा रखा है। सीमा के पहले पति गुलाम हैदर से 4 बच्चे थे। उन सबकी नागरिकता पाकिस्तान की है। एडवोकेट एपी सिंह के मुताबिक, सीमा के बाकी 4 बच्चों की नागरिकता पर उनके वयस्क होने यानी 18 साल के होने पर सवाल उठेंगे। तब की तब देखी जाएगी। अभी तो सीमा के लिए उसकी बेटी भारती और परिवार सुरक्षा कवच है। पाकिस्तान से भारत आने की सीमा हैदर की पूरी कहानी2019 में सीमा हैदर PUBG गेम के जरिए सचिन मीणा के कॉन्टैक्ट में आई थी। दोनों के बीच अफेयर हुआ और 10 मार्च को वे नेपाल में मिले। सीमा ने दावा किया कि दोनों ने नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर में शादी भी की। उसके बाद दोनों अपने-अपने देश लौट गए। फिर 10 मई, 2023 को सीमा अपने 4 बच्चों के साथ दोबारा नेपाल के पोखरा पहुंची और 13 मई को वहां से बस के जरिए भारत आई। सचिन उसे और चारों बच्चों को अपने गांव रबूपुरा ले गया, यहां सब 5 दिन रहे। 30 जून को दोनों बुलंदशहर में कोर्ट मैरिज करने पहुंचे। यहां वकील ने पाकिस्तानी ID कार्ड देखकर पुलिस को इसकी जानकारी दी। 3 जुलाई, 2023 को हरियाणा के बल्लभगढ़ से सीमा-सचिन को अरेस्ट कर लिया गया। अभी दोनों कोर्ट से जमानत पर रिहा हैं। एटीएस जांच कर रही है। अभी जांच एजेंसी से सीमा को क्लीन चिट नहीं मिली है। ................................... पहलगाम हमले से जुड़ी ये रिपोर्ट भी पढ़िए... पाकिस्तानी बोले- हम खुश नहीं, खुद आतंकवाद झेल रहे पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद के रहने वाले ताहिर नईम अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार हैं। वे मानते हैं कि भारत से रिश्ते खराब होने का पाकिस्तान पर बुरा असर होगा। वे कहते हैं कि पाकिस्तान खुद आतंकवाद झेल रहा है। पहलगाम हमले से पाकिस्तानी भी खुश नहीं हैं। पढ़िए पूरी खबर...
पहलगाम में आतंकी हमले से ठीक पहले का एक वीडियो है। अहमदाबाद के ऋषि भट्ट जिप लाइन राइड शुरू कर रहे थे। तभी गोली चलने की आवाज आई। जिप लाइन ऑपरेटर ने तीन बार कहा- अल्लाह-हू-अकबर। गोलियां चलने की आवाज आने के बावजूद ऑपरेटर नॉर्मल था। वीडियो सामने आया तो सवाल उठने लगे कि क्या जिप लाइन ऑपरेटर को पता था कि हमला होने वाला है। इस ऑपरेटर का नाम मुजम्मिल है। NIA ने उससे हमले के अगले दिन 23 अप्रैल को पूछताछ की थी। हालांकि तब उसे छोड़ दिया गया था। वीडियो वायरल होने के बाद 28 अप्रैल को उसे दोबारा कस्टडी में लिया गया है। उससे पूछताछ चल रही है। दैनिक भास्कर ने मुजम्मिल के पिता से बात की। वे कहते हैं कि हम मुसलमान हैं, अल्लाह-हू-अकबर बोलते हैं, इसमें क्या गलत है। इस बीच जांच में सामने आया है कि पहलगाम हमले में आतंकियों को लीड कर रहा हाशिम मूसा पाकिस्तानी सेना में कमांडो रह चुका है। वो 6 महीने पहले सोनमर्ग की जेड-मोड़ टनल पर हुए अटैक में शामिल था। इसी हमले में शामिल एक आतंकी के मोबाइल से पहली बार मूसा की फोटो मिली थी। अब मुजम्मिल की बात…पहलगाम से करीब डेढ़ किमी दूर लारीपोरा गांव है। मुजम्मिल का घर यहीं हैं। बगल से लिद्दर नदी बहती है। हम पुल पार कर गांव में पहुंचे। यहां कुछ बच्चे मिले। हमने मुजम्मिल का घर पूछा। एक बच्चे ने इशारा करके बता दिया। ईंट की दीवारों वाले दो मंजिला घर में मुजम्मिल का परिवार रहता है। अब्बू-अम्मी, 4 बेटे और 2 बेटियां, कुल 7 लोग। घर देखकर लगता है कि परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। हमने आवाज लगाई, तो मुजम्मिल के अब्बू अब्दुल अजीज पहली मंजिल से उतरकर नीचे आए। बातचीत शुरू हुई। मुजम्मिल के बारे में अजीज बताते हैं, ‘वो अभी 28 साल का है। सभी भाइयों में सबसे छोटा। हम लोग मजदूरी करते हैं।’ ‘मुजम्मिल तीन साल से जिप लाइन का काम कर रहा है। वो 10वीं तक पढ़ा है। 10वीं में फेल हो गया था। वो कुछ काम नहीं करता था। एक दिन कोई आदमी आया। बोला कि इसे मेरे साथ भेज दो, ये जिप लाइन का काम करेगा।’ हमने पूछा- मुजम्मिल का एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें मुजम्मिल जिप लाइन पर एक टूरिस्ट को बैठा रहा है, तभी फायरिंग होती है, मुजम्मिल तीन बार अल्लाह-हू-अकबर बोलता है। अजीज कहते हैं, ‘मैंने वीडियो नहीं देखा है, लेकिन हम लोग मुसलमान हैं। इसलिए ये तो बोलते ही हैं। तूफान आता है, तब भी यही बोलते हैं। इसमें कोई गलती नहीं है।’ हमले वाले दिन मुजम्मिल घर कब आया था? अजीज जवाब देते हैं, ‘शाम को 5 बजे आया था। उसने कुछ कहा नहीं, बस जोर-जोर से रोने लगा। मैंने पूछा भी कि क्या हुआ। उसने कुछ नहीं बताया। मुझे दिल की बीमारी है, शायद इसलिए नहीं बताया।’ आप थाने गए थे, मुजम्मिल से मिले? अजीज ने बताया, ‘एक बेटा खाना देने गया था, लेकिन मुजम्मिल से नहीं मिलने दिया।’ मुजम्मिल से मिलने उसके भाई मुख्तार थाने गए थे। वे बताते हैं- हम खाना लेकर थाने गए थे, लेकिन हमारी उससे बात नहीं हो सकी। इसलिए खाना देकर वापस आ गए। वीडियो बनाने वाले ऋषि बोले- फायरिंग हुई तो पता नहीं चला जिस वीडियो में मुजम्मिल अल्लाह-हू-अकबर कहते सुनाई दिया है, उसे ऋषि भट्ट ने बनाया था। ऋषि अहमदाबाद के रहने वाले हैं। दैनिक भास्कर ने उनसे फोन पर बात की। वे बताते हैं, ‘तब 2:15 से 2:20 बजे का टाइम रहा होगा। मैं जिप लाइन पर था। मुझसे पहले दो टूरिस्ट गए थे। उनके बाद मेरी बारी आई। एक टूरिस्ट को जाने में आधे से एक मिनट लग रहा था। मैं बहुत एक्साइटेड था। इसलिए फायरिंग हुई, तो मुझे बिल्कुल एहसास नहीं हुआ।’ ‘मैं जिप लाइन के लैंडिंग पॉइंट पर पहुंचा, तब समझ गया कि आतंकी फायरिंग कर रहे हैं। मैं जिप लाइन पर था, तभी कुछ लोगों को गोली लगी। आप देख सकते हैं वीडियो में लोग दौड़ रहे हैं, उन्हें सीधे गोली लग रही है।’ ‘मैं जैसे ही जिप लाइन के लैंडिंग पॉइंट पर पहुंचा, तुरंत परिवार को लेकर भागा। हमने लोगों को गोली लगते देखी, लेकिन किसी आतंकी को सामने से नहीं देखा।’ आपको कब पता चला कि जिप लाइन ऑपरेटर अल्लाह-हू-अकबर बोल रहा है? ऋषि भट्ट बताते हैं, ‘उस समय तो मुझे पता नहीं चला। अहमदाबाद में घर आकर मैंने परिवार के साथ वीडियो देखा। तब पता चला कि फायरिंग हो रही है, तब जिप लाइन ऑपरेटर तीन बार अल्लाह-हू-अकबर बोलता है।’ ऋषि भट्ट आगे कहते हैं, ‘मुजम्मिल के पीछे खड़ा लड़का उर्दू की कोई किताब पढ़ रहा था। वो नीचे से आया था। मुझे नहीं पता वो कौन सी किताब थी। मुजम्मिल कुछ नहीं पढ़ रहा था। फिर भी अचानक उसने तीन बार अल्लाह-हू-अकबर कहा। ये थोड़ा अजीब लगा। इससे पहले उसने ऐसा नहीं कहा था, मेरी बारी आने पर ही अल्लाह-हू-अकबर क्यों बोला। इसके पीछे क्या वजह हो सकती है, ये तो जांच में पता चलेगा।’ क्या मुजम्मिल को पता था हमला होने वाला हैक्या मुजम्मिल को भनक लग गई थी कि आतंकी हमला होने वाला है, इस पर हमने जांच में शामिल सोर्स और कश्मीर के लोगों से बात की। सोर्स बताते हैं, ‘अब तक की पूछताछ में मुजम्मिल के किसी साजिश में शामिल होने की जानकारी नहीं मिल पाई है। न उसकी मिलीभगत सामने आई है। हालांकि उसे गोली चलने की भनक हो गई थी।’ मुजम्मिल के हमले से ठीक पहले अल्लाह-हू-अकबर बोलने पर लोकल कश्मीरी बताते हैं, ‘मुश्किल वक्त आता है, तब भी अल्लाह-हू-अकबर बोलते हैं। कश्मीरियों को फायरिंग के माहौल में जीने की आदत है। हम गोली की आवाज पहचान लेते हैं। हो सकता है कि गोली की आवाज सुनते ही मुजम्मिल समझ गया कि कहीं फायरिंग हुई है। इसलिए उसने हर फायरिंग पर अल्लाह-हू-अकबर कहां। उसे ये पता नहीं चला होगा कि आखिर फायरिंग कहां हुई है।’ ‘अगर उसे पता होता कि फायरिंग उसी जगह हो रही है, तो वो जरूर जिप लाइन रोक देता। तब पहाड़ों में जंगल वाली साइड से फायरिंग हो रही थी। उसे गोली की आवाज तो आई, लेकिन वो ये नहीं समझ नहीं पाया कि फायरिंग उसके ठीक सामने हुई है। तब आसपास के लोग भी नहीं समझ पाए थे कि हमला हुआ है।’ हमले की जांच कहां तक पहुंचीपहलगाम हमले के एक हफ्ते बाद अब दो सवाल हैं।1. अब तक की जांच में क्या-क्या हुआ है?2. FIR में क्या-क्या है? 100 से ज्यादा लोगों से पूछताछ; कितने आतंकी थे, अब भी साफ नहीं पहलगाम हमले की जांच NIA कर रही है। पुलिस और जांच एजेंसियों से जुड़े सूत्रों से पता चला है कि अब तक 100 से ज्यादा लोगों से पूछताछ की गई है। सभी के बयान भी दर्ज किए गए हैं। इनमें फोटोग्राफर, घोड़े वाले, बायसरन में दुकान चलाने वाले, जिप लाइन ऑपरेटर और एंट्री के लिए टिकट देने वाले भी शामिल हैं। NIA के साथ फोरेंसिक टीम भी है। ये टीम पूछताछ के आधार पर सबूत जुटा रही है। अब तक की पड़ताल और टूरिस्टों से मिले वीडियो से ये बात साफ है कि हमले में तीन आतंकी ही शामिल थे। हो सकता है कि और भी आतंकी वहां मौजूद हों, लेकिन उन्होंने फायरिंग नहीं की। वे घाटी के मेन एंट्री पॉइंट और आसपास के एरिया में कवर देने के लिए तैयार थे। ये भी पता चला है कि आतंकियों को 20 से 25 घंटे तक लगातार पैदल चलने की ट्रेनिंग मिली थी, ताकि हमले के बाद तेजी से सेफ ठिकाने तक पहुंच सकें। आतंकियों ने जिस तरह मूवमेंट करते हुए ही टूरिस्ट को निशाना बनाया, उनके सिर में गोली मारी, इससे साफ है कि आतंकी पूरी तरह ट्रेंड थे और दूर से भी सीधे टारगेट को गोली मार सकते थे। ऋषि भट्ट के वीडियो से भी पता चला है कि आतंकी जिप लाइन के लैंडिंग यानी आखिरी पॉइंट की तरफ से आए। वहां फायरिंग करने का मकसद था कि लोग भागकर एंट्री गेट की तरफ आ जाएं। वहां दूसरे आतंकी उन्हें टारगेट करने के लिए तैयार थे। एक वीडियो में एंट्री पॉइंट पर भी एक डेडबॉडी दिख रही है। उसके ठीक पास में दुकान और वॉशरूम के बीच एक शख्स को गोली मारी गई। इन वीडियो की पड़ताल से ये बात साफ होती है कि आतंकी एंट्री पॉइंट के पास बनी दुकानों पर भी फायरिंग से पहले पहुंच चुके थे। बायसरन घाटी में फायरिंग की शुरुआत करीब 2:15 से 2:20 बजे के बीच हुई थी। जिप लाइन के आखिरी पॉइंट के पीछे की झाड़ियों से पहला फायर हुआ। ये बात ऋषि भट्ट के वीडियो और वायरल हो चुके वीडियो की पड़ताल से हुआ है। पहला वीडियोइसमें एक लड़की को जिप लाइन से आगे भेजा जा रहा है। इसे जिप लाइन से आखिरी पॉइंट तक जाने में करीब 20 से 22 सेकेंड लगे। इसके बाद ऋषि भट्ट को भेजा गया। दूसरा वीडियो ये वीडियो ऋषि भट्ट का है। वे वीडियो शूट कर रहे थे, तभी दो बार फायरिंग की आवाज आती है। पहली और दूसरी फायरिंग के बाद जिप लाइन ऑपरेटर अल्लाह-हू-अकबर बोलता है। इसी वीडियो में वे आगे बढ़ते हैं, तभी दिखता है कि दूर से एक शख्स को गोली लगती है। वो जमीन पर गिर जाता है। ऋषि उस वक्त जिप लाइन के ऊपर ही थे। तीसरा वीडियोये भी जिप लाइन के आसपास से शूट किया गया है। इसमें देख सकते हैं कि जिप लाइन के स्टार्टिंग पॉइंट के पीछे कुछ लोग हैं। सभी डरे हुए हैं। इस वीडियो में 2:23 बजे का टाइम देखा जा सकता है। ये वीडियो 29 मिनट का है। इसके आखिरी में ये हिस्सा शूट हुआ था। इस समय तक फायरिंग होते हुए कुछ मिनट हो चुके थे। इसलिए माना जा रहा है कि पहली फायरिंग करीब 2:15 से 2:20 के बीच हुई थी। आतंकियों को लीड कर रहा मूसा पाकिस्तानी कमांडो सोर्स बताते हैं कि पहलगाम हमले के दौरान आतंकियों को लीड कर रहा हाशिम मूसा पाकिस्तानी सेना के स्पेशल सर्विस ग्रुप का कमांडो है। अभी वो लश्कर-ए-तैयबा के लिए काम कर रहा था। 15 कश्मीरी ओवरग्राउंड वर्कर्स से पूछताछ के दौरान मूसा के पाकिस्तानी सेना में होने के बारे में पता चला। हाशिम मूसा करीब एक साल से जम्मू-कश्मीर में एक्टिव था। उस पर सिक्योरिटी फोर्स और गैर कश्मीरियों पर हमलों में शामिल होने का शक है। ये भी बताया जा रहा है कि पाकिस्तान सेना ने मूसा को बर्खास्त कर दिया था। इसके बाद वो आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा में शामिल हो गया। सितंबर, 2023 में उसने भारत में घुसपैठ की। मूसा श्रीनगर के पास बडगाम में एक्टिव था। 4 महीने पहले मारे गए टेररिस्ट के फोन से मिली थी मूसा की फोटोहाशिम मूसा पर 20 अक्टूबर, 2024 को सोनमर्ग में जेड-मोड़ टनल पर हुए हमले में शामिल होने का शक है। इसमें 7 लोग मारे गए थे। इस हमले की जिम्मेदारी लश्कर-ए-तैयबा के प्रॉक्सी संगठन TRF ने ली थी। इसके अलावा बारामूला में किए गए अटैक में दो सैनिक और दो पोर्टर की मौत हो गई थी। आतंकियों ने नागिन इलाके में LoC के पास सेना की गाड़ी पर घात लगाकर हमला किया था। इन हमलों के बाद CCTV फुटेज से आर्मी को एक संदिग्ध के बारे में पता चला था। 2 दिसंबर 2024 में दाचीगाम के जंगलों में सेना ने लोकल आतंकी जुनैद अहमद भट्ट को एनकाउंटर में मार गिराया था। जुनैद लश्कर-ए-तैयबा से जुड़ा था। उसके फोन में मूसा की फोटो मिली थी। इस फोटो में मूसा के अलावा 3 और आतंकी भी थे। सभी ने आर्मी की ड्रेस पहन रखी थी। ये पहली बार था, जब आर्मी को हाशिम मूसा के बारे में पता चला था। ................................... पहलगाम हमले से जुड़ी ये खबरें भी पढ़िए 1. जम्मू-कश्मीर के 15 सेक्टर में पाकिस्तान ने बरसाए बम, बंकर में छिपे लोग पहलगाम हमले के बाद पाकिस्तान ने बारामूला, कुपवाड़ा और जम्मू के 15 सेक्टर में फायरिंग की और रॉकेट दागे हैं। यहां बसे गांवों में जगह-जगह कम्युनिटी बंकर बने हैं। पहले यहां अक्सर फायरिंग होती थी, लेकिन 4-5 साल से शांति थी। इसलिए बंकरों का इस्तेमाल भी बंद हो गया। अब बदले माहौल में गांववाले इन्हें साफ करके फिर से तैयार कर रहे हैं। पढ़ें पूरी खबर... 2. 26 टूरिस्ट का कत्ल करने वाला आदिल कैसे बना आतंकी,साइंस और उर्दू में डिग्री पहलगाम से करीब 55 किमी दूर अनंतनाग के गुरी गांव में आदिल का घर है। कभी बच्चों को पढ़ाने वाला आदिल अब 20 लाख का इनामी आतंकी है। सुरक्षा एजेंसियों के मुताबिक वो पहलगाम हमले में शामिल था। हमले के बाद पुलिस और सेना आदिल के घर पहुंची थीं। इसी दौरान ब्लास्ट में आदिल का घर तबाह हो गया। पढ़िए पूरी खबर...
एटम बम और जंग की बात छोड़िए... बिना लड़े खून के आंसू रोने जा रहा पाकिस्तान, आने वाली है ऐसी खबर
Pakistan News : जेल में बंद इमरान खान कहते हैं- 'आपने सबसे पहले घबराना नहीं है'. लेकिन शहबाज शरीफ बुरी तरह घबराए बैठे हैं. पहलगाम में आतंकवादी हमला (Pahalgam Terrorist Attack) करवाने के बाद पाकिस्तान को जवाबी कार्रवाई का डर सता रहा है. वहीं ना'पाकपड़ोसी 9 मई की एक मीटिंग को लेकर बुरी तरह से सहमा हुआ है.
सबको बताना चाहती थी रिश्ते का सच, मिलीं धमकियां, Fart बेचने वाली लड़की का US सांसद से ब्रेकअप
Viral News: सोशल मीडिया पर एकइन्फ्लुएंसर का वीडियो खूब वायरल हो रहा है. जिसमें वो अमेरिका छोड़ने के बारे में बात कर रही है. साथ ही कह रही है कि यह कदम वो US सांसद से ब्रेकअप के बाद ले रही है.
एक अक्षर नहीं पढ़ा मगर पा लीं 13 IT जॉब्स, सरकारी नौकरी भी की; कमा लिए करोड़ों रुपये
एक अंगूठा छाप आदमी ज्यादा से ज्यादा कितना बड़ा फर्जीवाड़ा कर सकता है? वैसे तो कई लिमिट नहीं है लेकिन हाल ही में आई एक रिपोर्ट ने हैर कर दिया, क्योंकि एक ऐसे ही शख्स ने फर्जीवाड़ा करते हुए 13 IT नौकरियां हासिल कर लीं.
Wow Bro...रेलवे लाइनों से मिलेगी पूरे देश को बिजली, खतरनाक तकनीक पर काम कर रहा ये देश
Switzerland: स्विटजरलैंड से हाल ही में एक बड़ी खबर आई है कि वो बड़ी एक बड़ी तकनीक पर काम कर रहा है. बताया जा रहा है कि ट्रेन की पटरियों के बीच कुछ ऐसी चीज बिछाई जा रही है जो पूरे देश को बिजली मुहैया करा सकती है.
बगल में पत्नी को बैठाया, खुद जहाज उड़ाया, स्टाइल में विदेश पहुंचे थाईलैंड के राजा; लोगों ने की तारीफ
Thailand King: महाराजाओं की जिंदगी अक्सर चर्चा का विषय बनी रहती है लेकिन फिलहाल थाइलैंड के राजा इन दिनों अलग वजह से चर्चा में बने हुए हैं. दरअसल वो पहली बार आधिकारिक दौरे पर पहुंचे हैं.
अब आसान नहीं होगी माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई, नेपाल सरकार के नए नियम पर भड़के टूरिस्ट-पर्वतारोही
Mount Everest Climbing: नेपाल सरकार ने माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई के नियमोंमें बदलाव का फैसला किया है, ताकि वहां भारी भीड़ और प्रदूषण के संकट से निजात मिल सके. हालांकि इसका विरोध तेज हो गया है.
क्या बुड्ढों के सहारे जंग लड़ेगी पाकिस्तानी फौज, जवानों में इस्तीफों की झड़ी तो घबरा गए जनरल मुनीर
India Pakistan Border Updates: भारत और पाकिस्तान के बीच जंग के हालातों के बीच पाकिस्तानी फौज के हाथ पांव फूलने लगे हैं. उसकी फौज में इस्तीफों की झड़ी लगी है. करीब 4500 पाकिस्तानी सैनिक और अफसर अब तक नौकरी छोड़कर भाग चुके हैं.
Bangladesh Crisis: बांग्लादेश में 15000 करोड़ टके के नोट सड़ रहे! अब मुल्क कैसे चलाएंगे यूनुस
Muhammad Yunus Bangladesh: बांग्लादेश में अजीब संकट पैदा हो गया है. शेख हसीना सरकार के तख्तापलट के बाद बनी नई सरकार अब करेंसी बदलने के मूड में है. हालांकि इससे जबर्दस्त नुकसान के साथ ही संकट भी पैदा हो गया है. मोहम्मद यूनुस की सरकार को शेख मुजीब की तस्वीरों वाले नोट पर आपत्ति है. ऐसे में हजारों करोड़ टके के नोट पड़े-पड़े बेकार हो रहे हैं.
Amrullah Saleh on Pakistan: भारत को पाकिस्तान के खिलाफ कौन से कार्रवाई के लिए कौन से विकल्प आजमाने चाहिए. इसको लेकर पाकिस्तान के कट्टर दुश्मन माने जाने वाले नेता ने कई उपाय सुझाए हैं.
रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने टीवी पर उगला था जहर, उसी प्रूफ से 'नंगा' हो गया पाकिस्तान
Pahalgam Attack India Pakistan: पहलगाम आतंकी हमले के बाद दुनिया एक बार फिर पाकिस्तान का असली चेहरा देख रही है. टीवी पर लाइव इंटरव्यू में पाक रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ एक झटके में आतंकवाद पर जो बोल गए थे, संयुक्त राष्ट्र के मंच पर भारत ने उसे ही प्रूफ के तौर पर पेश कर दिया.
कनाडा चुनाव में जस्टिन ट्रूडो की पार्टी ने चौंकाया, सत्ता में वापसी की ओर, भारत की टिकीं निगाहें
Canada Election Result 2025: कनाडा के संसदीय चुनाव में लिबरल पार्टी और कंजरवेटिव पार्टी के बीच जोरदार टक्कर है, लेकिन शुरुआती नतीजों में लिबरल पार्टी आगे दिख रही है. जस्टिन ट्रूडो के शासनकाल में भारत और कनाडा के रिश्ते अच्छे नहीं रहे हैं.
US Canada News in Hindi: कनाडा में आम चुनाव के लिए वोटिंग शुरू हो गई है. लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इस मौके पर भी तंज कसने से नहीं चूके. उन्होंने कहा कि कनाडा, अमेरिका का 51वां राज्य बन सकता है.
26 अप्रैल 2025… सोशल मीडिया पर पाकिस्तान के सबसे शक्तिशाली फाइटर जेट JF-17C की दो तस्वीरें सामने आईं। दावा किया गया कि ये लड़ाकू विमान चीन की अत्याधुनिक एयर-टू-एयर मिसाइल PL-15 से लैस हैं। आधिकारिक तौर पर कुछ नहीं कहा गया, लेकिन अगर ये रिपोर्ट्स सही हैं तो अब पाकिस्तानी एयरफोर्स के जेट्स 300 किमी दूर से राफेल जैसे लड़ाकू विमानों पर 5 माक की रफ्तार से निशाना लगा सकते हैं। क्या पहलगाम हमले के बाद चीन ने आनन-फानन में पाकिस्तान को भेजी PL-15 मिसाइलें और इससे भारत को कितनी फिक्र करनी चाहिए; जानेंगे आज के एक्सप्लेनर में… सवाल-1: क्या चीन ने पाकिस्तान को आनन-फानन भेजी PL-15 मिसाइल?जवाब: दुनियाभर में डिफेंस एक्टिविटीज पर रिपोर्ट करने वाले X हैंडल Clash Report के मुताबिक, ‘पाकिस्तान एयरफोर्स ने अपने नए JF-17 ब्लॉक 3 फाइटर जेट्स की तस्वीरें जारी की हैं, जो छोटी दूरी की मिसाइल PL-10 और बियॉन्ड विजुअल रेंज लंबी दूरी की एयर-टू-एयर मिसाइल PL-15 से लैस है।’ पिछले साल झुहाई एयर शो में चीन ने फोल्डिंग फिन्स वाली PL-15 मिसाइलों का प्रदर्शन किया था। इसका इस्तेमाल चीन की एयरफोर्स करती है। चीन ने दूसरे देशों को बेचने के लिए इस मिसाइल का एक एक्सपोर्ट वर्जन PL-15E भी बनाया था, जिसकी रेंज 145 किलोमीटर बताई जाती है। हालांकि कुछ रिपोर्ट्स में दावा है कि पाकिस्तान एयरफोर्स के JF-17C फाइटर जेट्स पर जो मिसाइलें देखी गई हैं, वे एक्सपोर्ट वर्जन PL-15E नहीं, बल्कि स्टैंडर्ड PL-15 मिसाइलें हैं। यानी यह मिसाइलें चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी एयरफोर्स यानी PLAAF के जखीरे से मंगाई गई होंगी। ऐसे में इस बात की संभावना बढ़ जाती है कि पहलगाम हमले के बाद भारत की सख्ती देखते हुए चीन ने आनन-फानन में पाकिस्तान को PL-15 मिसाइलों की खेप भेजी हो। अगर यह सही है, तो इससे पाकिस्तान के JF-17 फाइटर जेट्स की ऑपरेशनल रेंज काफी बढ़ जाएगी। सवाल-2: PL-15 मिसाइल पाकिस्तान के लिए क्यों बेहद अहम साबित हो सकती है?जवाब: एक नजर PL-15 की स्पेसिफिकेशंस पर डालिए… JF-17 फाइटर जेट में पहले SD-10 जैसी कम रेंज वाली मिसाइलें थीं, लेकिन अब PL-15 मिसाइल से पाकिस्तान की एयरफोर्स अपग्रेड हो जाएगी। हालांकि PL-15 जैसी ताकतवर मिसाइल को कंट्रोल करने के लिए JF-17 कमजोर जेट है, जिससे इस मिसाइल की क्षमता सीमित हो सकती है। सवाल-3: क्या चीन की PL-15 मिसाइल से भारत को डरना चाहिए?जवाब: भारतीय रक्षा अनुसंधान विंग यानी IDRF ने पाकिस्तान की PL-15 मिसाइल को लेकर एक रिपोर्ट जारी की। इसमें बताया गया कि पाकिस्तान चीन की PL-15 मिसाइल के दम पर भी भारत का कुछ नहीं बिगाड़ सकता क्योंकि भारत पहले से इतना सक्षम है। भले ही मेटियोर और PL-15 कागज पर एक जैसे खतरनाक दिखते हों, लेकिन मेटियोर को कहीं ज्यादा व्यापक टेस्टिंग और लाइव-फायर ड्रिल्स से गुजारा गया है। भारत के पास पाकिस्तान से निपटने के लिए और भी कई हथियार हैं… सवाल-4: आने वाले दिनों में चीन और कौन-से डिफेंस इक्विपमेंट्स पाकिस्तान को भेज सकता है?जवाब: पाकिस्तान को हथियारों की सबसे ज्यादा सप्लाई चीन करता है। स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) की रिपोर्ट के मुताबिक, 2020 से 2024 के बीच पाकिस्तान ने 81% हथियार चीन से आयात किए। आने वाले समय में पाकिस्तान को कई अहम हथियार मिल सकते हैं... इसके अलावा चीन पाकिस्तान को एंटी ड्रोन सिस्टम, SH-15 सेल्फ-प्रोपेल्ड हॉवित्जर, SR5 मल्टीपल लॉन्च रॉकेट सिस्टम और YLC-2E मल्टी-रोल रडार भी दे सकता है। सवाल-5: पाकिस्तान को और किन देशों से सैन्य मदद मिल सकती है?जवाब: 27 अप्रैल को कुछ रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि पाकिस्तान के कराची एयरपोर्ट पर तुर्किये के 6C-130 हरक्यूलिस विमान लैंड हुए। यह सैन्य उपकरण लेकर पाकिस्तान पहुंचे। पहलगाम आतंकी हमले के बाद तुर्किये ने पाकिस्तान के साथ अपना समर्थन दिखाया। हालांकि अभी तक यह पता नहीं चल पाया कि तुर्किये ने पाकिस्तान में क्या कंसानइमेंट भेजा है। 2018 में तुर्किये और पाकिस्तान के बीच 30 T129 हेलिकॉप्टर का सौदा हुआ। इसके अलावा 4 मिल्जम-क्लास कोरवेट्स का भी सौदा हुआ, जिसकी डिलीवरी 2025 में होनी है। 2018 में रूस ने पाकिस्तान को 4 MI-35M कॉम्बैट हेलिकॉप्टर दिए थे। ऐसा माना जा रहा है कि रूस आने वाले समय में पाकिस्तान को छोटे पैमाने पर हेलिकॉप्टर और एंटी-टैंक मिसाइलें डिलीवर कर सकता है। हालांकि भारत रूस पर दबाव बनाकर इसे रोक सकता है। सवाल-6: भारत के रुख को देखते हुए पाकिस्तान और क्या-क्या तैयारी कर रहा है? जवाब: फ्लाइटरडार24 के मुताबिक, पाकिस्तान वायुसेना ने फाइटर जेट्स को कराची के साउदर्न एयर कमांड से लाहौर और रावलपिंडी के पास नॉर्थ बेस यानी LoC के पास तैनात कर दिया है। इसमें C-130E हरक्यूलिस ट्रांसपोर्ट विमान और इमब्रेयर फिनॉम 100 जेट शामिल थे, जो VIP ट्रांसपोर्ट या खुफिया ऑपरेशनों के लिए इस्तेमाल होते हैं। पाकिस्तान ने अपने विशेष सेवा समूह (SSG) कमांडो को LoC के कमजोर हिस्सों में तैनात किया है, ताकि भारतीय सैनिकों की जमीनी घुसपैठ को रोका जा सके। ड्रोन और खुफिया निगरानी बढ़ा दी है। पाकिस्तान ने LoC पर हाई अलर्ट घोषित किया है। पाकिस्तान को डर है कि भारत 2016 के सर्जिकल स्ट्राइक या 2019 के बालाकोट एयरस्ट्राइक जैसी कार्रवाई कर सकता है। पाकिस्तानी सेना ने LoC के साथ नीलम, जेहलम, रावलकोट, हवेली, कोटली और भिम्भर जैसे इलाकों में स्थानीय प्रशासन को भारतीय जवाबी कार्रवाई की चेतावनी दी है। LoC पर हाई अलर्ट, विमानों और कमांडो की तैनाती, सभी सैनिकों की छुट्टियां कैंसिल और मेडिकल लॉजिस्टिक्स भी जमा करना शुरू कर दिया है। ------------------- पहलगाम आतंकी हमले से जुड़ी अन्य खबर पढ़ें भारत और फ्रांस के बीच राफेल डील साइन: 63 हजार करोड़ रुपए में 26 राफेल मरीन मिलेंगे, पहला फाइटर जेट 2028 में भारत पहुंचेगा भारत और फ्रांस के बीच सोमवार को नई दिल्ली में 26 राफेल मरीन विमानों की डील साइन हो गई। भारत की तरफ से रक्षा सचिव राजेश कुमार सिंह ने डील पर साइन किए। डील के तहत भारत, फ्रांस से 22 सिंगल सीटर विमान और 4 डबल सीटर विमान खरीदेगा। पूरी खबर पढ़ें...
पहलगाम हमले के बाद पाकिस्तान के मंत्री ने धमकी देते हुए कहा कि उनके यहां की 130 मिसाइलों का मुंह भारत की ओर है। लेकिन क्या हो जब भारत की एक हाइपरसॉनिक मिसाइल लॉन्च होने के महज कुछ सेकेंड्स में पाकिस्तान को तबाह कर दे। और वो 130 मिसाइलें धरी की धरी रह जाएं क्योंकि पहलगाम हमले के बाद ही भारत ने स्क्रैमजेट इंजन का सफल परीक्षण किया है। स्क्रैमजेट इंजन क्या है और क्यों खास है? क्या पाकिस्तान के पास इसका कोई तोड़ है, जानने के लिए ऊपर फोटो पर क्लिक कर वीडियो देखें।